
HAL Rudra
जोधपुर एयरबेस पर लड़ाकू हेलिकॉप्टर एएलएच मार्क-4 यानी रुद्र की तैनाती की गई है। जोधपुर एयरबेस देश का पहला एयरबेस है, जहां इस स्वदेशी हेलिकॉप्टर की तैनाती की गई है। यह एक लड़ाकू हेलीकॉप्टर है जिसको धु्रव के स्थान पर तैनात किया गया है। रुद्र ग्राउंड पर एंटी टैंक, रैकी जैसे मिशन करने में सक्षम है।
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा निर्मित इस हेलिकॉप्टर के आगे बड़ी गन लगी हुई है। सटीक निशाना साधने के लिए इसके ऊपर ही 20 एमएम की केनन यानी कैमरे की लैंस लगी है। केनन की मदद से पायलट एयर टू एयर और एयर टू ग्राउंड अटैक करने में समक्ष है। साथ ही इसमें 70 एमएम का रॉकेट मिसाइल सिस्टम लगा है। एक साथ 40-45 रॉकेट और 8 मिसाइल ले जाने में सक्षम है। हेलिकॉप्टर की खासियत यह है कि यह फ्यूल टैंक पर गोली लगने के बाद भी यह नहीं फटेगा। गोली लगते ही यह सील हो जाएगा, जिससे किसी तरह का हादसा नहीं होगा। यह 290 से 300 किमी प्रति घंटा की स्पीड से उड़कर हमला करता है।
पाक सेना को धूल चटाने वाले मिग-21 अब नहीं नजर आते जोधपुर के आसमान पर
पाकिस्तान के साथ 1971 की लड़ाई में निर्णायक भूमिका निभाने वाले फाइटर जेट मिग-21 की जोधपुर से रवानगी हो गई है। पायलट ट्रेनिंग के समय अब जोधपुर के आसमान पर मिग-21 नजर नहीं आएंगे। वायुसेना ने पिछले महीने ही यहां तैनात मिग-21 की एकमात्र स्क्वॉड्रन को बाड़मेर के उत्तरलाई में शिफ्ट कर दिया। उडऩ ताबूत कहे जाने वाले मिग-21 श्रेणी के विमान की संख्या अब 100 के करीब रह गई है। इन विमानों को 2024 तक पूरी तरह फेज आउट कर दिया जाएगा। मिग-21 के जाने के बाद जोधपुर वायुसेना स्टेशन पर सुखोई-30 एमकेआई और मिग-27 एडवांस फाइटर जेट की स्क्वॉड्रन तैनात है।
चीन से 1962 में युद्ध के बाद भारतीय वायुसेना ने लड़ाकू विमान खरीदने का निर्णय किया। वर्ष 1963 में भारत ने रुस से मिग-21 विमान खरीदे। सिंगल इंजन जेट यह विमान उस समय 3.50 करोड़ का था। रूस ने एमओयू के तहत भारत को विमान की टेक्नोलॉजी मुहैया करवाई। उसके बाद हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने इसका उत्पादन शुरू किया। जोधपुर में 1967 में मिग-21 तैनात किया गया। वर्ष 1971 की लड़ाई में जोधपुर से ही मिग-21 उड़े थे और पाकिस्तानी टैंकरों को नेस्तानाबूद किया था। चालीस साल तक जोधपुर में मिग-21 की कई स्क्वॉड्रन रही। यह विमान दुश्मन की धरती पर बम व रॉकेट गिराने में काम आता है। विमान से विमान की लड़ाई के लिए भारत ने बाद में सुखोई खरीदे।
872 में से अब 100 बचे
एचएएल ने भारत में 872 मिग-21 श्रेणी के फाइटर प्लेन बनाए। इसके समानांतर मिग-23, मिग-25, मिग-27 और मिग-29 भी वायुसेना के बेड़े में शामिल हुए। कुल 1200 विमानों के बेड़े में दो तिहाई मिग-21 ही थे। तकनीकी खामी और विमान का इंजन पुराना हो जाने की वजह से पिछले एक दशक में मिग-21 के हादसे होने लग गए और इसे उडऩ ताबूत कहा जाने लगा। मिग-21 श्रेणी के 872 विमानों में से 483 क्रेश हो चुके हैं जिसमें से 172 पायलट की जान जा चुकी है। इसमें 39 आम नागरिक भी मारे गए। अब वायुसेना के पास करीब 100 परिष्कृत मिग-21 विमान बचे हैं, जो राजस्थान में उत्तरालाई के अलावा बीकानेर स्थित नाल में तैनात है। अंबाला स्टेशन सहित देश के कुछ स्थानों पर मिग-21 की स्क्वॉड्रन अब भी है जिसे धीरे-धीरे करके 2024 तक पूरी तरीके से वायुसेना से हटा लिया जाएगा।
Published on:
21 Oct 2017 03:59 pm
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