
कुरजां को जोधपुर की आबोहवा आने लगी रास, जलाशयों पर गूंजने लगा कलरव
नंदकिशोर सारस्वत/जोधपुर. जिले के खींचन के बाद शीतकालीन प्रवासी पक्षी कुरजां को जोधपुर शहर के नजदीकी जलाशयों का वातावरण भी रास आने लगा है। वर्तमान में खींचन में 11 हजार से अधिक कुरजां के समूह ने डेरा डाला है। अब लूणी क्षेत्र के खारा बेरा तालाब, गुड़ा बड़ा तालाब, जाजीवाल, जाजीवाल धोरा,चिराई,ओसियां, शिकारपुरा, सारेचा, सुरपुरा सहित कई जगहों पर हजारों कुरजां का कलरव सुनाई देने लगा है।
हजारों किमी दूर से आती हैं कुरजां
दक्षिणी पूर्वी यूरोप, साइबेरिया, उत्तरी रूस, यूक्रेन, कजाकिस्तान से हजारों किमी का सफर तय कर कुरजां के समूह गुजरात व राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र में शीतकाल प्रवास के लिए आते हैं। खींचन में हर साल 25 से 30 हजार पहुंचते हैं। इस बार अक्टूबर में ही 11 हजार कुरजां खींचन आ चुकी हैं। जोधपुर-बाड़मेर सीमा पर स्थित कोरणा गांव और थार के विभिन्न जगहों पर भी कुरजां के समूह पड़ाव डाल चुके है।
हर साल बढ़ रहा ग्राफ
वर्ष ---- संख्या
2018--21000
2019--25000
2020--30000
मरुस्थलीय खाद्य शृंखला है आधार
जोधपुर-बाड़मेर सीमा पर स्थित कोरणा क्षेत्र में जैव विविधता का नया इतिहास जुडऩे पर्यावरणविद् और पक्षी विशेषज्ञ और वैज्ञानिक भी खासे उत्साहित भी है। कोरणा गांव जोधपुर जिले के खींचन के बाद सात समंदर पार से आने वाले प्रवासी पक्षी कुरजां का दूसरा पसंदीदा स्थान बनता जा रहा है। कुरजां के अलावा पक्षियों की करीब 60 प्रजातियां भी नजर आई है। प्राकृतिक आधार होने के साथ मरुस्थलीय खाद्य शृंखला होने के कारण पक्षियों के लिए बेहतर आश्रय स्थल बनता जा रहा है।
जोधपुर जिले में कहां कितनी कुरजां
वर्ष ----जाजीवाल----जाजीवाल धोरा----गुड़ा---चिराई ओसियां--- शिकारपुरा --सारेचा---
2015----600-------400---------2000-----300----------1500-----1000
2016----800-------500---------1000-----400----------1000-----800
2017----1200------1000---------600-----500----------800-------600
2018----1000-------1000---------600-----400----------800-----500
2019----800-------1200---------900-----600----------1200-----700
हो सकते है जैवविविधता के नए आयाम स्थापित
कुरजां के समूह गुजरात व राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र में शीतकाल प्रवास के लिए आते है। जोधपुर जिले के खींचन के बाद जोधपुर जिले के आसपास के जलाशयों और बाड़मेर सीमा पर कोरणा गांव में बड़ी तादाद में नजर आना थार की जैव विविधता को समृद्ध करने में नए आयाम स्थापित कर सकता है।
-डॉ. हेमसिंह गहलोत, निदेशक, वन्यजीव अनुसंधान और संरक्षण जागरूकता केंद्र जेएनवीयू
Published on:
30 Oct 2021 04:16 pm
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