जोधपुर . गोवद्र्धन पीठ पुरी के पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान किसी रोगी के वर्तमान शरीर से आगे कुछ मानने को तैयार नहीं। चिकित्सक को यह ज्ञान नहीं है कि हमारा शरीर तीन भागों सूक्ष्म कारण और स्थूल शरीर में बंटा है। हमारा वैदिक चिकित्सा विज्ञान आज भी पश्चिम से बहुत आगे है। आयुर्वेद विशेषज्ञ तो मात्र नाड़ी की गति देख शरीर में कफ, पित्त और वायु से संबंधित रोग का इलाज कर लेते हैं। दूसरी ओर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के दिन प्रतिदिन बढ़ते उपकरणों ने मरीज की आर्थिक स्थिति बहुत खराब कर दी है। डॉ. एसएन मेडिकल कालेज में नेशनल मेडिकोज ऑर्गनाइजेशन और मेडिकल कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन के तत्वावधान में बुधवार दोपहर आयोजित आधुनिक चिकित्सा विज्ञान एवं अध्यात्म विषयक व्याख्यान में शंकराचार्य ने कहा कि कथित रूप से विज्ञान ने बहुत तरक्की की है, लेकिन यह अत्यंत समृद्ध कहा जाने वाला पाश्चात्य विज्ञान अपने किसी सिद्धांत पर कायम नहीं। इसकी तो दवाइयां तक एक नियत समय पश्चात मृत (अवधिपार) हो जाती हैं। जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश के प्रभाव को आंक उसके अनुरूप हमारे प्राचीन विद्वानों ने हजारों वर्ष से दुनिया को चिकित्सा विज्ञान से अवगत कराया। चिकित्सा के लिए अच्छा दिखने, अच्छा कहने जैसी बातों पर भी हमारे यहां बहुत ध्यान दिया जाता रहा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान चिकित्सा पद्धति रोग का निदान नहीं करती उसे लंबा खींचती है। तब प्रश्न उठता है कि उत्तम चिकित्सक कौन हो सकते हैं। इसके उत्तर में योग दर्शन के चार शब्द हेय, हानि, हान और हानोपाय को एक उत्तम चिकित्सक को जानना आवश्यक है। रोग हेय है, जिसे हम पसंद नहीं कर सकते। रोग का हेतु, उसका कारण जानना भी इसके साथ आवश्यक है। अगर इसकी जानकारी नहीं ली गई तो इलाज में त्रुटि होना संभव है। अंत में वरिष्ठ फि जिशियन डॉय श्याम माथुर ने आभार प्रकट किया।