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जीडीपी से संसार नहीं चलता, करुणा-कृतज्ञता लुढक़ा रहे हैं जीवन के पहिए: नोबल लॉरिएट कैलाश सत्यार्थी

Noble Laureate Kailash Satyarthi JNVU News - युवाओं से कहा, भारत की भूमि से करें करुणा का वैश्वीकरण

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जीडीपी से संसार नहीं चलता, करुणा-कृतज्ञता लुढक़ा रहे हैं जीवन के पहिए: नोबल लॉरिएट कैलाश सत्यार्थी

जीडीपी से संसार नहीं चलता, करुणा-कृतज्ञता लुढक़ा रहे हैं जीवन के पहिए: नोबल लॉरिएट कैलाश सत्यार्थी

जोधपुर. नोबल शांति पुरस्कार विजेता व बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी ने अंधाधुंध वैश्वीकरण व देशों की व्यवसायी प्रवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि संसार जीडीपी से नहीं चलता है। संतोष, शांति, करुणा, कृतज्ञता जीवन के पहियों को लुढक़ा रही है। सब चीजों का वैश्वीकरण हो रहा है। नौजवानों को चाहिए कि वे भारत की भूमि से करुणा का वैश्वीकरण करें। करुणा भारतीयों के संस्कार व उनके डीएनए का हिस्सा है।
सत्यार्थी ने शुक्रवार को जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के 17वें दीक्षांत समारोह को वर्चुअली संबोधित करते हुए अपने हैंड कांस्टेबल पिता व अनपढ़ माता का उदाहरण देकर करुणा, उत्तरदायित्व, जिम्मेदारी, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, स्वावलंबन, संतोष जैसे नैतिक मूल्यों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि उनकी अनपढ़ मां ने पिता की मृत्यु के बाद सबको पढ़ाया। यहां तक की बहनों को भी स्कूल भेजा। पुलिसकर्मी पिता ने एक बार बड़े अपराधी को जान जाखिम में डालकर पकड़ा लेकिन उस पर राजेनताओं का हाथ होने से उन्हें सस्पेंड होना पड़ा। पिता के समकक्ष पुलिस वाले गली, नुक्कड़ की दुकानों से उगाही कर लेते थे। हमारे पास संसाधनों की कमी होने के बावजूद कभी भी मां ने दूसरों के सामने हाथ नहंी फैलाने दिए।

जोधपुर के विद्यार्थियों से उन्होंने कहा कि वे अपने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से सीख ले सकते हैं जो सकारात्मक राजनीति के जरिए बड़े मुद्दे उठाकर जन कल्याण का कार्य करते हैं।

केवल पैसे की सोच ले जा रही खतरनाक दुनिया में
सत्यार्थी ने कहा कि पैसा कमाना अच्छी बात है लेकिन केवल पैसे की सोच युवाओं को खतरनाक दुनिया में ले जा रही है। अब चुनौतियां अलग है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, डिजिटल वल्र्ड जिस दुनिया में धकेल रही है वहां उत्तरदायित्व का बोध सिकुड़ रहा है।

यह डिग्री नहीं प्रकाशपुंज है
सत्यार्थी ने दीक्षांत समारोह में उपाधि प्राप्त करने वाले छात्रों से कहा कि यह डिग्री भर नहीं है। यह प्रकाश पुंज है जिससे गली, मोहल्ले, समाज व राष्ट्र में प्रकाश फैलाना है। दीक्षा यही है कि हम कैसे एक दूसरे के काम आ सकते हैं।