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केर-सांगरी, कूमट-बबूल नहीं बन पा रही स्थाई आमदनी का स्त्रोत

- पश्चिमी राजस्थान में बड़ी मात्रा में होता है उत्पादन- बन सकते है रोजगार व आर्थिक आय का जरिया

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केर-सांगरी, कूमट-बबूल नहीं बन पा रही स्थाई आमदनी का स्त्रोत

केर-सांगरी, कूमट-बबूल नहीं बन पा रही स्थाई आमदनी का स्त्रोत

जोधपुर।
पश्चिमी राजस्थान की विशेष शुष्क जलवायु में उत्पादन होने वाली कई फसलें अभी भी आमदनी का स्थाई स्त्रोत नहीं बन पा रही है। इससे इन फसलों के उत्पादक किसानों के मन में निराशा है। इन फसलों में केर, सांगरी, कूमट व बबूल फलियां आदि प्रमुख है। जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, जालोर, बीकानेर क्षेत्र में केर, सांगरी, कूमट व बबूल फ लियों का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है।

50 प्रतिशत होती है हार्वेस्टिंग
इन फसलों का व्यवसायिक उत्पादन नहीं हो पाने व हार्वेस्टिंग के यांत्रिक तरीके नहीं होने से 50 प्रतिशत ही हार्वेस्टिंग हो पाती है। ऐसे में केर, सांगरी इत्यादि को हार्वेस्ट करने के छोटे उपकरण किसानों को उपलब्ध करवाए जाए । साथ ही, इन उत्पादों को सुखाने सहित विभिन्न मूल्य संवर्धन की सुविधा उपलब्ध हो तो पश्चिमी राजस्थान के किसानों के लिए ये फसलें बड़ी मात्रा में रोजगार व आर्थिक आय का जरिया बन सकता है।

मंड़ी में व्यवस्थित व्यापार नहीं
इन उत्पादों का मंडी में व्यवस्थित व्यापार नहीं होता है। ऐसे में किसान इसे स्थानीय बाजारों में अलग-अलग दामों में बेचते है। इससे ये उत्पाद स्थाई आमदनी के स्त्रोत नहीं बन पा रहे है।

मरु प्रदेश में इन फसलों के रूप में सोना उगल रहा है। सरकार की ओर से इन फसलों को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष कदम उठाने चाहिए। इन फसलों के उत्पादों को सुखाने व मूल्य संवर्धन सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए
तुलछाराम सिंवर, प्रांत प्रचार प्रमुख
भारतीय किसान संघ