31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

world environment day : मारवाड़ में मतीरे की राड़…आंवळ-बांवळ की बाड़

अकाल से जूझती मरुधरा में पेड़-पौधों के प्रति यहां के लोगों का गहरा रिश्ता रहा है। मारवाड़-मेवाड़ के बीच सीमा विवाद का हल भी वनस्पति के आधार पर हुआ तो यहां एक मतीरे के लिए भी युद्ध लड़ा गया।

2 min read
Google source verification
Environment

Environment

मारवाड़ में मतीरे की राड़...आंवळ-बांवळ की बाड़
पर्यावरण दिवस आज : जोधपुर में पेड़ों की कटाई पर 293 साल पहले ही लगा दी थी
जोधपुर. अकाल से जूझती मरुधरा में पेड़-पौधों के प्रति यहां के लोगों का गहरा रिश्ता रहा है। मारवाड़-मेवाड़ के बीच सीमा विवाद का हल भी वनस्पति के आधार पर हुआ तो यहां एक मतीरे के लिए भी युद्ध लड़ा गया। दुनिया में इस तरह का कोई अन्य उदाहरण पढऩे-सुनने में नहीं आता है। पेड़ों की कटाई पर रोक का कानूनी प्रावधान भी जोधपुर में 293 साल पहले ही कर दिया गया था।

सिर कटवा बचाए पेड़...बनाना पड़ा कानून11 सितंबर, 1730 को जोधपुर के पास खेजड़ली गांव में पेड़ों की रक्षा के लिए अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व 363 लोगों के प्राणोत्सर्ग की स्मृति में हर साल 11 सितंबर को देश में राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है। अपने महल के लिए खेजड़ी के पेड़ कटवा रहे राजा अभय सिंह ने उस समय हुई बदनामी के चलते न केवल अपने सैनिकों को वापस बुला लिया, बल्कि दंडित भी किया। साथ ही समूचे मारवाड़ में बिश्नोई बाहुल्य क्षेत्र में कोई पेड़ नहीं काटने का फरमान भी जारी कर दिया। ज्ञात इतिहास में पेड़ काटने पर रोक का यह पहला कानूनी प्रावधान है।

बैटल ऑफ वाटरमेलन

वर्ष 1644 में नागौर और बीकानेर रियासत के बीच बैटल ऑफ वाटरमेलन (मतीरे की राड़) इतिहास में चर्चित है। हुआ यह कि बीकानेर रियासत का सीलवा गांव और नागौर का जाखणियां के बीच दोनों राज्यों की सीमा रेखा थी। सीमा रेखा के निकट सीलवा में उगी मतीरे की एक बेल नागौर की सीमा में फैल गई। इस पर एक मतीरा लगा। भारी भरकम मतीरे पर दोनों रियासतों के लोग दावा करने लगे। उस समय बीकानेर पर राजा करण सिंह और नागौर में राव अमर सिंह का शासन था। इस युद्ध में बीकानेर की फौज विजयी रही और इस मतीरे का स्वाद चखा।

सीमा विवाद का वनस्पति से अनूठा हल

वर्ष 1453 में मारवाड़ और मेवाड़ के बीच सीमा विवाद को वनस्पति के आधार हल किया गया। मेवाड़ के महाराणा कुम्भा और मारवाड़ के राव जोधा के बीच सोजत- पाली में यह संधि ऐतिहासिक संधि हुई थी, जिसे आंवल-बांवल की संधि कहा जाता है। संधि के मुताबिक जिधर आंवल के पौधे है, वह मेवाड़ होगा और जिधर बांवल के पेड़ है, वह मारवाड़ होगा। संभवत: दुनिया में वनस्पति के आधार पर पहला सीमा विभाजन है।

एक्सपर्ट ऑपिनियन

भूमि विभाजन में वनस्पति का भी बड़ा योगदान रहता है। ऐसा ही उदाहरण राव जोधा के पिता रिड़मल को महाराणा कुंभा के काल में चित्तौड़ में धोखे से मार दिया था। जोधा के वैर के बदले मेवाड़ में लूट मचा दी थी। कुंभा ने जोधा पर चढ़ाई की। जोधा भी मुकाबले के फौज के साथ नाडोल तक पहुंच गया। तब सांखला नापा ने कुंभा को समझाया कि लड़ाई में जन-धन की भारी हानि होगी। कुंभा ने संधि की सलाह मान ली। इस पर सांखला नापा जोधा के शिविर में पहुंचा और उसने संधि का प्रस्ताव रखा कि बांवल (बबूल) के पेड़ वाली जमीन जोधा के पास रहेगी और आंवल वाली जमीन महाराणा कुंभा केे पास रहेगी। संधि के साथ ही लड़ाई टल गई।

- डॉ. गोविंद सिंह राठौड़, जाने-माने साहत्यिकार