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इस मंदिर में गणेश के पर्व पर हर मुराद पूरी करते बाबा

भोले से गंगा का जुड़ाव देखना है तो कानपुर की काशी यानि परमट के आनन्देश्वर मन्दिर आना होगा

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Ruchi Sharma

Sep 11, 2016

temple

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कानपुर. भोले से गंगा का जुड़ाव देखना है तो कानपुर की काशी यानि परमट के आनन्देश्वर मन्दिर आना होगा। जैसे-जैसे सावन नजदीक आता है वैसे वैसे गंगा भी भोले के डमरू की डम-डम से खिंची चली आती हैं। पूरे साल मन्दिर से दूर रहने वाली गंगा सावन में भोले के चरण छूने को लालायित नजर आती हैं। मंदिर का अपना अलग ही इतिहास है और यहां छोटी - छोटी गलियों में 100 से ज्यादा बड़े और छोटे मंदिर जिनका अलग इतिहास है। आन्देश्वर अपने बेटे गणेश के पर्व पर आने वाले भक्तों की सीधे मिलते हैं और मांगी गई हर मुराद पूरी करते हैं। पंड़ित अजय पुरी के मुताबिक द्वापर युग में सूर्य पुत्र कर्ण यहां पर भगवान आन्देश्वर की पूजा करने आते थे। कर्ण ने ही भगवान आन्नदेश्वर के बगल में अपने पिता का सूर्य मंदिर की स्थापना करवाई थी, जो आज भी इस छोटी काशी में मौजूद है।

धरती से प्रकट हुए थे आन्नदेश्वर भगवान

परमठ मंदिर के मंहत अजय पुरी ने बताया कि आन्देश्वर मंदिर का इतिहास काशी में स्थापित शिवलिंग से पुराना है। हजारों साल पहले गंगा के किनारे परमठ गांव हुआ करता था। गांव के राजा के पास कई गायें थीं। इनमें से एक गाय राजा को बहुत प्रिय थी। राजा उसी गाय का दूध पिया करते थे। श्रावण मास के दौरान गंगा उफान पर थी, गायों का भोजन गंगा में बह गया। राजा ने अपनी प्रिय गाय को चरवाहे को दे दिया। गाय शाम को आई तो उसने दूध नहीं दिया और यह सिलसिसा कईदिनों तक चलता रहा | राजा को शक हुआ कि चरवाहा गाय का दूध निकाल लेता है और इसी को देखने के लिए वह चरवाहे के पीछे लग गए |गाय घास खाने के बाद एक टीले पर पहुंची, जहां उसके थनों से दूध अपने आप रिसने लगा | राजा ने तत्काल वहां पर खुदाई कराई तो भगवान शंकर की लिंग जमीन के अंदर दिखी | राजा के सैकड़ों मजदूर लिंग को निकालने के लिए लगे रहे लेकिन वह लिंग को बाहर नहीं निकाल सके | राजा हार कर वहीं पर मंदिर निर्माण करा दिया और आन्देश्वर नाम रखा |

कर्ण ने करवाया था सूर्य मंदिर का निर्माण

मंहत के मुताबिक द्वापर युग में कर्ण बिठूर पर तपस्या के लिए रुके थे | वह हर दिन नाव के जरिए बिठूर से परमछ मंदिर स्थित भगवान आन्देश्वर के दर्शन करने को आते थे | कर्ण यहां विधि - विधान से पूजा करने के बाद अपने स्थान को निकल जाया करते थे | उसी दौरान कर्ण ने आन्देश्वर मंदिर के पास ही भगवान सूर्य का मंदिर स्थापित करने का निर्णय लिया | लोगों की मदद से कर्ण ने भगवान सूर्य का निर्माण करवाया | कर्ण के इस मंदिर के पुजारी ने बताया कि हमारे पूर्वज सैकड़ों साल से सूर्य भगवान के मंदिर की देखरेख करते आ रहे हैं | कहा अगर कोई भक्त यहां आकर जो मन्नते मांगता है वह पूरी होती हैं।

एक किमी की गली में सौ मंदिर

परमठ मंदिर के गेट के अंदर प्रवेश करते ही भगवान आन्देश्वर भगवान के दर्शन कर भक्त मन्नते मांगते हैं | इसके बाद छोटी से गली के दाएं ऐर बाएं करीब सौ छोटे और बड़े मंदिर हैं | जहां पर हर भगवान की मूर्ति स्थापित हैं | मंदिर के अंदर ही पुजारी पूरे परिवार के साथ रहते हैं | मंदिरों में जो प्रसाद व चढ़ावा चड़ता है इसी से उनके परिवार का पालन पोषण होता हैं | मां काली मंदिर के मंहत विशाल तिवारी ने बताया कि आन्देश्वर मंदिर परिसर पर जितने मंदिर हैं उनमें बैठने वाले मंहतों के परिजनों का जुड़ाव सैकड़ों साल पुराना है |

बप्पा की पूजा से खुश होते हैं भोले बाबा

आप शहर में अगर गणेश मंदिर खोजने के लिए निकलेंगे तो बहुत कम ही मिलेंगे | लेकिन छोटी काशी पर आएंगे तो हर भगवानों के मंदिर यहां पाएंगे | छोटी काशी में स्थापित भगवान गणेश के मंदिर पर हर रोज सुबह से सैकड़ों भक्त आते हैं और मुरादें मांगते हैं | अपने पुत्र के दरवार पर माथा टेकने वाले भक्त को पिता आन्देश्वर खाली हाथ वापस नहीं भेजते | गणेश मंदिर के पुजारी ने बताया कि अगर भक्त सुबह पहर आकर भगवान गणेश के कानों पर मन्नत मांगता है तो वह सीधे आन्देश्वर महाराज तक पहुंच जाती है और भक्त की हर समस्या का वह समाधान कर देते हैं |

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