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जूलीफ्लोरा से मारवाड़ की जैव विविधता पर मंडरा रहा है खतरा, घास नहीं मिलने से पलायन कर रहे शाकाहारी वन्यजीव

राज्य में पशुधन, कृषि, वेटलैण्ड्स और जनजीवन के लिए हानिकारक जूलीफ्लोरा की प्रजातियां रोपने या प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का बीजारोपण पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद विषबेल बढ़ती ही जा रही है। वन अधिकारियों का कहना हे कि जूलीफ्लोरा को प्रोत्साहित करने के सबंध में कोई निर्देश जारी नहीं किए गए।

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Prosopis juliflora has become harmful for local flora species in thar

जूलीफ्लोरा से मारवाड़ की जैव विविधता पर मंडरा रहा है खतरा, घास नहीं मिलने से पलायन कर रहे शाकाहारी वन्यजीव

नंदकिशोर सारस्वत/जोधपुर. राज्य में पशुधन, कृषि, वेटलैण्ड्स और जनजीवन के लिए हानिकारक जूलीफ्लोरा की प्रजातियां रोपने या प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का बीजारोपण पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद विषबेल बढ़ती ही जा रही है। पूर्व में राज्य सरकार की ओर से जूली फ्लोरा की प्रजातियों को प्रोत्साहित करने के लिए पारित कानून की वैज्ञानिक समीक्षातक नहीं हो पाई। वन अधिकारियों का कहना हे कि जूलीफ्लोरा को प्रोत्साहित करने के सबंध में कोई निर्देश जारी नहीं किए गए।

संकट में जैवविविधता
विदेशी प्रजातियों के पौधे पनप जाने से स्थानीय प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। इनमें जूलीफ्लोरा प्रमुख है। कुछ पादप प्रजातियों को सौन्दर्यीकरण के लिए भारत में आयात किया गया। लैन्टाना (जलकुंभी) को अंग्रेज 1807 में भारत लाए और कोलकाता के बॉटेनिकल गार्डन में लगाया था। धीरे-धीरे यह सारे उपमहाद्वीप में फैल गया। वर्तमान में यह पौधा मारवाड़ सहित राज्यभर में जैव विविधता के लिए संकट बना हुआ है।

सुंदर जामुनी फूलों के कारण ब्राजील से लाई गई जलकुंभी (वॉटरलिली) जोधपुर शहर के प्रमुख जलाशय कायलाना गंगलाव तालाब और मारवाड़ के कई जलाशयों में फैल चुकी है। ऐसे ही कुछ विदेशी प्रजातियां 1950 में अमरीका से अनायास ही आयातित खाद्यान्न गेहूं के साथ भारत में आ गई जिनमें विश्व की सबसे खतरनाक खरपतवार गाजर घास (पार्थेनियम) है जो मारवाड़ के कई हिस्सों में पनपती जा रही है। यह घास जैवविविधता के लिए खतरा होने के साथ एलर्जी पैदा करती है।

पलायन कर रहे वन्यजीव
संरक्षित क्षेत्र रणथम्बौर नेशनल पार्क ,भरतपुर और कोटा के मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व में जूलीफ्लोरा लगातार बढ़ रहा है। आबू पर्वत, कुंभलगढ़, डेजर्ट नेशनल पार्क, टाटगढ़ रावली सहित प्रदेश के 25 अभयारण्यों के 8750.623 किमी क्षेत्र में जूलीफ्लोरा से जैव विविधता को खतरा को पैदा हो गया है। जूलीफ्लोरा विषबेल के कारण शाकाहारी वन्यजीवों के लिए घास नहीं उग रही और वन्यजीव पलायन को मजूबर हैं। पाली जिले के जवाई बांध लेपर्ड कंजर्वेशन रिजर्व के आधे से अधिक भूभाग में भी जूलीफ्लोरा फैल चुका है।

किसी काम का नहीं जूलीफ्लोरा
वन्यजीवों के के लिए जूलीफ्लोरा किसी भी काम का नहीं है। इसका कारण यह है कि यह पौधा अपनी जड़ों और पत्तियों से ऐसा रसायन उत्सर्जित करता है जिससे कि इसके नीचे अन्य कोई वनस्पति पनप ही नहीं सकती।
- डॉ. सुमित डूकिया, वन्यजीव विशेषज्ञ


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