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कुपोषण के खिलाफ जंग महज दिखावा, इन इलाकों में आज भी है चुनौती

कुपोषण को खत्म करने के लिए केन्द्र और सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही है, लेकिन योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं होने से इसका लाभ लोगों तक नहीं पहुंच रहा है

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deepak dilliwar

Sep 11, 2016

malnutrition

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कांकेर. कुपोषण को खत्म करने के लिए केन्द्र और सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही है, लेकिन योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं होने से इसका लाभ लोगों तक नहीं पहुंच रहा है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने की वजह से जिले के आदिवासी समुदाय में कुपोषण गहराता जा रहा है। कुपोषण को बढ़ावा देने वाली स्थितियां बनी हुई है। आदिवासियों के निवास क्षेत्रों जल, जंगल, जमीन और परंपरागत आजीविका के स्रोतों पर गहराए संकट के कारण अब ये समुदाय आजीविका तथा खाद्य व पोषण सुरक्षा की गंभीर चुनौती का सामना कर रहा हैं।

कुपोषण को बढ़ाने व इसे कायम रखने वाले कारणों को खत्म करने या कम करने के उपायों पर जोर नहीं दिया जा रहा हैं। केंद्र सरकार द्वारा कुपोषण मिटाने के लिए पोषण पुनर्वास योजना सहित तमाम प्रयास करने के दावे किए जा रहें है। बावजूद इसके कुपोषण रोकने स्वास्थ्य विभाग नाकाम साबित होता दिख रहा है। बच्चों और महिलाओं में कुपोषण एक संवेदनशील मुद्दा है। लेकिन कुपोषण से जंग लडऩे के सरकारी प्रयास कागजों पर कितने भी शानदार ढंग से दिखते हो मगर जमीनी हकीकत कुछ और है।

आमाबेड़ा से महज पांच किलो मीटर दूर बड़ेतेवड़ा गांव है। गांव में आदिवासियों के कच्चे मकानों में कुपोषण के शिकार बच्चे जिनका हाथ पांव पतला और पेट बाहर की ओर निकला हुआ है। ऐसे बच्चों की संख्या तमाम है। यह तो केवल बानगी मात्र है। यह स्थिति पूरे जिले की है। क्षेत्र के लोगों को किसी सरकारी योजना का नाम भी नहीं मालूम। आदिवासी समुदाय की सुशीला, आचला मुफलिसी के बीच जीवन जीते हुए बच्चों का पालन कर रही है। सरकार की तरफ से कुपोषण को दूर करने के लिए भले ही तमाम योजनाए शुरू की गई है, लेकिन योजनाओं का लाभ भी इन तक नहीं पहुंच रहा है। कुपोषण दूर करने के लिए संचालित योजनाओं के बारे में पूछने पर सुशीला सहित कई आदिवासियों का कहना है की हमें नहीं मालूम ये क्या है।

महिलाओं में खून की कमी
आमाबेड़ा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक गौतम बघेल कहते हंै कि महिलाओं में कुपोषण बढऩे की प्रमुख वजह खून की कमी है। गर्भवती महिलाएं महुआ शराब तथा तंबाकू का सेवन करती है। महिलाओं को खाने के लिए आयरन की गोली दी जाती है, लेकिन स्वाद हीन होने के कारण महिलाएं दवाई लेने से परहेज करती हैं।

बच्चे अधिक, इसलिए समुचित इलाज नहीं
अर्रा सेक्टर की प्रभारी शकुंतला श्रीवास्तव ने बताया कि अंतागढ़ एनआरसी केंद्र में जगह फु ल होने के कारण कुपोषित बच्चों को इलाज के लिए भर्ती नहीं कराया गया है। एऩआरसी सेंटर में जगह खाली होते ही कुपोषित बच्चों को इलाज के लिए भेज दिया जाएगा। प्रभारी शकुंतला श्रीवास्तव का यह भी कहना है कि बच्चों के अभिभावक नशा करने के आदि होने के कारण बच्चों का सही तरीके से देखभाल नहीं करते है। इसके साथ ही परिवार नियोजन के उपायों को नहीं अपनाते है। अर्रा इलाके में करीब 18 गांवों के 29 गंभीर कुपोषित तथा 145 मध्यम कुपोषित बच्चों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। अंतागढ़ एनआरसी सेंटर में जगह फुल होने के कारण कुपोषित बच्चें इलाज के लिए तरस रहे हैं। जिले से कुपोषण का कलंक मिटाने का दावा करने वाला प्रशासन इन बच्चों के बेहतर इलाज के लिए ध्यान नहीं दे रहा है।