
प्रतिवर्ष सात समन्दर पार कर हजारों की तादाद में खीचन आते है कुरजां पक्षी, अब जरूरत है पर्यटन के लिहाज से विकास की
इसलिए आते हैं प्रवासी पक्षी-
यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों के मूल इलाकों में विपरीत मौसम में भोजन नहीं मिलने सहित कई कठिन परिस्थितियों के चलते पक्षी प्रवास पर निकल जाते हैं तथा परिस्थितियां सामान्य होने पर लौट आते हैं। यहां आने वाले पक्षियों को भोजन व पेयजल की उपलब्धता रहती है। कुरजां प्रतिवर्ष सितम्बर से मार्च माह तक यहां शीतकालीन प्रवास पर यहां रहती है। गर्मी की दस्तक के साथ ही ये पक्षी वतन वापसी कर लेते है।
बिछड़े हुए पक्षियों का दर्द-
शीत ऋतु की विदाई के साथ ही कुरजां ने वतन वापसी शुरू कर दी थी तथा इस बार कुरजां की वतन वापसी के दौरान ६ कुरजां अज्ञात कारणों के चलते अपने समूहों से बिछड़ गई और अब भीषण गर्मी में खीचन के तालाबों पर ५ पक्षी विचरण करते देखे जा रहे है। एक कुरजां पिछले कई दिनों से नजर नहीं आ रही है।
बर्ड टूरिज्म के लिए हो प्रयास-
* खीचन में आने वाले पक्षियों व कुरजां से संबंधि रिकॉर्ड तैयार किया जाए।
* प्रतिदिन दिए जाने वाले दाने की नियमित जांच की जाए।
* खीचन में स्वीकृत बर्ड रेस्क्यू सेंटर के लिए बजट स्वीकृत कर निर्माण करना।
* फलोदी रेस्क्यू सेंटर में चिकित्सक तैनात कर सुविधाओं का विस्तार किया जाए।
* तालाबों पर पर्यटक सुविधाओं का विस्तार हो।
बनेगा देश का पहला कुरजां कन्जर्वेशन रिजर्व-
खीचन में कुरजां को उपयुक्त प्राकृतिक आवास उपलब्ध करवाने व यहां इनके संरक्षण के लिए देश का पहला कुरजां कंजर्वेशन रिजर्व बनाने के लिए काम चल रहा है। खीचन में वन विभाग, पर्यटन विभाग, कुरजां संरक्षण के आरक्षित भूमि को मिलाकर ४ ब्लॉक में १०८२ बीघा भूमि को कन्जर्वेशन रिजर्व के लिए चिन्हित किया गया है। कन्जर्वेशन रिजर्व का प्रस्ताव वन विभाग के राज्य मुख्यालय को भेजा जा चुका है।
कुछ कार्य हुए, तो कुछ है बाकी-
खीचन में हजारों की तादाद में आने वाले कुरजां पक्षियों की जान को यहां विद्युत लाइनों से खतरा था। जिसको लेकर राज्य सरकार ने करीब ८५ लाख की लागत से चुग्गाघर, फलोदी-नागौर हाइवे पर दक्षिण दिशा में मैदान, तालाबों के पास गुजर रही विद्युत लाइनों की भूमिगत किया है। जिससे कुरजां की जान की हिफाजत हो रही है। वहीं खीचन में कुरजां के लिए सैकड़ों बीघा जमीन को आरक्षित कर बर्ड रेस्क्यू सेंटर के लिए भी जमीन दी गई है, लेकिन बर्ड रेस्क्यू सेंटर के लिए बजट मिलना अभी बाकी है। साथ ही कुरजां पड़ाव क्षेत्र से गुजर रही ४०० केवी लाइन को लेकर उच्च न्यायालय द्वारा ५ टॉवर को शिफ्ट करने के निर्देश दिए गए थे। जिस पर इन हाइटेंशन विद्युत लाइन को दूसरी तरफ शिफ्ट किया गया। साथ ही कुरजां के लिए कंजर्वेशन रिजर्व घोषित करने, तालाबों में नहर से पानी की उपलब्ध करवाने, अलग-अलग जगहों पर भूमि को कुरजां के लिए आरक्षित करने, पूरे गांव की ३३ केवी व ११ केवी लाइनों को भूमिगत करने व भविष्य में भूगति लाइन से कनेक्शन देने, पक्षियों की सुरक्षा के लिए गुणवत्ता पूर्ण तारबंदी, जलस्रोतों का पुनरूद्धार व एक नए जल स्रोत का निर्माण करने सहित कई कार्य प्रस्तावित है। हाल ही में १.५ करोड़ की लागत से चुग्गाघर के निकट भूमि के विकास के लिए डीपीआर तैयार की गई है।
पक्षियों ने दिखाई अनुसंधान की राह-
कुरजां पक्षियों व अन्य प्रवासी पक्षियों के यहां आने से पक्षियों पर अनुसंधान के लिए यहां अपार संभावनाएं है। कुरजां की बड़ी तादाद और करीब ६ माह का प्रवास अनुसंधान के लिए काफी महत्वपूर्ण है। दिसम्बर २०१८ से मार्च २०१९ तक कई पक्षियों के पैर में सैटेलाइट टैग व रिंगिंग कॉलर देखे जा चुके है तथा उनकी पहचान भी की जा चुकी है। इससे पूर्व भी कई पक्षियों में रिंगिंग कॉलर देखे गए है। यहां एक साथ बड़ी तादाद में पक्षियों में शीतकालीन प्रवास शोधार्थियों के अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। (कासं)
इनका कहना है-
- खीचन में हजारों की तादाद में कुरजां पक्षियों का शीतकालीन प्रवास पर आना शोध व पर्यटन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। यहां शोध व पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास होने चाहिए।
जुगलकिशोर गज्जा, पूर्व शोधकर्ता बीएनएचएस व सेवानिवृत उप वन संरक्षक
- कुरजां के तत्काल उपचार के लिए खीचन में बर्ड रेस्क्यू सेंटर खुलना चाहिए। अपने समूह से बिछुड़ कर पीछे रही कुरजां को भीषण गर्मी में बीमार पडऩे से बचाने के लिए विभागीय स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए।
सेवाराम माली, पक्षी प्रेमी, खीचन (फलोदी)
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Published on:
11 May 2019 10:42 am
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