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जोधपुर के गांव में मिले राठौड़ों के दुर्लभ शिलालेख – अफसोस, कोई सुध लेने वाला नहीं..

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जोधपुर के गांव में मिले राठौड़ों के दुर्लभ शिलालेख - अफसोस, कोई सुध लेने वाला नहीं..

जोधपुर.

धांधल राठौड़ों के प्रमुख ठिकानों में से एक जोधपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भाखरवाला गांव में धांधल राठौड़ों के दुर्लभ शिलालेखों का पता चला है। यह गांव पूर्व में रोयला अथवा रोहिला के नाम से जाना जाता था। गांव की शोध यात्रा में धांधल सूरतसिंह, धांधल महेशदास, धांधल केसरीसिंह आदि की भव्य कलात्मक छतरियों सहित उनकी देवली भी प्रकाश में आई है। गांव में सूरतसिंह की भव्य कलात्मक छतरी जर्जर होकर ध्वस्त होने के कगार पर है लेकिन पुरातत्व विभाग अथवा पर्यटन विभाग की ओर से कोई सुध लेने वाला नहीं है। गांव में सूरतसिंह के पुत्र महेशदास की 20 खम्भों की छतरी में शिलालेख से प्राप्त जानकारी के अनुसार छतरी निर्माण कार्य में पांच हजार एक रुपए की लागत आई थी।

धांधल वंश का सूर्य
जोधपुर के महाराजा मानसिंह के कालखण्ड में ही धांधल केसरीसिंह की छतरी भी इसी गाँव में मौजूद है। महाराजा के विश्वास पात्र सेनानायकों में वीर केसरीसिंह का नाम उस समय अव्वल था। महाराजा मानसिंह के समय पांच प्रमुख मुसाहीबों में इनका नाम इतिहास ग्रन्थों में लिखा मिलता है। कविराजा बांकीदास ने इनके ऊपर कई डिंगल गीतों की रचना करते हुए 'पाल रौ पौतरौ' अर्थात् 'पाबूजी का पौता' कहकर सम्बोधित किया है। साथ ही कवि ने इनको धांधल वंश का सूर्य बताया है।

इतिहास गरिमामयी रहा
वर्तमान में धांधल पूर्वजों की स्मृति में बनी कलात्मक छतरियां कभी भी ध्वस्त हो सकती है। छतरियों में लगी देवलियां संगमरमर के पत्थर से वहीं गुम्बज ईंटों से निर्मित है। कुछ अन्य छतरियां भी हैं जो 10 खम्भों की हैं। राजस्थानी शोध संस्थान के अधिकारी व शोधकर्ता डॉ. विक्रमसिंह भाटी के अनुसार राठौड़ों की धांधल शाखा का इतिहास बड़ा ही गरिमामयी रहा। राठौड़ों ने जोधपुर राज्य की सेवा में रहते हुए प्रधान, मुसाहीब, किलेदार, कोतवाल, रसोड़े की दरोगाई, सुतरखाने की दरोगाई के पद पर सुशोभित होते रहे। जोधपुर राज्य के इतिहास में महाराजा अभयसिंह के समय धांधल सूरतसिंह को रोहिला गाँव का पट्टा मिला था। समय-समय पर अपनी योग्यता के बल पर उन्हे केलावा खुर्द, भादराजूण परगने का काकरिया गांव सहित लोरोली और विरामा गांव आदि भी ईनाम में मिले थे। लावारिस पड़े एेतिहासिक शिलालेखों के आधार पर शोध किया जाए तो जोधपुर से जुड़े इतिहास की कई नई जानकारियां सामने आ सकती हैं।