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सिर्फ पृथ्वी ही नहीं इस ग्रह पर भी रहते थे डायनसोर!, जानिए किसने किया ऐसा दावा

प्रदेश के दो अंतरिक्ष उत्साही भाइयों ने चंद्रमा पर डायनासोर के जीवाश्म और अंडे मिलने का दावा किया है।

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गजेंद्र सिंह दहिया, जोधपुर। प्रदेश के दो अंतरिक्ष उत्साही भाइयों ने चंद्रमा पर डायनासोर के जीवाश्म और अंडे मिलने का दावा किया है। यह दावा नासा के एलआरओसी वेबसाइट पर सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध लूनर रिकोनाइसेंस ऑर्बिटर कैमरा (एलआरओसी) की ओर से खींची गई चंद्रमा की तस्वीरों के अध्ययन के आधार पर किया गया है। दोनों का यह शोध अमरीका के न्यूयॉर्क साइंस जर्नल में भी प्रकाशित हुआ है।

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लंबे समय से यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि चंद्रमा पर जीवन उसके विकास के किसी चरण में मौजूद रहा होगा, लेकिन अभी तक इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाए हैं। राजस्थान के दो अंतरिक्ष उत्साही जगमोहन सक्सेना और डॉ. हरिमोहन सक्सेना ने चंद्रमा पर (दक्षिणी ध्रुव भी शामिल) कुछ जीवाश्म जैसी वस्तुओं की खोज की है, जो डायनासोर के जीवाश्म, डायनासोर के अंडों और उसके भ्रूण से काफी समानता रखते हैं। चंद्रमा की सतह के नीचे डायनासोर जैसे बड़े पक्षी के जीवाश्म भ्रूण वाले अंडे खोजे गए हैं।

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भ्रूणों को अस्थायी रूप से क्रमश लुनासॉरस सक्सेनाई (जीनस नॉवेलसी, स्पीशीज नॉवेलसी) और चंद्रसौरस पोलारिस (जीनस नॉवेलसी, स्पीशीज नॉवेलसी) नाम दिया गया है। पोलारिस नाम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से लिया गया है, जहां इसकी खोज की गई थी। कुछ जीवाश्म आकार में मानव खोपड़ी के समान दिखते हैं, हालांकि समान नहीं हैं और संभवत: एलियन की खोपड़ी हो सकते हैं। जगमोहन बीकानेर में सेवानिवृत्त बैंक मैनेजर हैं। उनके बड़े भाई डॉ. हरिमोहन इम्यूनोलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं, जो जयपुर में रहते हैं।

2020 में ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने किया था दावा
ऑस्ट्रेलिया में कर्टिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 2020 में चीन के चांग’ई-5 चंद्र मिशन द्वारा पृथ्वी पर लाए गए चंद्रमा की मिट्टी के नमूनों के भीतर सूक्ष्म कांच के मोतियों का अध्ययन किया। इन मोतियों की उम्र 66 मिलियन वर्ष आई। यह वही समय है जब पृथ्वी पर भीषण उल्कापात हुआ था, जिसमें डायनासोर खत्म हो गए थे।

विशेष फिल्टर व सेटिंग से तस्वीरें विकसित की
हमने एलआरओसी वेबसाइट पर उपलब्ध एलआरओसी की चंद्रमा की खीची गई तस्वीरों को विशेष फ़ल्टिर और सेटिंग्स से विकसित करके यह निष्कर्ष निकाला है।
-डॉ. हरिमोहन सक्सेना