
Supreme court - सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ के जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में कार्यरत संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर एकल पीठ के आदेश के खिलाफ दायर 103 अपीलों को खारिज करने को चुनौती देने वाली विशेष निगरानी याचिका को निर्णित कर दिया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मूल रिट याचिकाकर्ता केवल रिट याचिका दायर करने के तीन साल पहले की अवधि के लिए नियमितीकरण पर वास्तविक परिणामी लाभों के हकदार हैं। वे नियमितीकरण पर सेवा में निरंतरता के हकदार होंगे और समान रूप से नियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण की तारीख़ से लाभ प्राप्त करेंगे।
न्यायाधीश एमआर शाह तथा न्यायाधीश बीवी नागरथन की खंडपीठ में जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी ने राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ के 13 अगस्त, 2021 के आदेश को विशेष अनुमति याचिकाएं दायर करते हुए चुनौती दी थी। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यूनिवर्सिटी की विशेष अपीलों को खारिज करते हुए एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा था। एकल पीठ ने 15 से लेकर 30 सालों तक संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों को नियमित नियुक्ति प्रदान करने के आदेश जारी किए थे। संविदा कर्मचारियों की ओर से कहा गया था कि एकल पीठ के फैसले के बाद कुछ कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया, जबकि अधिकांश के खिलाफ अपीलें दायर की गई। खंडपीठ ने पाया कि कुछ कर्मचारी 1991 से कार्यरत हैं और उनकी सेवाएं संतोषजनक हैं, लेकिन इसके बावजूद यूनिवर्सिटी उन्हें नियमित नहीं कर रही। खंडपीठ ने यूनिवर्सिटी, राज्य सरकार तथा संविदा कर्मचारियों की ओर से उपस्थित अधिवक्ताओं की सुनवाई के पश्चात कहा था कि एकल पीठ के निर्णय में कोई और असंगतता प्रतीत नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा था कि आक्षेपित निर्णय में हाईकोर्ट ने परिणामी लाभ के साथ संविदा कर्मचारियों की सेवाएं नियमित करने के आदेश दिए हैं। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए नियमितीकरण करने वाले आक्षेपित निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। हालाँकि, शीर्ष कोर्ट ने परिलाभों को लेकर सीमित बिंदु पर नोटिस जारी किए थे। अप्रार्थी कर्मचारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ विनीत कोठारी ने पैरवी की।
Published on:
30 Mar 2022 04:01 pm
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