अब तक चल रहे कोरोन के इलाज में यह निष्कर्ष सामने आया है कि बचपन में जिन लोगों को टीबी संक्रमण से बचाने के लिए बीसीजी का टीका लगवाया गया था, उनमें संकमण काफी धीरे-धीरे हुआ। अब तक कानपुर के अलग-अलग अस्पतालों से ठीक हुए रोगियों में कोरोना का लक्षण उभरकर सामने नहीं आया। कुछ में लक्षण कमजोर था तो कुछ में लक्षण सामने आया ही नहीं, केवल जांच के आधार पर ही कोरोना की पुष्टि हो गई। इन सभी में संक्रमण का नियंत्रित रहना बीसीटी टीके का असर माना गया है।
बीसीटी टीके के अलावा पेट के कीड़े मारने वाली आइवरमेक्टिन दवा ने भी काफी असर दिखाया है। इस दवा से पेट के कीड़ों के साथ मानव शरीर में कोरोना वायरस का इंक्युबेशन भी पूरी तरह से नहंी हो पाया। इंक्युबेशन ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वायरस की संख्या शरीर में तेजी से बढ़ती है। पर पेट के कीड़े की दवा ने ऐसा नहीं होने दिया। जिससे रोगी में कोरोना वायरस कोई घातक रूप नहीं धारण कर सका।
शहर में आईआईटी के अलावा मेडिकल कॉलेज में भी कोरोना की दवा और टीके के निर्माण को लेकर शोध चल रहा है। अब इस शोध में बीसीटी के टीके और पेट के कीड़े मारने वाली दवा आइवरमेक्टिन को लेकर भी शोध किया जाएगा। जिससे यह पता चल सके कि इनमें मौजूद कौन सा तत्व वायरस से लडऩे की क्षमता रखता है। ताकि इस रिपोर्ट को दवा निर्माण प्रक्रिया में शामिल किया जा सके।