
कैसे दी जाएगी पड़ौसी देशों के उत्पीडि़तों को नागरिकता
जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू होने के बाद नए प्रावधानों के तहत पड़ौसी देशों के उत्पीडि़त अल्पसंख्यकों को नागरिकता दिए जाने के संबंध में उठाए जाने वाले कदमों का ब्यौरा चार सप्ताह में देने को कहा है।
न्यायाधीश विजय बिश्नोई और न्यायाधीश मनोजकुमार गर्ग की खंडपीठ में स्वप्रसंज्ञान के आधार पर दर्ज जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान न्याय मित्र सज्जनसिंह राठौड़ ने नागरिकता अधिनियम में हाल ही हुए संशोधन के बारे में कोर्ट को अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि अधिनियम में संशोधन के बाद यह प्रावधान किया गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय का कोई भी व्यक्ति, जिसने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था और जिन्हें पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत या फोरेनर्स एक्ट-1946 के प्रावधानों या इसके अधीन कोई नियम या आदेश से छूट दी गई है, इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। खंडपीठ ने 6 (बी) के नए प्रावधान भी देखे, जिसके अनुसार विनिर्दिष्ट शर्तों के तहत अब नागरिकता देने का अधिकार केंद्र सरकार या एक प्राधिकारी में निहित होगा।
कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता विपुल सिंघवी से संशोधन के बाद लागू प्रावधानों के अनुसरण में पड़ौसी देशों के उत्पीडि़त अल्पसंख्यकों को नागकिरता देने के संबंध में किए जा रहे प्रयासों का विवरण पूछा। इस पर उन्होंने अपेक्षित जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। कोर्ट ने अगली सुनवाई 3 फरवरी नियत करते हुए केंद्र सरकार को अपेक्षित ब्यौरा देने को कहा है। केंद्र सरकार को यह बताना होगा कि नए प्रावधानों के तहत नागरिकता दिए जाने के अधिकार किस प्राधिकारी में निहित रहेंगे और इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
पूर्व की सुनवाई में राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया था कि जिला कलक्टर को नागरिकता देने का अधिकार विकेंद्रीकृत करने के बाद जोधपुर जिले में अक्टूबर, 2019 तक 1365 पाक विस्थापितों को भारतीय नागरिकता दी जा चुकी थी। जोधपुर जिला प्रशासन को भारतीय नागरिकता के लिए पाक विस्थापितों के कुल 3090 आवेदन प्राप्त हुए। इनमें से 434 आवेदन प्रथम दृष्टया ही खारिज कर दिए गए क्योंकि वे नागरिकता अधिनियम के अपेक्षित प्रावधानों के तहत जमा नहीं करवाए गए थे। शेष 2656 आवेदनों को इंटेलिजेंस ब्यूरो (आइबी) की जांच के लिए भेजा गया, जिनमें से 2314 प्रकरणों की रिपोर्ट प्रशासन को मिली। 441 पाक विस्थापितों के आवेदनों को आइबी ने नागरिकता दिए जाने योग्य नहीं माना। प्रशासन ने 300 आवेदन खारिज कर दिए, जबकि 155 आवेदन बच्चों को नागरिकता दिए जाने के थे, लेकिन आवेदनों के साथ माता या पिता के नागरिकता के दस्तावेज नहीं थे।
Published on:
03 Jan 2020 12:44 am
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