वोट बैंक की राजनीतिउपचर के स्टेट सह संयोजक डॉ. कांतेश खेतानी ने बताया कि बिल के संशोधित प्रारूप में भी कई खामियां हैं। सभी सरकारी अस्पतालों में उपचार फ्री है। प्राइवेट हॉस्पिटल आरजीएस और चिरंजीवी योजना में ट्रीटमेंड कर रहे हैं, जो पहले ही कम है। संविधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार देश में राइज टू हेल्थ का पहले से ही सभी को हक है। किसी अस्पताल में आपात स्थिति में कोई ट्रीटमेंट से इनकार नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की राइट टू हेल्थ को लेकर सारी कवायद वोट बैंक की राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं है।
संशोधित प्रारूप पर प्रमुख आपत्तियां – इमरजेंसी की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। लिखा गया है कि रूल्स में परिभाषित होगी। – दूसरे अस्पताल में पहुंचाने के बाद ही अस्पताल उपचार का भुगतान लेने का हकदार होगा।
– फ्री में इमरजेंसी ट्रीटमेंट की पात्रता भी रूल्स में परिभाषित होगी। बिल को लेकर आशंका – ओपीडी क्लिनिक के भी दायरे में लाने की आशंका।- डॉक्टर,-नर्सिंग स्टाफ, आयुर्वेद-यूनानी चिकित्सक भी इसके दायरे में आएंगे।
– डिलीवरी के दौरान जच्चा-बच्चा के लिए ‘सेव दा लाइफ’ शब्द से कानूनी कार्रवाई की आशंका। मांग – जिला एवं राज्य प्राधिकरण में आइएमए के साथ प्राइवेट हॉस्पिटल के प्रतिनिधि भी हों।