
इस गुप्तकालीन शिव मंदिर में गुरु द्रोणाचार्य ने की थी तपस्या, आज भी निकलती हैं प्राचीन मूर्तियां व नरकंकाल
कानपुर देहात-कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ पूरे सावन माह में अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। इसलिए सावन में लोगों की भीड़ मंदिरों में उमड़ती है। ऐसा ही एक द्रोणेश्वर शिव मंदिर कानपुर देहात के असालतगंज में स्थित है। गुप्तकालीन के इस मंदिर में सावन के अंतिम सोमवार को लोग मनौती मनाते हैं। इस मंदिर के विषय में लोगों का कहना है कि यहां द्रोणाचार्य ने आकर तपस्या की थी। तभी से इस मंदिर का नाम द्रोणेश्वर मंदिर हो गया था। जबकि यहां प्राचीनकाल की अद्भुत मूर्तियां स्थापित हैं। आज भी इस मंदिर परिसर में ऐसी मूर्तियां निकलती है, जो गुप्तकालीन युग की पुष्टि करती हैं। यहां दूर दराज से लोग आते हैं और भगवान शिव की पूजा कर मत्था टेकते हैं।
असालतगंज कस्बे में स्थित आस्था और विश्वास के प्रतीक इस शिव मंदिर में स्थित प्राचीन शिवलिंग गुप्तकालीन युग का बताया जाता है। हालाकि अभी तक यह पता नही लगाया जा सका है कि शिवलिंग कितना पुराना है। जो कि भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। वर्तमान में जो मंदिर है उसके विषय में गांव के लोगों ने बताया कि शिवलिंग हजारों वर्ष पुराना है। मंदिर के चारों ओर बरामदा है। पूरा मंदिर एक प्राचीन खेरे पर स्थित है। स्थानीय बुजुर्गो का कहना है कि महाभारत के समय की बात है, जब कौरव और पांडव के गुरु द्रोणाचार्य यहां आए थे। उन्होंने इसी स्थान पर बैठकर तप किया था और भगवान शिव की आराधना करते थे। उस समय यह एक शिव मंदिर ही था, उनके तप के बाद से इस मंदिर का नाम श्री द्रोणेश्वर शिव मंदिर रखा गया।
लोगों के मुताबिक इस मंदिर परिसर के आसपास खुदाई में आज भी प्राचीन मूर्तियां व अन्य बहुमूल्य चीजें मिलती हैं। साथ ही मानव कंकाल भी देखने को मिलते हैं। वर्ष में कई बार यहां पर धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। बड़ी तादात में भक्तों की भीड़ उन धार्मिक कार्यक्रमों में देखने को मिलती है। इस मंदिर परिसर में ब्रह्मदेव का चबूतरा, काली मां का स्थान, बजरंगबली का मंदिर, बरगद व पीपल का पेड़ है। चार पंक्तियां मंदिर के विषय मे खूब प्रचलित है। मंदिर के महंत का कहना है कि इस प्राचीन मंदिर की स्थापना की सही जानकारी किसी को नहीं है। यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। सावन में यहां आयोजन होते हैं। लोग मनौती पूर्ण होने पर झंडे व घंटे चढ़ाते हैं।
Published on:
03 Aug 2020 04:07 pm
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