जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य के एकमात्र पर्वतीय स्थल माउंट आबू में निर्माण सामग्री की राशनिंग के लिए लागू टोकन प्रणाली को चुनौती देने वाली याचिका पर सिरोही जिला कलक्टर, उपखंड अधिकारी तथा नगर पालिका को जवाब तलब किया है।
न्यायाधीश डा.पुष्पेंद्रसिंह भाटी की एकलपीठ में माउंट आबू होटल एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता श्रेयांश मरडिया ने कहा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 25 जून 2009 को माउंट आबू को पारिस्थितिकी और पर्यावरण के दृष्टिकोण से संरक्षण को लेकर इको-सेंसिटिव जोन के रूप में अधिसूचित किया था। अधिसूचना के अनुसार राज्य सरकार को दो साल के भीतर एक जोनल मास्टर प्लान तैयार करना था। जोनल प्लान लागू होने तक एक मॉनिटरिंग कमेटी को अधिसूचना में वर्णित दायित्व निभाने थे, जिनमें नए निर्माणों की अनुमति, इमारतों में मरम्मत, नवनीकरण तथा पुनस्र्थापन सहित विकास गतिविधियों के लिए अनुमति दिया जाना भी शामिल था। मरडिया ने कहा कि जोनल प्लान समय पर तैयार नहीं किया गया, जिसके चलते मॉनिटरिंग कमेटी के कार्यकाल को अंतिम बार वर्ष 2015 में दो साल के लिए बढ़ाया गया। मॉनिटरिंग कमेटी ने एक टोकन प्रणाली लागू की, ताकि निर्माण सामग्री की राशनिंग की जा सके। इस प्रणाली के तहत मरम्मत जैसे आवश्यक कार्य के लिए भी आवेदक को टोकन के लिए प्रार्थना पत्र देना होता है। प्रार्थना पत्र स्वीकृत होने में कई महीनों लग जाते हैैं और टोकन में स्वीकृत निर्माण सामग्री ही आवेदक खरीद सकता है। उन्होंने कहा कि इको सेंसिटिव जोन की अधिसूचना या भवन निर्माण बायलॉज में ऐसे किसी प्रावधान का उल्लेख नहीं है, लेकिन मॉनिटरिंग कमेटी भंग होने के बावजूद टोकन सिस्टम लागू है। इसके चलते माउंट आबू के रहवासियों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। टोकन की आड़ में कई लोग कालाबाजारी भी करने लगे हैं।