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स्थापत्य कला समझने में पाण्डुलिपियों का विशेष महत्व : सूर्यवीरसिंह

  पाण्डुलिपि पठन एवं संरक्षण कार्यशाला का समापन आज

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स्थापत्य कला समझने में पाण्डुलिपियों का विशेष महत्व : सूर्यवीरसिंह

स्थापत्य कला समझने में पाण्डुलिपियों का विशेष महत्व : सूर्यवीरसिंह

जोधपुर. राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी में सात दिवसीय 'पाण्डुलिपि पठन एवं संरक्षणÓ कार्यशाला का समापन बुधवार को होगा। समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. केएस. गुप्ता एवं समारोह अध्यक्ष मेजर जनरल (सेवानिवृत्ति) शेरसिंह होंगे। कार्यशाला के छठे दिन सूर्यवीरसिंह ने स्थापत्य कला, शिल्प शास्त्र एवं वास्तु शास्त्र को समझने के लिए पाण्डुलिपियों का विशिष्ट महत्व है। मूर्ति निर्माण एवं भवन निर्माण में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, यह सब बातें प्राचीन ग्रन्थों में मिलती हैं। डॉ. दिलीप कुमार नाथानी ने पाण्डुलिपि का अर्थ, औचित्य, लेखन परम्परा एवं संरक्षण विधि के बारे में सविस्तार प्रकाश डाला। उन्होंने पाण्डुलिपि लेखन विधि के बारे में बताते हुए कहा कि प्राचीन समय में पाण्डुलिपि लेखन ताड़ पत्र, भोज पत्र, ताम्र पत्र, शिला आदि पर होता था। पाण्डुलिपियों से इतिहास का केवल एक पक्ष ही प्रकट नहीं होता बल्कि जन सामान्य की तत्कालीन प्रवृत्तियों का भी ज्ञान होता है। कार्यशाला में पूर्व शोध अधिकारी प्राविप्रा डॉ. वसुमति शर्मा ने कहा कि राजस्थान के विविध शोध केन्द्रों में विपुल मात्रा में मौजूद पाण्डुलिपियों के अध्ययन से यहां की कला, संस्कृति, इतिहास एवं साहित्य को भली-भांति समझा जा सकता है। ग्रन्थों की आज के युग में भी प्रासंगिकता है। संचालन संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. सद्दीक मोहम्मद ने किया।