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BARK —- भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र की तकनीक से मिलेगी टेक्सटाइल इकाइयों के अपशिष्ट पानी की समस्या से निजात

-टैक्सटाइल इकाइयों के अपशिष्ट पानी से मिलेगी निजात, जोजरी लेगी राहत की सांस- रेडिएशन ग्राफ्टेड सेलूलोज़ आधारित तकनीक से रीसाइकिल होगा पानी- भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने उद्यमियों को बताई नई तकनीक

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जोधपुर

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Amit Dave

May 27, 2022

BARK ---- भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र की तकनीक से मिलेगी टेक्सटाइल इकाइयों के अपशिष्ट पानी की समस्या से निजात

BARK ---- भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र की तकनीक से मिलेगी टेक्सटाइल इकाइयों के अपशिष्ट पानी की समस्या से निजात

जोधपुर।
जोधपुर के टैक्सटाइल उद्योगों से निकलने वाले रंगीन अपशिष्ट पानी की समस्या से निजात मिलेगी व इकाइयों के पानी से प्रदूषित हो रही जोजरी नदी राहत की सांस लेगी। इसके लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बार्क) के वैज्ञानिकों ने टैक्सटाइल इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट जल को पुन: उपयोग में लाने योग्य बनाने वाली नई तकनीक विकसित की है। जिसका बार्क के वैज्ञानिकों ने हैवी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित टेक्सटाइल इकाई में जोधपुर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (जेआईए), जोधपुर परमाणु नियंत्रण-अनुसंधान फाउंडेशन के पदाधिकारियों व उद्यमियों के सामने डेमो किया। बार्क के वैज्ञानिक राधेश्याम सोनी के निर्देशन में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी विरेन्द्र कुमार व नीलांजन मिश्रा ने नई तकनीक की जानकारी दी।
इस अवसर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की क्षेत्रीय अधिकारी शिल्पी शर्मा, जोधपुर प्रदूषण नियंत्रण और अनुसंधान फाउंडेशन निदेशक गजेन्द्रमल सिंघवी, अशोक कुमार संचेती, प्रबंध निदेशक जीके गर्ग, कार्यकारी निदेशक ज्ञानीराम मालू, कोषाध्यक्ष मनोहरलाल खत्री व जेआईए सहसचिव अनुराग लोहिया सहित अनेक उद्यमी उपस्थित थे।
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यह है तकनीक
यह उपकरण जल प्रदूषण से आयनिक रंगों को हटाने के लिए रेडिएशन ग्राफ्टेड सेलूलोज़ आधारित तकनीक युक्त है। जो कार्ट्रिज तकनीक का उपयोग कर टैक्सटाइल उद्योगों से निकलेने वाले रंगीन पानी से रंगों और रसायनों के सोखने का कार्य करता है। इन कार्ट्रिज में किसी प्रकार का कोई रेडिएशन नहीं होता है उन्हें सूती वस्त्र उद्योगों में उपयोग किए जाने वाले रंगों और रसायनों के शोषण के लिए रासायनिक रूप से सक्रिय किया जाता है। इसमें उपयोग होने वाला कार्ट्रिज गामा रेडिएशन को निष्क्रिय कर देते है। जिससे इसके अन्दर जितने भी आयरन है, वह इसमें रह जाते है और साफ पानी मिलता है। यह साफ पानी खेतों में और पुनः काम में लेने योग्य हो जाता है।

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देश में 10 स्थानों पर स्थापित यह तकनीक
इस उपकरण को छोटी इकाइयों में भी पोर्टेबल, फिक्स्ड या ओवरडैड संरचनाओं से लटकाकर स्थापित किया जा सकता है। यह तकनीक पहले ही देश में लगभग 8 से 10 स्थानों पर स्थापित की जा चुकी है। जिसमें सूरत में गार्डन वेरेली और गुजरात के जैतपुर में कुटीर उद्योग शामिल हैं।
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यह नतीजा आया
परीक्षण के दौरान लिए गए प्रदूषित पानी के सेम्पल में ना सिर्फ रंग में परिवर्तन हुआ बल्कि उद्योगों से लिए गए सेम्पल के टीडीएस में 40 प्रतिशत और एसटीपी प्लांट से लिए गए पानी में लगभग 30 प्रतिशत टीडीएस की कमी देखी गई। वर्तमान में जोजरी में सैंकड़ों इकाइयों का रंगीन पानी जा रहा है।

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प्लांट स्थापित किया जाएगा, बार्क करेगा रखरखाव
जेआईए ने बार्क के साथ एमओयू साइन किया है, जिसके तहत बार्क आगे भी नए अनुसंधान करके एक अच्छा मॉडल तैयार किया जाये। इसके तहत, जोधपुर में 25 केएलडी का एक प्लांट स्थापित किया जाएगा, और उसके पूरे रखरखाव की जिम्मेदारी भी बार्क की होगी। एक वर्ष के परिणाम आने के बाद इसे व्यवसाइयों को सौंपा जाएगा।

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बार्क की नई तकनीक वाले उपकरण को डेमो यूनिट में स्थापित कर इसका संचालन किया गया। इसके परिणाम काफी उत्साहजनक आए। इससे जोधपुर और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों में वर्षो से चली आ रही अपशिष्ट जल की समस्या से निजात मिलेगी। यह तकनीक उद्योगों को बड़े हद तक पानी को रीसायकल करने में मदद करेंगी।
एनके जैन, अध्यक्ष

जेआईए
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