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30 साल बाद मानसून की तिथियों में बदलाव, बारिश के 23 दिन बढ़े

हरियाली व पानी पहुंचने और धोरे कम होने से बदली जलवायु

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30 साल बाद मानसून की तिथियों में बदलाव, बारिश के 23 दिन बढ़े

30 साल बाद मानसून की तिथियों में बदलाव, बारिश के 23 दिन बढ़े

गजेन्द्र सिंह दहिया. जोधपुर. भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने दक्षिण पश्चिमी मानसून के आगमन व प्रस्थान की तिथियों में तीस साल बाद बड़ा बदलाव किया है। इस बदलाव के बाद पश्चिमी राजस्थान के 13 जिलों यानी थार मरुस्थल में मानसून के 23 दिन और बढ़ गए हैं। अब तक जोधपुर सहित पश्चिमी राजस्थान में औसतन दो महीने का ही चौमासा माना जाता था जो 1 जलाई से 1 सितम्बर था। बदलाव के बाद थार का चौमासा पौने तीन महीने का हो गया है। आईएमडी के अनुसार अभी तक पश्चिमी राजस्थान में मानसून के सामान्य प्रवेश की तिथि एक जुलाई थी। यह 15 जुलाई तक पूरे थार को कवर करता था। एक सितम्बर से मानसून वापस लौटना शुरू हो जाता था। यह डेटा 1990 से चला आ रहा था। इस साल 2020 में आईएमडी ने बदलाव करते हुए मानसून का प्रवेश तो जुलाई का प्रथम सप्ताह ही रखा है लेकिन पूरे पश्चिमी राजस्थान में कवर करने की तिथि 15 जुलाई से घटाकर 8 जुलाई और मानसून वापस लौटने की तिथि 1 सितम्बर से बढ़कर 17 सितम्बर कर दी है यानी मानसूनी बरसात के 23 दिन बढ़ चुके हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून में परिवर्तन
ग्लोबल वार्मिंग से अरब सागर में मानसून से अधिक बरसात हो रही है। इससे राजस्थान को प्राप्त होने वाली प्री मानसून बरसात कम हो गई है।
अरब सागर में ही हवा के घूमने से मार्च से जून तक राजस्थान में 20 से 30 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार से चलने वाली हवा अब 10 से 15 किमी/घण्टा तक सीमित रह गई है। गर्मियों में पश्चिमी विक्षोभों की संख्या बढऩे से यह मई-जून में राजस्थान में प्रवेश करके मानसून के सामने आ जाते हैं। इससे मानसून की पहली बरसात जुलाई तक दूसरे पखवाड़े में शिफ्ट हो गई। बरसात उतनी हो रही लेकिन 10 दिन का पानी 5 दिन में ही बरस रहा है।


धोरे घटे
वर्ष 1990 में थार मरुस्थल के 54 फीसदी क्षेत्र पर धोरे हुआ करते थे जो 2013 तक घटकर 48 प्रतिशत रह गए। वर्तमान में इसके 45 प्रतिशत से कम रहने का अनुमान है।