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कुछ ऐसे पड़ता है वार्ड सीमांकन का असर… सीटों के अनुपात में वोट कम मिले फिर भी सत्ता

बेहतर वार्डनीति से 50 प्रतिशत से भी कम वोट में बन जाती है शहरी सरकार, पिछले चुनाव में भाजपा ने 45 प्रतिशत वोट लेकर जीती 60 प्रतिशत सीटें

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कुछ ऐसे पड़ता है वार्ड सीमांकन का असर... सीटों के अनुपात में वोट कम मिले फिर भी सत्ता

अविनाश केवलिया/जोधपुर. शहरी सरकार के चुनाव में वार्डनीति की खासी अहमियत है। सत्ता में आने वाली पार्टी जितने प्रतिशत सीट जीतती है उसको हकीकत में उतने प्रतिशत वोट नहीं मिलते। यही कारण है कि चुनाव में टिकट वितरण से लेकर हर वार्ड में वोट लेने की रणनीति से सब कुछ तय होता है। चाहे 2004 में शहरी सरकार हो या 2009 या फिर 2014 में बना नगर निगम का बोर्ड। जो भी पार्टी सत्ता में आई है उसने 50 प्रतिशत भी जनता के वोट हासिल नहीं किए। पिछले तीन चुनावों में दो बार कांग्रेस सत्ता में आई तो वोट प्रतिशत 42 से 45 प्रतिशत के बीच रहा। लेकिन सीटें इनको 57 प्रतिशत मिली। ऐसे में यह सत्य है कि यदि कुछ वार्ड में लीड लेकर भी सत्ता में आया जा सकता है।

यह है पिछले बार का गणित
- 45 प्रतिशत वोट मिले भाजपा को सभी 65 वार्ड में।
- 60 प्रतिशत सीटें जीती लेकिन भाजपा ने।
- 37 प्रतिशत वोट मिले कांग्रेस को।
- 30 प्रतिशत ही लेकिन सीटें मिली।
- 16 प्रतिशत से ज्यादा वोट निर्दलीय प्रत्याशियो को मिले।
- 9 प्रतिशत ही निर्दलीय सीटें आई।

वर्ष 2009 निकाय चुनावों का गणित
कांग्रेस ने बोर्ड बनाया और 65 में से 37 सीटें थी, जो कि 57 प्रतिशत का आंकड़ा है। लेकिन कांग्रेस को चुनावों में वोट 42 प्रतिशत ही मिले थे। कांग्रेस को 33 प्रतिशत सीटें मिली, लेकिन वोट 36 प्रतिशत से ज्यादा मिले थे। इसी प्रकार निर्दलीय प्रत्याशियों की सीटें महज 9 प्रतिशत ही रही, जबकि वोट 20 प्रतिशत थे।

2004 चुनावों की स्थिति
57 प्रतिशत सीटें लेकर इस वर्ष में भी कांग्रेस ने बोर्ड बनाया था, लेकिन कांग्रेस को वोट करीब 46 प्रतिशत ही मिले थे, लेकिन सीटों के प्रतिशत से काफी कम। भाजपा को वोट 36 प्रतिशत से ज्यादा मिले लेकिन सीटें 23 प्रतिशत ही मिली।