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सलमान के ड्राइवर की कोर्ट में गवाही नहीं कराने पर बचाव पक्ष ने उठाया सवाल

- सलमान हिरण शिकार प्रकरण में अंतिम बहस

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जोधपुर . बहुचर्चित काले हिरण का शिकार प्रकरण में जारी अंतिम बहस को सोमवार को आगे बढ़ाते हुए फिल्म अभिनेता सलमान खान के अधिवक्ता ने फिर अनुसंधान अधिकारी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जोधपुर जिला के पीठासीन अधिकारी देवकुमार खत्री के समक्ष सलमान के अधिवक्ता हस्तीमल सारस्वत ने सोमवार को कहा कि अनुसंधान अधिकारी ललित बोड़ा ने अपने बयानों में कहा था कि उन्हें हरीश दुलानी नामक व्यक्ति ने कहा कि वह शिकार के दौरान उपयोग में ली गई जिप्सी का ड्राइवर था, लेकिन जिप्सी सलमान ही चलाता था। अभियोजन ने इस महत्वपूर्ण गवाह को न्यायालय में जानबूझ कर पेश नहीं किया।

इसी प्रकार जिप्सी की निगरानी के लिए जिम्मेदार अंगदपाल व गोरधनसिंह और जिप्सी के मालिक अरुण यादव के बयान भी कोर्ट में नहीं करवाए। बचाव पक्ष ने लगातार दो घंटे तक अनुसंधान अधिकारी के बयानों पर बहस की। उन्होंने वन्यजीव विभाग की ओर से आरटीओ को भेजे पत्रों की प्रविष्टियों और जिप्सी की जांच के दौरान एफएसएल टीम की मौजूदगी पर भी संदेह जताया। उन्होंने जिप्सी में खून, बाल और छर्रों की बरामदगी को मैनेज करना बताया। सारस्वत ने 8 अक्टूबर १९98 को कोर्ट में भेजी गई एफआईआर पर चश्मदीद के हस्ताक्षर नहीं होने पर भी सवाल उठाया। समय अभाव के कारण बहस पूरी नहीं हो पाई। आगे की बहस 10 जनवरी को होगी। अंतिम बहस के दौरान अन्य आरापियों के अधिवक्ता केके व्यास, मनीष सिसोदिया और सरकार की ओर से नियुक्त विशिष्ट लोक अभियोजक भवानीसिंह भाटी उपस्थित थे।

अधिवक्ता सारस्वत ने बहस के दौरान कहा कि बोड़ा के बयानों के अनुसार चश्मदीद गवाह पूनमचंद और छोगाराम ने 2 अक्टूबर को प्रारम्भिक जांच में बताया कि 1 व 2 अक्टूबर की मध्य रात्रि सलमान खान, सैफ अली खान , नीलम, तब्बू, सोनाली बेंद्रे, दिनेश गावरे और दुष्यंत सिंह जिप्सी में बैठे और उन्होंने हिरणों का शिकार किया। पत्रावली में इन गवाहों के बयान में गवारे, अभिनेत्रियों और स्थानीय निवासी का नाम अंकित ही नहीं हैं। अभियोजन ने 2 अक्टूबर की तारीख अंकित कर चश्मदीद के नाम से झूठे और गलत बयान तैयार किए, जिन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। सारस्वत ने तर्क दिया कि अनुसंधान अधिकारी की जांच में सलमान की ओर से आग्नेय शस्त्रों से शिकार करना पाया गया, जबकि हाईकोर्ट के निर्णय में इन हथियारों का घटना के दौरान जोधपुर में होना नहीं माना था।