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बाजरा उत्पादों की बढ़ती मांग से सेहत में सुधार की उम्मीद

प्रसंगवश : क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान बाड़मेर, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस जोधपुर और काजरी थाली तक पहुंच को बना रहे आसान

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बाजरा उत्पादों की बढ़ती मांग से सेहत में सुधार की उम्मीद

खेत में लहलहाती बाजरे की फसल

संदीप पुरोहित/जोधपुर। देश में बाजरे का सर्वाधिक उत्पादन और बुवाई क्षेत्रफल राजस्थान में है। हरित क्रांति से पहले चूल्हे पर बाजरे की रोटी ही पकाई जाती थी। सूख जाने पर यह बच्चों का बिस्कुट भी कहलाता था। वर्ष 1966-67 में देश में गेहूं के क्षेत्र में आई हरित क्रांति ने बाजरे को गरीबों का धान बना दिया और यह गांवों तक ही सीमित रह गया। २१वीं सदी की शुरुआत में बदली जीवनशैली से पैदा हुए रोगों और वैज्ञानिक अनुसंधानों ने भारत ही नहीं बल्कि विश्व में बाजरे की बादशाहत एक बार फिर से कायम कर दी है। संयुक्त राष्ट्र 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष के तौर पर मना रहा है। मोटा अनाज, प्रोटीन व फाइबर अधिक होने, आवश्यक अमीनो अम्ल युक्त और ग्लूटेन रहित होने से बाजरा उत्पादों का सब जगह प्रोत्साहन मिल रहा है।

एक सप्ताह पहले 27 सितंबर को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बाड़मेर में क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान का उद्घाटन किया, जो बाजरे की नई किस्मों पर शोध करेगा, ताकि प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हो सके। पश्चिमी राजस्थान में बाजरा ही भोजन हुआ करता था। जोधपुर में मरुस्थलीय क्षेत्र में केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) ने मारवाड़ की बाजरी को नई पहचान दी है। हाल ही में उसने बाजरे के अनेक उत्पाद तैयार किए हैं। पिछले सप्ताह ही कुपोषित बच्चों के लिए बाजरी का दलिया बनाकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। काजरी की ओर से तैयार किए गए बाजरा उत्पादों से न केवल शहरों में बाजरे की मांग बढ़ी है अपितु स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं।

काजरी ने बाजरे के बिस्कुट, लड्डू, चॉकलेट, खाखरे, दलिया, आइसक्रीम आदि उत्पाद तैयार किए हैं। बीकानेर की भुजिया की तर्ज पर बाजरे की भुजिया और पांच-सात फ्लेवर में खाखरा, आइसक्रीम व दलिया उत्पाद तैयार किए गए हैं ताकि सभी आयु वर्ग के लोग बाजरा उत्पाद अपना सकें। कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर में बाजरे का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किया गया है। हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन में भी राष्ट्र प्रमुखों को बाजरे के व्यंजन परोसे गए थे। जैसे गेहूं के क्षेत्र में हरित क्रांति, दूध के लिए श्वेत क्रांति, तिलहन के लिए पीली क्रांति, अण्डों के लिए सिल्वर क्रांति, मछली के लिए नीली क्रांति हुई है, उम्मीद की जानी चाहिए कि देश आने वाले वर्षों में बाजरे के क्षेत्र में ग्रे क्रांति को साकार होते हुए देखेगा।