बासनी (जोधपुर).
जनसमूह में आक्रोश…महिलाओं में आत्मसम्मान की ज्वाला…इतिहासकारों में एतराज…युवाओं में गुस्सा। पिछले करीब 20 दिनों में राजस्थान सहित देश के कई राज्यों में बॉलीवुड की अपकमिंग फिल्म पद्मावती को लेकर राजस्थान के लोगों को काफी बैचेन कर दिया है। हो भी क्यों नहीं पिछले कई दशकों से जो पर्दे पर हमें दिखाया जा रहा है उस पर अब तक आम व्यक्ति चुप रहकर सब देख लेता था, भारत के आम जनमानस ने इसे धीरे धीरे ही सही लेकिन समझ लिया है। ये विरोध कोई आज का नहीं है। पिछले कई सालों से चलचित्रों के माध्यम से समाज के सामने दिखाई जा रही सामग्रियों में हमारे विश्वास, इतिहास, श्रुत परंपराओं के हो रहे हृास को देखते हुए धीरे धीरे एकत्र हुआ आक्रोश है, जो पद्मावती के बहाने फूट पड़ा है। पद्मावती को लेकर राजस्थान से उठी विरोध की लपटें देश के कई राज्यों में फैल चुकी है। पिछले कुछ दिनों से बढ़ रहे विरोध को देखते हुए कई वर्गों के लोगों के मन में सवाल उठ रहे थे कि क्या इसे फिल्म की तरह ही देखा जाना चाहिए या इसमें हुई ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ मानकर विरोध करना चाहिए। तमाम ऐसे सवालों से राजस्थान के लोगों के मन में हो रही बैचेनी को समझने के लिए राजस्थान पत्रिका बासनी कार्यालय में बुधवार को टॉक शो आयोजित किया। इसमें प्रोफेसर, छात्र, वकील, चिकित्सक, शिक्षक, जनप्रतिनिधि सहित हर वर्ग के लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति जाहिर की।
जनसमूह में आक्रोश…महिलाओं में आत्मसम्मान की ज्वाला…इतिहासकारों में एतराज…युवाओं में गुस्सा। पिछले करीब 20 दिनों में राजस्थान सहित देश के कई राज्यों में बॉलीवुड की अपकमिंग फिल्म पद्मावती को लेकर राजस्थान के लोगों को काफी बैचेन कर दिया है। हो भी क्यों नहीं पिछले कई दशकों से जो पर्दे पर हमें दिखाया जा रहा है उस पर अब तक आम व्यक्ति चुप रहकर सब देख लेता था, भारत के आम जनमानस ने इसे धीरे धीरे ही सही लेकिन समझ लिया है। ये विरोध कोई आज का नहीं है। पिछले कई सालों से चलचित्रों के माध्यम से समाज के सामने दिखाई जा रही सामग्रियों में हमारे विश्वास, इतिहास, श्रुत परंपराओं के हो रहे हृास को देखते हुए धीरे धीरे एकत्र हुआ आक्रोश है, जो पद्मावती के बहाने फूट पड़ा है। पद्मावती को लेकर राजस्थान से उठी विरोध की लपटें देश के कई राज्यों में फैल चुकी है। पिछले कुछ दिनों से बढ़ रहे विरोध को देखते हुए कई वर्गों के लोगों के मन में सवाल उठ रहे थे कि क्या इसे फिल्म की तरह ही देखा जाना चाहिए या इसमें हुई ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ मानकर विरोध करना चाहिए। तमाम ऐसे सवालों से राजस्थान के लोगों के मन में हो रही बैचेनी को समझने के लिए राजस्थान पत्रिका बासनी कार्यालय में बुधवार को टॉक शो आयोजित किया। इसमें प्रोफेसर, छात्र, वकील, चिकित्सक, शिक्षक, जनप्रतिनिधि सहित हर वर्ग के लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति जाहिर की।
राजस्थानी लोक साहित्य भी समझें फिल्मकार पद्मिनी का इतिहास शत प्रतिशत प्रमाणित है। जैन कवि हेमचंद्र सूरि लिखित ‘गोरा बादिल चरित्र चऊपई’ (मध्यकालीन काव्य रचना) के साथ चित्तौडगढ़़ में स्थित महारानी पद्मिनी का महल इसका गवाह है। बॉलीवुड के बुद्धिजीवियों को पद्मिनी की सच्चाई जानने के लिए एक मात्र मलिक मुहम्मद जायसी के ग्रंथ के भरोसे न रहकर राजस्थानी लोक साहित्य भी समझना चाहिए। जहां इस भाषा में लिखे गए 7 ग्रंथों में पद्मिनी का उल्लेख है। इतिहास को बिना जाने पर्दे पर दिखाना संस्कृति का अपमान है। इसलिए फिल्म का विरोध जायज है।
– डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित, पूर्व विभागाध्यक्ष, राजस्थानी, जेएनवीयू। विरोध जायज लेकिन हिंसा गलत फिल्म रिलीज नहीं हुई है लेकिन इसके टे्रलर में घूमर गाने में पद्मिनी के किरदार के रूप में दीपिका पादुकोण को नृत्य करते हुए दिखाया गया है जो ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने जैसा है। आप फिल्म में पद्मिनी को नृत्य करते हुए नहीं दिखा सकते हैं। ये निश्चित रूप से भावनाओं को ठेस पहुंचाने की बात है लेकिन इसका ङ्क्षहसात्मक विरोध गलत है। ये सभ्य समाज की निशानी नहीं है। आपत्ति को लेकर कोर्ट जाएं और सभ्य तरीके से आंदोलन करें।
– मुरलीधर वैष्णव, पूर्व न्यायाधीश, जोधपुर अभिव्यक्ति व सामाजिक दायित्व दोनों समझें निर्देशक फिल्मकार इतिहास को यथार्थ रूप से प्रदर्शित करें। फिल्म का विषय इतिहास है तो उसकी सत्य जानकारी प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करें। मनोरंजन का स्वरूप गंभीर हो सकता है। अन्यथा काल्पनिक विषयों का ही अपनी फिल्मों में उपयोग करें। फिल्म से रिलीज होने से पहले विरोध जायज है, बाद में किया गया विरोध फिल्म से हुए मास डैमेज को नियंत्रित नहीं कर सकता।
-डॉ. सुशीला चौधरी, चिकित्सक, ईएसआई अस्पताल,जोधपुर समाज व सरकार दोनो करें विरोध इतिहास का फायदा उठाने के लिए फिल्मकार मनचाही पटकथा के माध्यम से फिल्म बनाकर करोड़ों रुपए कमाते हैं और उसे मनोरंजन कह कर हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं । ऐतिहासिक फिल्मों का उद्देश्य मनोरंजन की बजाय भविष्य की पीढ़ी को गौरवशाली इतिहास से अवगत कराना होना चाहिए। इसलिए सरकार और समाज चेते और ऐसी फिल्मों का विरोध करें।
-भंवर मालवीय, शिक्षक, जोधपुर। रिलीज होने से पहले पैनल को दिखाएं फिल्म ऐतिहासिक साक्ष्यों के अभाव में फिल्मकार पद्मावती को सिर्फ एक कल्पना मानते हैं। इसके जरिए मनोरंजन करना ही उद्देश्य है तो वे किरदारों के नाम और उनकी जगह किसी और छवि से फिल्म दिखा सकते हैं। इतिहास पर फिल्म बनाते समय समाज, धर्मगुरु, पद्मिनी के वंशज और इतिहास के पूर्ण जानकार लोगों से बातचीत करनी चाहिए। सरकार को पद्मावती के रिलीज होने से पहले पैनल बनाकर फिल्म से आपत्तिजनक दृश्यों को हटाना चाहिए।
– संजय अग्रवाल, व्यवसायी, जोधपुर पहले फिल्म देखें फिर करें विरोध फिल्म देखने से पहले उठ रही अफवाहों के आधार पर विरोध करना ठीक नहीं है। जो सभ्यता और संस्कृति की बात कर रहे हैं वे फिल्म देखने से पहले मारपीट व तोडफ़ोड़ की घटना को क्या कहेंगे। फिल्म देखने के बाद अगर कुछ गलत हो तो इसका विरोध करना चाहिए। फिल्म निर्देशक को भी राजस्थान की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इतिहासकार और समाज के प्रबुद्ध लोगों से बात करनी चाहिए।
-यश बिड़ला, एंटरप्रेन्योर एंड स्टूडेंट। कानून के दायरे में हों निर्माता निर्देशक जनमानस की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए फिल्म रिलीज से पहले एक कमेटी गठित कर उसे दिखाना चाहिए। उसके बाद जो दृश्य गलत और तथ्यहीन हो उसे हटा कर फिल्म प्रदर्शित करें। इसके अलावा सरकार ऐसे कानून बनाएं ताकि इतिहास पर फिल्म बनाने वाले निर्माता निर्देशक इसके दायरे में आ सकें। ऐतिहासिक फिल्म बनाते समय मौखिक इतिहास या श्रुत परंपरा को नजरअंदाज नहीं करें।
-एडवोकेट सुमन पोरवाल, सदस्य, राज्य महिला आयोग, राजस्थान। सेंसर बोर्ड से आरटीआई के तहत लेंगे सूचना अगर हम यह फिल्म रिलीज होने पर नहीं देखेंगे तो भी कुछ दिन बाद टीवी पर आ जाएगी। अगर इस फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर दिखाया है तो बच्चे तो इसे टीवी पर फिर भी देख लेंगे, जो ग्रंथों में लिखे हुए इतिहास को नकार इस पर्दे पर दिखाए गए गलत इतिहास को सच मान लेंगे। इस फिल्म की आरटीआई के तहत सेंसर बोर्ड से जानकारी लेनी चाहिए कि कौनसे तथ्यों के आधार पर इसे बनाया है और इसे सेंसर बोर्ड ने पास कैसे किया।
-जयप्रकाश कुमावत, आरटीआई कार्यकर्ता, जोधपुर। बिना विश्वास में लिए कैसे बना ली फिल्म पद्मावती सतीत्व और मर्यादा का चरित्र है जिसे सुविाधानुसार पर्दे पर प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं। देश में धावक मिल्खा सिंह, महावीर सिंह फोगाट, महेंद्र सिंह धोनी पर बनी फिल्में रिलीज करने से पहले उनको दिखाई गई हैं। अगर उनको विश्वास में लेकर फिल्में बनाई और रिलीज की जा सकती है तो पद्मिनी जैसे उच्च चारित्रिक मूल्यों वाली विभूति पर बनाई पद्मावती फिल्म बिना चित्तौड़ के राजपरिवार से सहमति लिए कैसे बना ली।
-बलवीरसिंह बैंस, शिक्षक , जोधपुर प्रेरणादायी हो ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की फिल्में राजस्थान का इतिहास गौरवमयी रहा है। पद्मिनी सिर्फ रानी नहीं बल्कि लोकजीवन में उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है। इतिहास के साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। फिल्मों का मुख्य काम मनोरंजन करना होता है लेकिन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की फिल्मों को लोकभावनाएं देखते हुए प्रेरणादायी और गौरवशाली होना चाहिए। फिल्म के गाने घूमर में दिखाए नृत्य के दृश्य भी विवादित हैं।
– मनीष चारण, पूर्व सचिव छात्रसंघ लाचू मेमोरियल कॉलेज ,जोधपुर वेशभूषा व दृश्य प्रासंगिक नहीं
फिल्म के ट्रेलर में दिखाई गई वेशभूषा व नृत्य के दृश्य प्रासंगिक नहीं है। उस समय की संस्कृति का गहन अध्ययन करने के साथ ही संबंधित पक्ष को विश्वास में लेकर ही फिल्म निर्माण करना चाहिए था। फिल्म को रिलीज करने से पहले जनसमूह के प्रतिनिधिमंडल से प्री-स्क्रिनिंग करवा कर जनभावना का सम्मान करना चाहिए। संबंधित पक्ष को बिना दिखाए फिल्म रिलीज करना सही नहीं रहेगा।
फिल्म के ट्रेलर में दिखाई गई वेशभूषा व नृत्य के दृश्य प्रासंगिक नहीं है। उस समय की संस्कृति का गहन अध्ययन करने के साथ ही संबंधित पक्ष को विश्वास में लेकर ही फिल्म निर्माण करना चाहिए था। फिल्म को रिलीज करने से पहले जनसमूह के प्रतिनिधिमंडल से प्री-स्क्रिनिंग करवा कर जनभावना का सम्मान करना चाहिए। संबंधित पक्ष को बिना दिखाए फिल्म रिलीज करना सही नहीं रहेगा।
– माधवेन्द्र सिंह सोढ़ा, अध्यक्ष छात्रसंघ लाचू मेमोरियल कॉलेज , जोधपुर घूमर नृत्य के नाम पर छलावा चितौड़ में पद्मिनी को मां के बराबर दर्जा प्राप्त है। घूमर नृत्य में दीपक को हाथ में लेकर नृत्य नहीं किया जाता है। राजपूती संस्कति में दीपक भगवान का प्रतीक माना जाता है। आरती के लिए भी नारियल की ज्योत को काम में लिया जाता है न कि दीपक को। फिल्म में तो नायिका को दीपक के साथ नाचते हुए दिखा दिया है जो एक छलावा है। इतिहास प्रेरणा के लिए होता है मनोरंजन के लिए नहीं।
– विशाल सिंह बडग़ुजर, विद्यार्थी , जोधपुर जन भावना को देखते हुए बैन हो फिल्म राजस्थान का इतिहास भारत के इतिहास का प्रतिनिधित्व करता रहा है। पद्मिनी ने नारी शक्ति के आत्म सम्मान और राजस्थान की संस्कृति की रक्षा के लिए जौहर किया था। जौहर में उनके साथ सभी जातियों की माताएं-बहनेें शामिल थीं। महज पूंजी के लालच में इतिहास के साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। सेंसर बोर्ड को जन भावना व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देखते हुए फिल्म पर बैन लगाना चाहिए।
– गिरवर सिंह शेखावत, पंचायत समिति सदस्य, लूणी , जोधपुर कल्पना को सत्य से जोडऩे से विकृतियां
राजस्थान की भूमि अपने त्याग और बलिदान के लिए जानी जाती है। ऐतिहासिक घटनाओं और पात्रों को फिल्म में शामिल किया जाता है तो उनके साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जा सकती है। यदि फिल्म को मनोरंजनात्मक पुट देना था तो इसे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व पात्रों के आधार पर नहीं बनाना चाहिए था। कल्पना को सत्य के साथ जोडऩे से विकृतियां उत्पन्न होती है।
राजस्थान की भूमि अपने त्याग और बलिदान के लिए जानी जाती है। ऐतिहासिक घटनाओं और पात्रों को फिल्म में शामिल किया जाता है तो उनके साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जा सकती है। यदि फिल्म को मनोरंजनात्मक पुट देना था तो इसे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व पात्रों के आधार पर नहीं बनाना चाहिए था। कल्पना को सत्य के साथ जोडऩे से विकृतियां उत्पन्न होती है।
– श्याम सिंह सजाड़ा, शिक्षक नेता , जोधपुर