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श्रावण-भादों में मारवाड़ के दो प्रमुख मेले हुए बंद

जोधपुर के मंडोर में ऐतिहासिक वीर पुली मेले के लिए चलाई जाती थी विशेष ट्रेन, नागपंचमी का मेला भी अब सिर्फ यादों के पन्नों में

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श्रावण-भादों में मारवाड़ के दो प्रमुख मेले हुए बंद

श्रावण-भादों में मारवाड़ के दो प्रमुख मेले हुए बंद

NAND KISHORE SARASWAT

जोधपुर. श्रावण और भादो में जोधपुर के मंडोर उद्यान में लगने वाले कई ऐतिहासिक सांस्कृतिक मेले अब इतिहास के पन्नों में ही रह गए है। जिला प्रशासन की अनदेखी और मंडोर उद्यान की लगातार दुर्दशा मेलों के बंद होने का एक प्रमुख कारण रहा है। तीन दशक पूर्व तक वीर पुरी के मेले के लिए रेल प्रशासन की ओर से मंडोर व जोधपुर के बीच 'विशेष ट्रेनÓ भी संचालित होती थी किंतु लगातार यात्रियों की संख्या कम होने के कारण सेवा को बंद करना पड़ा।

डेढ़ दशक पहले ही बंद हो गया मेला

मारवाड़ के सपूतों की याद में लगने वाला विशाल ऐतिहासिक Óवीरपुरी का मेला' अब पिछले डेढ़ दशक से बंद हो चुका है। ऐतिहासिक मेला उन तमाम वीर शहीदों और लोकदेवताओं की स्मृति में होता था जिन्होंने मारवाड़ के गौरव और यहां की मातृभूमि के मान सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाकर एक मिसाल प्रस्तुत की थी। मारवाड़ के महाराजा अजीतसिंह ने एक विशाल चट्टान पर मारवाड़ के वीरों की विशाल मूर्तियां वीरों की स्मृति स्वरूप उत्कीर्ण करवाई, जिसे वीरों के दालान के नाम से भी जाना जाता है। दालान में वीरों के साथ लोक देवताओं की मूर्तियां है। यहां की मूर्तियां 18 वीं सदी की स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण कही जा सकती है। ऐतिहासिक तथ्य बताते है कि यह मेला वास्तव में उन शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि रहा जिन्होंने मुगलकाल के दौरान हुए आक्रमणों को रोका था। मंडोर क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार मेले के लिए निगम की ओर से स्टॉलों तक की निलामी होती थी। झूले लगते थे। लेकिन उद्यान में प्रशासन की लगातार अनदेखी और अव्यवस्था के कारण लोगों का मोह भंग होने से धीरे धीरे मेले कागजों में ही रह गए।

नाग पंचमी का मेला भी खत्म

'वीरपुरी के मेले के साथ-साथ भाद्रपद मास की पंचमी तिथि को मंडोर में 'नागपंचमीÓ का मेला लगता था। जिसके बारे में कहा जाता है कि जोधपुर की भोगिशैल पहाडिय़ों में कभी विशाल सर्पों ने उत्पात मचाया था, तब श्रद्धालु भक्तों ने नागों की पूजा करके मंडोर को सर्पों से मुक्त करवाया था। नागपंचमी का मेला तो दो से तीन दिन तक चलता था, लेकिन अब ऐसा नहीं हैं।