26 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कानपुर

Kargil Vijay Diwas कानपुर के सपूतों के बिना अधूरी है कारगिल की वीरगाथा

Kargil War कारगिल युद्ध की वीर गाथा भी कानपुर की वीरभूमि के जिक्र बिना अधूरी है। जिले से एक दर्जन से ज्यादा जवानों ने युद्ध में लिया था हिस्सा, 5ं ने अपने प्राण न्योछावर किए।

Google source verification

कानपुर। पूजे न गए शहीद तो यह पंथ कौन अपनाएगा तोपों के मुंह से कौन अकड़ अपनी छातियां अड़ाएगा चूमेगा फंदे कौन गोलियां कौन सीने पर खाएगा अपने हाथों अपना मस्तक फिर कौन आगे बढ़ाएगा…ये शब्द रिटायर्ड मेजर बरातीलाल उमराव retired major Bartalalal Umrao के हैं, जिन्होंने आज से 20 साल पहले कारगिल युद्ध Kargil war के दौरान पहाड़ो के बिल में छिपे पाकिस्तानियों Pakistanis को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा था। कारगिल विजय दिवस Kargil Vijay Diwas की बात याद कर रिटायर्ड मेजर भावुक हो जाते हैं और बताते हैं कि विश्व के इतिहास में जितनें भी युद्ध लड़े गए, उनमें से कारगिल की जंग Kargil War सबसे अलग थी। दुश्मन पहाड़ों पर बैठा था और वहां से सीधे गोलियां बरसा रहे थे, लेकिन इंडियन फौज उनके मंसूबों पर पानी फेरते हुए वहां से खदेड़ कर कब्जा किया था।

फिर दिखी जंग की झलख
26 जुलाई को कारगिल की जीत Kargil Vijay Diwas की 20वीं वर्षगांठ पूरे देश मे मनाई जा रही है। इसकी झलक क्रांतिकारियों का शहर कानपुर Kanpur city of revolutionaries में भी दिखी । मोतीझील परिसर पर एक कार्यक्रम रखा गया। जिसमें डीएवी कॉलेज 54 यूपी बटालियन के एनसीसी कैडेट्स ने रैली निकाली। इस मौके पर कर्नल संजीव सिन्हा कमांडिंग आफिसर यूपी बटालियन प्राचार्या अमित कुमार श्रीवास्तव कैप्टन अवस्थी, रिटायर्ड मेजर बरातीलाल उमराव सहित अन्य लोग शामिल हुए। कर्नल संजीव सिन्हा ने कहा कि 1999 की जंग Kargil War इतिहास के पन्नों में दर्ज है। हमारे कई जाबांजों ने अपनी शदादत देकर पाकिस्तानियों को मार गिराया था। जिसमें कानपुर के विजय पाल यादव, देश की सीमाएं पूरी तरह से सुरक्षित है। कोई भी सेना हमारी फौज से सीधे टक्कर नहीं ले सकती।

पलटन रवाना
इस मौके पर रिटायर्ड मेजर बरातीलाल उमराव बताते हैं उस वक्त उनकी पोस्टिंग देहरादून Dehradun में थी। सेना के रंगरूटों को ट्रेंड करने के दौरान एक फोन कॉल आई और हमें तत्काल कश्मीर Kashmir के लिए कूच करने का आदेश मिल गया। तब हमारे कमांडिंग अफसर ने कहा कि, पाक बॉर्डर पर कुछ टेंशन tension on Pak border का माहौल है। तभी टीवी पर रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नाडिस Defense Minister George Fernandes का बयान आ रहा था कि कुछ मुट्ठी भर घुसपैठिये हमारी पोस्ट में घुस गए हैं हम इन्हें एक सप्ताह में भगा देंगे। ये सुन हमसभी के आंखे गुस्से से लाल हो गई और पूरी पलटन कश्मीर Kashmir के लिए रवाना हो गई और हम लेह पहुंचे। हमें वहा पर कारगिल के पास द्रास Drass नामक सेना मुख्यालय में पहुंचना था, जहां पर आगे का दायित्व दिया जाना था।

खौल गया था खून
युद्ध के दौरान शहीदों के पार्थिव शरीर तेजी से आना प्रारंभ हो चुका थे। अपने साथियों की शहादत से पूरी पलटन में गुस्से में थी। बदला लेने के लिए हुक्म का आदेश का इंतजार कर रहे थे। बताते हैं अति दुर्गम घाटियों व पहाड़ियों में देश की आन-बान और शान के लिए भारतीय सेना (वायुसेना समेत) के 526 जवान शहीद हुए थे। इनमें कानपुर के शहीद विजय पाल यादव, सिपाही अजीत सिंह, शहीद सतेंद्र कुमार यादव ने अपनी जान देकर देश की शान मान बढ़ाया था। बताते हैं, एक चोटी पर कब्जे के लिए हम आगे बढ़ रहे थे। बारिश की तरह दुश्मनों की गोलिंया बरस रही थीं। कई जवान शहीद हो गए, लेकिन 5 घंटे के अंदर हम पहाड़ पर बैठे दुश्मनों को मार गिराया और वहां पर तिरंगा फहराया।

नहीं हटे पीछे
नौबस्ता थानाक्षेत्र के खाड़ेपुर गांव निवासी विजय पाल यादव Vijay Pal Yadav कारगिल की जंग Kargil war में शहीद हो गए थे। उनकी पत्नी अपनी बेटी और भाई विमल के साथ बर्रा आठ में रहती हैं। विनय बताते हैं कि विजय पाल यादव 10 पैरा कमांडो स्पेशल फोर्स में नायक के पद पर तैनात थे। कारगिल की जंग के दौरान शहीद विजय पाल गोलियां की बौछार को पार करते हुए बंकर के अंदर छिपे पाकिस्तानियों पर टूट पड़े। सभी दुश्मनों को मार दिया, लेकिन इसी दौरान उनके सीने में दर्जनभर से ज्यादा गोलियां लग गई और वह हंसते-हंसते मां भारतीय के लिए शहीद हो गए। शहीद विजय पाल की बेटी विजेता बारवीं की परीक्षा पास कर चुकी है और एनडीए के जरिए सेना में अफसर बनने के लिए तैयारी कर रही है।

पर जवानों की बचाई ली जान
आवास विकास निवासी अजीत सिंह Ajit Singh राष्ट्रीय राइफल National rifle में सिपाही के पद पर थे। कारगिल युद्ध के दरौन जब वो दुश्मनों से लोहा ले रहे थे, तभी पाकिस्तानी फौज की ओर से फेंका गया हैंडग्रेनेड उनके पास आकर गिरा। अपने साथी जवानों को बचाने के लिए हैंडग्रेनेड को दूसरी ओर उछाल कर फेंकने जा रहे थे कि वह फट गया। जिससे सिपाही की के हाथों की अंगुलिया जख्मी हो गई तो वहीं आंखों में भी चोट आई। कई माह तक बेड में रहने के बाद जब वो टीक हुए तो आंख की रोशनी वापस नहीं आई। सिपाही अपने दो बेटों के साथ कल्याणपुर में रहते हैं। उनका बड़ा बेटा आईआईटी की पढ़ाई तो छोटा सेना में जाने के लिए पिता से ट्रेनिंग ले रहा है।