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अतीक को यू ही नहीं कहते बाहुबली, 17 साल की उम्र में लगा था मर्डर का आरोप  

17 साल की उम्र में कत्ल का इल्जाम लिये अतीक ने कुछ ऐसे तय किया अपराध से लेकर सियासी सफर। 

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Akansha Singh

Dec 27, 2016

BAHUBALI

BAHUBALI

कानपुर। देश की राजनीति में ऐसे कई नेता हैं जो आयाराम गयाराम की दुनिया से निकल कर आए और छाए। कुछ ने जनप्रतिनिधि बनने के बाद अपनी छवि सुधार ली, लेकिन यूपी की राजनीति में अहम रोल अदा करने वाले नेता अतीक अहमद ने अपनी छवि से कोई समझौता नहीं किया। वह तीन दशक जैसे पहले थे अाज भी ज्यों की त्यों है। उसके सिर पर सफेद तौलिए की पगड़ी, नाम के अागे बाहुबली शब्द बहुत सूट करता है। चुनाव के दौरान चंदा लेने का तरीका, गुर्गों को फरमान देते हैं वह भी अतीक अहमद का अलग ही होता है। अतीक अहमद को दुनिया में सबसे ज्यादा प्यारी उनकी मां हैं और वह मां शब्द को सबसे अहम मानते हैं। राजू पाल की मां को अतीक अम्मा कहकर पुकारते थे। राजू के मर्डर के बाद आज भी वह उन्हें जहां भी मिलते हैं छोटी अम्मा कहकर पुकारते हैं। अतीक के साथ कुछ साल बिताने वाले संतोष उपाध्याय ने बताया कि अतीक को लोग बाहुबली के नाम से पुकारते हैं लेकिन वह बहुत दयावान हैं, नेकदिल इंसान हैं। अगर कोई उनके घर आ जाए और कुछ मांग ले तो वह सौ फीसदी पूरी करते हैं।

कौन है अतीक अहमद

अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त 1962 को श्रावस्ती जनपद में हुआ था। पढ़ाई लिखाई में उनकी कोई खास रूचि नहीं थी, इसलिये उन्होंने हाई स्कूल में फेल हो जाने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। कई माफियाओं की तरह ही अतीक अहमद ने भी जुर्म की दुनिया से सियासत की दुनिया का रुख किया था। पूर्वांचल और इलाहाबाद में सरकारी ठेकेदारी, खनन और उगाही के कई मामलों में उनका नाम आया। 1979 की है जब 17 साल की उम्र में अतीक अहमद पर कत्ल का इल्जाम लगा था, उसके बाद अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अतीक के खिलाफ दर्ज हैं 44 मामले दर्ज हैं। अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट, इलाहाबाद ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं। अतीक के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले इलाहाबाद जिले में ही दर्ज हुए। कानपुर में भी इनके खिलाफ पांच मामले थे, जिनमें वह बरी हो चुके हैं।


राजनीति में पहला कदम

अपराध की दुनिया में नाम कमा चुके अतीक अहमद को समझ आ चुका था कि सत्ता की ताकत कितनी अहम होती है। इसके बाद अतीक ने राजनीति का रुख कर लिया। वर्ष 1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और विधायक भी बने। 1996 में इसी सीट पर अतीक को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और वह फिर से विधायक चुने गए। अतीक अहमद ने 1999 में अपना दल का दामन थाम लिया। वह प्रतापगढ़ से चुनाव लड़े पर हार गए और 2002 में इसी पार्टी से वह फिर विधायक बन गए। 2003 में जब यूपी में सपा सरकार बनी तो अतीक ने फिर से मुलायम सिंह का हाथ पकड़ लिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक को फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह सांसद बन गए। उत्तर प्रदेश की सत्ता मई, 2007 में मायावती के हाथ आ गई। अतीक अहमद के हौसलें पस्त होने लगे. उनके खिलाफ एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हो रहे थे। इसी दौरान अतीक अहमद भूमिगत हो गए।

कुछ इस तरह संदेश पहुंचाते हैं अतीक

अतीक अहमद का एक रहस्य और भी दिलचस्प है। वह चुनाव के दौरान कभी चंदा फोन के जरिए या डरा धमका कर नहीं लेते, बल्कि शहर के पॉश इलाकों में बैनर लगवाते हैं और उसमें लिखा होता है कि आपका प्रतिनिधि आपसे सहयोग की अपेक्षा रखता है। मत के साथ गरीब के साथ आएं और जिताएं। बैनर में लिखे शब्द पढ़कर अतीक अहमद के घर चंदा का पैसा पहुंचा देते हैं। इतना ही नहीं अगर अपने गुर्गों को कुछ पैगाम देना होता है तो वह विधिवत अखबारों में एडवरटाइज निकलवाते हैं। जिसमें लिखा होता है कि क्या करना है और क्या नहीं करना। अतीक अहमद ने इस काम को कानपुर आने के दिन एड के जरिए कट्टे व गैर कानूनी काम न करने की हिदायद दी थी।


दाहिने हाथ के मर्डर का लगा इल्जाम

अतीक अहमद 2004 के आम चुनाव में फूलपुर से सपा के टिकट सांसद बन गए। इसके बाद इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट खाली हो गई थी। सीट पर उपचुनाव हुआ, सपा ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया था। लेकिन उनका दाहिना हाथ कहे जाने वाले बसपा ने उसके सामने राजू पाल को खड़ा किया और राजू ने अशरफ को हरा दिया। उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद 25 जनवरी, 2005 को दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया था।

नेता जी ने पार्टी से निकाला

बसपा विधायक राजू पाल की हत्या में नामजद आरोपी होने के बाद भी अतीक सांसद बने रहे। इसकी वजह से चौतरफा आलोचनाओं का शिकार बनने के बाद मुलायम सिंह ने दिसम्बर 2007 में बाहुबली सांसद अतीक अहमद को पार्टी से बाहर कर दिया। अतीक अहमद ने राजू पाल हत्याकांड के गवाहों को डराने धमाके की कोशिश की, लेकिन मुलायम सिंह के सत्ता से जाने और मायावती के कुर्सी पर आ जाने की वजह से वह कामयाब नहीं हो सके। गिरफ्तारी के डर से बाहुबली सांसद अतीक फरार थे। उनके घर, कार्यालय सहित पांच स्थानों की सम्पत्ति न्यायालय के आदेश पर कुर्क की जा चुकी थी। पांच मामलों में उनकी सम्पत्ति कुर्क करने का आदेश दिए गए थे। अतीक अहमद की गिरफ्तारी पर पुलिस ने बीस हजार रुपये का इनाम रखा था। सांसद अतीक की गिरफ्तारी के लिए परिपत्र जारी किये गये थे, लेकिन मायावती के डर से अतीक अहमद ने दिल्ली में समर्पण करना बेहतर समझा।

2007 से लेकर 2012 तक दर्ज हुई FIR

मायावती के सत्ता में आने के बाद अतीक अहमद की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी। पुलिस विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक अहमद की एक खास परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए उसका निर्माण ध्वस्त कर दिया था। आपरेशन अतीक के तहत ही 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ घूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद चार अन्य गवाहों की ओर से भी उनके खिलाफ मामले दर्ज कराये गये थे। दो माह के भीतर ही अतीक अहमद के खिलाफ इलाहाबाद में 9 कौशाम्बी और चित्रकूट में एक-एक मुकदमा किया गया था। साल 2013 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार आई तो, एक बार फिर अतीक साइकिल पर सवार हो गए। फिलहाल वह जमानत पर बाहर हैं।

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