
mehrangarh fort
जोधपुर.
पूर्व राजमाता कृ ष्णाकुमारी के निधन से सभी शोकाकुल हैं और राठौड़ वंश के योगदान को याद कर रहे हैं। इस कुल के पुरखों के अदम्य साहस और शौर्य का प्रतीक है जोधपुर का बहुत खूबसूरत किला मेहरानगढ़। यह पर्यटकों को इस शहर में खींच लाता है। देसी विदेशी पर्यटक रियासतकाल की याद दिलवाने वाला यह किला देख कर बहुत खुश होते हैं।
हमेशा अजेय रहा किला
इस किले की खासियत यह है कि अजेय रहा। जोधपुर का किला कई हमलों का शिकार हुआ। इस किले पर कुल ६ हमले हुए। इस किले पर राव बीका, शेरशाह सूरी,अकबर, औरंगजेब, सवाई जयसिंह व जगतसिंह ने हमले किए, लेकिन खुशी की बात यह रही कि इस किले को कोई जीत न सका। हालांंकि मजबूत सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद मेहरानगढ़ दुर्ग पर समय समय पर कई आक्रमण हुए।
सबकी कोशिशें बेकार रहीं
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि एक तरफ दिल्ली के शासकों तो दूसरी तरफ मराठों ने इस दुर्ग को आक्रांत किया था। राव जोधा के समय राव बीका ने इस दुर्ग पर आक्रमण कर उनसे छत्र और चंवर लेने का वचन ले लिया। जब सूरसिंह ने उन्हें ये वस्तुएं नहीं दी तो बीका ने मेहरानगढ़ पर फि र आक्रमण किया। सन 1544 ई. में शेरशाह सूरी का इस दुर्ग पर अधिकार हो गया और उसने इस दुर्ग में एक मस्जिद का निर्माण करवाया और गोलघाटी का मार्ग भी उसी ने बनवाया। बाद में मालदेव ने इस दुर्ग पर पुन: अधिकार स्थापित किया।
आए बहुत, जीता कोई नहीं
मारवाड़ के शासक राव चन्द्रेसन मुगलों का विरोधी था। इसलिए सन 1565 ई. में इस दुर्ग पर फि र मुगलों का अधिकार हो गया। मोटा राजा उदयसिंह ने इसे उनसे वापस प्राप्त किया। मारवाड़ के प्रामाणिक इतिहास के अनुसार महाराजा अजीतसिंह के समय मेहरानगढ़ पर औरंगजेब का अधिकार हो गया था। औरंगजेब की मृत्यु के बाद राठौड़ों ने मुगल किलेदार नाजिम खां को भगा कर यहां पर फि र अपना आधिपत्य स्थापित किया था। इस दुर्ग पर जयपुर राज्य ने भी आक्रमण किए, लेकिन इसकी सुदृढ़ दीवारों ने 300 बरसों तक सजग प्रहरी के रूप में आक्रमणकारियों की तोप के गोलों का सामना कर मारवाड़ का अमर प्रहरी होने का सुबूत दिया। बहरहाल यह एेतिहासिक तथ्य है कि जोधपुर का किला कोई जीत नहीं सका।
Published on:
04 Jul 2018 02:15 pm
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