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विश्व की सबसे पुरानी पर्वतमाला Arawali की चोटियां क्यों हो रही गायब

- प्री केम्ब्रियन युग की 42 प्रतिशत ही रही है अरावली, 58 पर्वतमाला का भू-उपयोग बदला- दिल्ली-हरियाणा में अरावली को सर्वाधिक नुकसान, लोगों ने फार्म हाउस बना लिए- संरक्षण नहीं करने पर 2059 तक केवल 35 फीसदी ही बचेगी- केंद्रीय विवि ने 1975 से लेकर 2059 तक रिमोट सेंसिंग डाटा से किया अध्यययन

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गजेन्द्र सिंह दहिया/जोधपुर. थार मरुस्थल की प्राकृतिक ग्रीन वॉल कही जाने वाली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमाला अरावली का 58 प्रतिशत भू-उपयोग बदल गया है। इसमें आबादी, कृषि, बंजर भूमि और खनन शामिल है। अरावली का सर्वाधिक नुकसान हरियाणा और दिल्ली के हिस्सों में हुआ है जहां लोगों ने फार्म हाउस बनाकर अतिक्रमण कर लिए। अगर अरावली का समय रहते संरक्षण नहीं किया गया तो यह प्राकृतिक दीवार हट जाएगी और मरुस्थल दिल्ली के द्वार खटखटाने लगेगा। वर्ष 2059 तक अरावली पर्वतमाला के 65 फीसदी भू-भाग पर भू-उपयोग परिवर्तन की आशंका है।

केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान के पर्यावरण अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ एलके शर्मा और उनके शोधार्थी आलोक राज की ओर से अरावली पर किया गया शोध हाल ही में प्रसिद्ध विज्ञान जर्नल अर्थ साइंस इन्फोर्मेटिक्स में प्रकाशित हुआ है। अरावली पर्वतमाला प्री केम्ब्रियन युग में 150 करोड़ वर्ष पहले बनी है। यह विश्व की प्राचीनतम पर्वतमाला है जो अब अवशिष्ट पर्वत के रूप में है। केंद्रीय विवि ने 1975 से 2019 तक अरावली पर्वतमाला में हुए भू-उपयोग परिवर्तन और 2019 से लेकर 2059 तक तक होने वाले परिवर्तन को बताया है। यह अध्ययन रिमोट सेंसिंग तकनीक और गणितीय गणनाएं करने वाले कार्ट मॉडल की सहायता से किया गया है। अरावली गुजरात के पालनपुर से लेकर दिल्ली के रायसीना हिल्स तक 650 किलोमीटर में विस्तृत है, जिसमें से 550 किलोमीटर राजस्थान में है।

गत 45 साल में अरावली से ऐसे कम होते गए जंगल
वर्ष —– आबादी—-जंगल—बंजर भूमि—कृषि भूमि—जलाशय— खनन
1975—- 4.5 —- 46.3 —- 26.9 —- 18.9 —- 1.7 —- 1.8
1989 —-7.8 —- 36.9 —- 31.1 —- 20.5 —- 1.9 —-1.8
1999 —- 9.9 —- 39.6 —-26.1 —- 20.5 —- 1.9 —- 2.0
2009—-11.5 —- 37.1 —- 25.2 —- 22.1 —- 2.0 —- 2.1
2019 —-13.3 —- 38.7—- 22.2 —-21.9 —- 1.8 —- 2.2
………………………….

अगले 40 साल में 35 फीसदी ही बचेगी मूल पर्वतमाला
वर्ष —– आबादी—-जंगल—बंजर भूमि—कृषि भूमि—जलाशय— खनन
2029 —-16.3 —-33.4 —-16.2 —-29 —- 2.4 —- 2.8
2039—- 20.2 —-35.9 —- 5.9 —-32.8—-2.0 —-3.2
2049—-21.6 —- 35.8 —-4.3 —- 33.2 —- 1.8 —-3.3
2059 —-22.9 —-34 —- 3.1 —- 35.0 —-1.6 —- 3.5
……………………
पानीपत से पोरबंदर तक 1400 किमी की ग्रीन वॉल का प्रस्ताव
अरावली का संरक्षण करने की बजाय केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में नोएडा में आयोजित जलवायु सम्मेलन कोप्स-14 में हरियाणा के पानीपत से लेकर गुजरात के पोरबंदर तक 1400 किलोमीटर की कृत्रिम ग्रीन वॉल बनाने का प्रस्ताव दिया था जो अभी भी पाइपलाइन में है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कृत्रिम की जगह प्राकृतिक ग्रीन वॉल अरावली को बचाया जाए तो जलवायु तौर से भी अधिक फायदा होगा।

सहारा मरुस्थल के आगे पर्वत नहीं, बनानी पड़ रही कृत्रिम ग्रीन वॉल
अफ्रीकी महाद्वीप के देशों में अरावली पर्वतमाला जैसी प्राकृतिक दीवार नहीं होने से सहारा मरुस्थल को आगे बढऩे से रोकने के लिए कृत्रिम ग्रीन वॉल बनाई जा रही है जो 11 देशों बुर्किना फासो, चाड, जिबूती, इरिट्रिया, माली, मॉर्टिआना, नाइजर, नाइजीरिया, सेनेगल और सूडान से गुजरेगी।
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‘हमें कृत्रिम ग्रीन वॉल बनाने की बजाय अपनी अरावली को संरक्षित करना होगा। अरावली में लगातार भू-उपयोग परिवर्तन बढ़ रहा है जो जलवायु के लिए खतरनाक साबित होगा।’
-डॉ एलके शर्मा, पर्यावरण अध्ययन विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान (अजमेर)

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