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Navratra Vishesh: यहां है महिषासुर मर्दिनी का मूल स्वरूप, बीस हाथ होने से कहलाई बीसहथ माता

जैन समाज के प्रमुख तीर्थ सरदारपुरा सी रोड पर ब्रह्मबाग स्थित भैरूबाग पार्श्वनाथ जैन मंदिर तीर्थ परिसर के माता मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की 845 साल प्राचीन देवी प्रतिमा है

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जोधपुर। जैन समाज के प्रमुख तीर्थ सरदारपुरा सी रोड पर ब्रह्मबाग स्थित भैरूबाग पार्श्वनाथ जैन मंदिर तीर्थ परिसर के माता मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की 845 साल प्राचीन देवी प्रतिमा है। इस देवी की सवारी शेर का मुंह विपरीत दिशा में है। माता के बीस हाथ होने के कारण इन्हें बीस हथ माता कहा जाता है । बीसहथ माता की इस प्रतिमा में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पदम, धनुष, दंड, ढाल, त्रिशूल, चक्र धारण किए दर्शाया गया है ।

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नवरात्रि में पूजन, अष्टमी को हवन
देवी प्रतिमा के दोनों तरफ गोरा-काला भैरू खड्ग लिए खड़े हैं। नवरात्रा की अष्टमी को मंदिर में हवन और महापूजन किया जाता है। मंदिर की देखरेख करने वाले नलिन मेहता ने बताया कि नवरात्र के दौरान मारवाड़ सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से कुलदेवी के भक्त आते हैं।

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जालोर दुर्ग में स्थापित थी प्रतिमा
माता की इस प्रतिमा को स्वर्णगिरी दुर्ग जालोर के परमार शासक ने विक्रम संवत 1235 में तैयार करवाया था। महिषासुर मर्दिनी का मूल स्वरूप लिए यह प्रतिमा जालोर दुर्ग में स्थापित थी। मारवाड़ के राठौड़ों का जालोर पर आधिपत्य होने के बाद जब राजा मानसिंह ने सन 1860 में जोधपुर की राजगद्दी संभाली तो उनके साथ जालोर से आए सरदार बैजनाथ कोचर देवी की प्रतिमा को सन 1862 में जोधपुर के भैरूबाग स्थित मंदिर में ले आए थे। माता के प्राचीन मंदिर में आज भी जैन समाज के कोचर, राजपुरोहितों में सेवड़, राजपूतों में परमार गोत्र के लोग कुलदेवी के रूप में माता की पूजा करते हैं।


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