तुम भी लिखो ना
कि तुम्हारे लिखे बिना नहीं होगा यह महाकाव्य पूरा।
मत करो प्रतीक्षा किसी क्रौंच के फिर से मारे जाने की
तुम हो ,तुम लिख दो
डॉ. नितेश व्यास ने कहा कि मेरा रुझान हिन्दी कविता के प्रति तो शुरू से ही था। जब संस्कृत में बी.ए.कर रहा था तो हमारी आचार्य प्रो.सरोज कौशल के माध्यम से मुझे प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी, डा.हर्षदेव माधव व डा.प्रवीण पण्ड्या आदि आधुनिक संस्कृत कवियों की कविताएं पढऩे का सौभाग्य मिला, जिनकी शैली ऐसी थी जिसमें पुरातन का समावेश कर नूतन अभिव्यंजना को संस्कृत कविता में नये बिम्बों के साथ प्रस्तुत किया गया। किसान की पीड़ा, भारतीय गृहिणी की बदलती तस्वीर और पौराणिक आख्यानों का आधुनिक सन्दर्भ में प्रयोग आदि ऐसे विषय रहे जिन्होंने मेरी संस्कृत के प्रति रूढि़वादी मानसिकता ध्वस्त की और नये सन्दर्भों में सोचने के लिए विवश किया।