
बर्खास्त आईपीएस भट्ट को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत
जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने गुजरात में विशेष अदालत (एनडीपीएस मामलात),पालनपुर के समक्ष लंबित कार्यवाही को बंद करने की मांग को लेकर दायर भारतीय पुलिस सेवा के बर्खास्त अधिकारी संजीव भट्ट की याचिका को खारिज कर दिया है। भट्ट गुजरात कैडर के आईपीएस थे, जिन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अगस्त, 2015 में अनाधिकृत रूप से गैर हाजिर रहने पर सेवा से बर्खास्त कर दिया था।
भट्ट ने हाईकोर्ट में फौजदारी याचिका दायर करते हुए कहा था कि एक ही मामले में उनके खिलाफ पालनपुर और जोधपुर स्थित एनडीपीएस मामलात कोर्ट में कार्यवाही विचाराधीन है। उन्होंने पालनपुर की कार्यवाही बंद करने के निर्देश देने की गुहार की थी। गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर हुई जांच के आधार पर भट्ट को गुजरात पुलिस ने सितंबर 2018 में गिरफ्तार किया था। बनासकांठा में पुलिस अधीक्षक रहते हुए भट्ट ने 1996 में पालनपुर में एनडीपीएस अधिनियम के तहत लगभग 1.15 किलोग्राम अफीम रखने के आरोप में पाली निवासी सुमेरसिंह राजपुरोहित को कथित रूप से गलत तरीके से फंसाया था।
बनासकांठा पुलिस ने तब दावा किया था कि यह मादक पदार्थ पालनपुर शहर में एक होटल में राजपुरोहित के नाम से बुक कमरे में बरामद किया गया, जबकि राजस्थान पुलिस की जांच में सामने आया था कि राजपुरोहित को कथित रूप से गलत तरीके से फंसाया गया था और पाली में आवास से बनासकांठा पुलिस उसको जबरन पकड़ कर ले गई थी। बाद में सुमेरसिंह को पालनपुर की अदालत ने सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था। झूठा फंसाने से व्यथित सुमेरसिंह ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पाली के समक्ष गुजरात के 7-8 अज्ञात पुलिस कर्मियों सहित नौ अभियुक्तों के खिलाफ एक परिवाद पेश किया था, जिस पर पाली कोतवाली पुलिस ने जांच के बाद एनडीपीएस मामलात कोर्ट, जोधपुर में चालान पेश किया।
न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग की एकलपीठ ने कहा कि पाली पुलिस की ओर से पेश चालान के बाद लंबित न्यायिक कार्यवाही और पालनपुर में चल रही कार्यवाही दो अलग-अलग अपराधों से संबंधित है, जबकि सीआरपीसी की धारा 186 के प्रावधान को आकर्षित करने के लिए पहली आवश्यकता यह है कि दो अलग-अलग न्यायालयों ने एक ही अपराध का संज्ञान लिया हो।
पालनपुर सिटी पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत साजिश के संबंध में थी, जिसमें यह पता लगाना था कि होटल के कमरे में मादक पदार्थ कौन लाया, जिसके आधार पर सुमेरसिंह राजपुरोहित को फंसाया गया, जबकि पाली में सुमेरसिंह ने एक संपत्ति विवाद में खुद को गलत फंसाने के संबंध में परिवाद पेश किया था। एकलपीठ ने कहा कि इस मामले में अपराध दो अलग-अलग शिकायतों से संबंधित हैं। याचिकाकर्ता की इस दलील पर कि दोनों कार्यवाही एक ही अपराध से संबंधित है, पर असहमति जताते हुए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
Published on:
02 Sept 2020 10:21 am
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