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अपाचे AH-64E हेलिकॉप्टर के बालू रंग का क्या है राज? राजस्थान में पाक बॉर्डर पर बनेगा दुश्मन का काल, जानिए इसकी ताकत

AH-64E Apache: भारतीय सेना अपाचे हेलिकॉप्टरों को पश्चिमी सीमा पर अपनी अटैक एविएशन रणनीति का मुख्य आधार बना रही है। जानिए अमरीका से भारत को मिले AH-64E हेलिकॉप्टर को क्यों दिया गया है बालू रंग।

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apache attack helicopter

भारतीय वायुसेना के हिंडन एयरबेस पर अपाचे हेलीकॉप्टर लेकर उतरा अमरीकी बोइंग कम्पनी का कार्गों विमान। 

AH-64E Apache: अमरीका से कार्गों विमान में भेजे गए शेष तीन AH-64E अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर भारत पहुंच गए हैं। इसकी आधिकारिक जानकारी अमरीकी दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा की। इन हेलिकॉप्टरों के पहुंचने के साथ ही राजस्थान के जोधपुर स्थित 451 आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन का 6 हेलिकॉप्टरों वाला अपाचे का स्क्वाड्रन पूरा हो गया है।

असेंबल करने की प्रक्रिया शुरू, लाया जाएगा जोधपुर

हिंडन एयरबेस पर पहुंचने के बाद इन अपाचे हेलिकॉप्टरों को असेंबल करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। तकनीकी जांच, ग्राउंड ट्रायल और आवश्यक औपचारिकताओं के बाद इन्हें उड़ान के लिए तैयार किया जाएगा।

हेलिकॉप्टरों को असेंबल करने की पूरी प्रक्रिया में लगभग एक सप्ताह का समय लगेगा। इसके बाद हेलिकॉप्टरों को जोधपुर लाया जाएगा, जहां इन्हें स्क्वाड्रन में शामिल कर ऑपरेशनल भूमिका दी जाएगी।

अपाचे AH-64E: रेगिस्तानी इलाकों में रहेगी अहम भूमिका

इस साल 22 जुलाई को 3 अपाचे का पहला बैच भारत पहुंचा था। अब बचे शेष 3 हेलीकॉप्टर भी आ गए हैं। सभी 6 हेलिकॉप्टर मिलने के बाद जोधपुर स्थित आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन पूरी तरह ऑपरेशनल हो सकेगा।

सेना इन अपाचे हेलिकॉप्टरों को पश्चिमी सीमा पर अपनी अटैक एविएशन रणनीति का मुख्य आधार बना रही है, जहां रेगिस्तानी इलाकों में इनकी भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है।

इस वजह से अपाचे हेलिकॉप्टर की डिलीवरी में हुई देरी

भारतीय सेना (आर्मी) ने वर्ष 2020 में 6 अपाचे हेलिकॉप्टर के लिए अमरीका के साथ करीब 600 मिलियन डॉलर का समझौता किया था। वैश्विक सप्लाई चेन और तकनीकी कारणों से डिलीवरी में करीब 15 महीने की देरी हुई। गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना पहले ही 22 अपाचे हेलिकॉप्टर अपने बेड़े में शामिल कर चुकी है।

इस कारण से फ्लाइंग टैंक माने जाते हैं अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर

अपाचे AH-64E को उसकी आक्रामक क्षमता और युद्ध क्षेत्र में टिके रहने की ताकत के कारण फ्लाइंग टैंक कहा जाता है। यह हेलिकॉप्टर अमरीका के एरिजोना स्थित मेसा शहर में निर्मित होता है।

एएच-64ई अमरीकी सेना सहित कई देशों की सेनाओं में सक्रिय सेवा में है। भारत के लिए बोइंग कम्पनी ने हेलीकॉप्टर पर बालू रंग किया है ताकि रेगिस्तान क्षेत्र में आसानी से युद्ध लड़ सके

दुनियाभर में 400 से अधिक अपाचे हेलिकॉप्ट सेवा में

अपाचे हेलिकॉप्टर हेलफायर मिसाइल, 70 मिमी रॉकेट और 30 मिमी चेन गन से लैस होता है। यह दुश्मन के टैंक, बंकर और एयर डिफेंस सिस्टम को सटीक तरीके से निशाना बनाने में सक्षम है। अत्याधुनिक सेंसर, नाइट फाइटिंग क्षमता और नेटवर्क आधारित युद्ध प्रणाली इसे उच्च जोखिम वाले युद्ध क्षेत्रों में भी बेहद प्रभावी बनाती है।

एएच-64ई संस्करण में बेहतर डिजिटल कनेक्टिविटी, शक्तिशाली इंजन और ड्रोन को रियल टाइम में नियंत्रित करने जैसी आधुनिक क्षमताएं शामिल हैं। दुनियाभर में 400 से अधिक अपाचे हेलिकॉप्ट सेवा में हैं और अमरीकी सेना का यह बेड़ा 45 लाख से ज्यादा उड़ान घंटे पूरे कर चुका है।

अमरीका की डिफेंस सिक्योरिटी कोऑपरेशन एजेंसी के मुताबिक, अपाचे AH-64E के शामिल होने से भारतीय सेना की ताकत में इजाफा होगी। यह हेलिकॉप्ट जमीन पर मौजूद खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने में इंडियन आर्मी की सहायता करेगा । भारतीय सेना की सैन्य क्षमताओं के आधुनिकीकरण की दिशा में भी एक अहम कदम साबित होगा।

भारत से पहले बोइंग कंपनी ने अपाचे हेलिकॉप्टर अमरीकी फौज के जरिए मिस्र, ग्रीस, इंडोनेशिया, इजराइल, जापान, कुवैत, नीदरलैंड्स, कतर, सऊदी अरब और सिंगापुर को बेचे हैं। अपाचे हेलिकॉप्टर को दुनिया की सबसे आधुनिक और अत्याधुनिक युद्ध मशीनों में गिना जाता है।

ये है अपाचे हेलिकॉप्टर की सबसे बड़ी ताकत

अपाचे हेलिकॉप्टर उड़ाना किसी भी नए पायलट के लिए आसान नहीं होता। इसके लिए लंबी, सख्त और बेहद महंगी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। हेलिकॉप्टर को नियंत्रित करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है। इसे 2 पायलट मिलकर ऑपरेट करते हैं।

इसमें मुख्य पायलट पीछे बैठता है, जिसकी सीट कुछ ऊंची होती है। वह उड़ान और नियंत्रण संभालता है। आगे बैठे दूसरे पायलट के पास लक्ष्य साधने और हथियार चलाने की जिम्मेदारी होती है। अपाचे की सबसे बड़ी ताकत इसकी जबरदस्त सटीकता है।