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डीजल इंजन के उत्सर्जन के कारण डीएनए में परिवर्तन संभव

शोध के मुताबिक, डीजल एवं गैसोलाइन इंजन से निकलने वाले कणों के कारण मनुष्य के डीएनए में परिवर्तन की संभावना है।

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कानपुर. यकीन कीजिए, पेट्रोल-डीजल वाहनों की आबादी जबरदस्त रफ्तार से बढ़ती रही तो इंसानों की जिंदगी बड़े खतरे में फंसी होगी। डीजल इंजन के धुएं में शामिल कणों के कारण इंसानों के शरीर के अंदर भी तमाम परिवर्तन संभव हैं। आईआईटी - कानपुर के शोध के मुताबिक, डीजल एवं गैसोलाइन इंजन से निकलने वाले कणों के कारण मनुष्य के डीएनए में परिवर्तन की संभावना है। शोध में चेतावनी दर्ज है कि हालात नहीं सुधरे और डीजल के इस्तेमाल पर अंकुश नहीं लगाया गया तो निकट भविष्य में फेफड़ों से संबंधित मरीजों की संख्या तेजी के साथ बढ़ेगी। इसके साथ ही अस्थमा और हृदय रोग भी फैलेगा। इस शोध के बारे में डाक्टर्स का कहना है कि डीएनए में परिवर्तन हुआ तो डायबिटीज समेत कई बीमारियों के इलाज की नई विधा भी खोजनी होगी।

मानव स्वास्थ्य के लिए सीएनजी सबसे सुरक्षित ईंधन

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही भारत के टाइर वन एवं टाइर टू शहरों के अंतर्गत कानपुर को दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में घोषित किया गया है। कानपुर शहर के प्रदूषित होने के कारणों में वाहनों से निकलने वाला धुआं एक मुख्य कारण है। ऐसे में वाहनों के प्रदूषण की समस्याओं से निजात पाने के लिए सीएनजी एक अच्छा साधन है। इसी विषय पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर की इंजन रिसर्च लेबोरेटरी में अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन से यह साबित किया है कि भारत के संदर्भ में सीएनजी वाकई सबसे स्वच्छ एवं सुरक्षित ईंधन है। अध्ययन से पता चला है कि सीएनजी, डीजल एवं गैसोलाइन से कहीं अधिक स्वच्छ ईंधन है। सीएनजी की तुलना में डीजल इंजिन 30 से 50 गुना फाइन पार्टिकल उत्सर्जित करता है, जोकि मनुष्य के फेफड़ों को नुकसान पहुँचाता है जिसके कारण अस्थमा, ह्दय रोग जैसे बीमारी लग जाती है। रिपोर्ट बताती है कि सीएनजी इंजिन से निकलने वाले कणों का लोवर सरफेस एरिया डीजल एवं गैसोलाइन इंजिन से निकलने वाले कणों की तुलना में कम होता है जिसके कारण विषाक्तता कम होती है। इसके अतिरिक्त अन्य ईंधनों की तुलना में सीएनजी इंजिन से निकलने वाले कण कम संख्या में पीएएच अवशोषण करते हैं।


डीजल इंजन के धुएं से डीएनए में परिवर्तन की आशंका

यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग के प्रो. अविनाश अग्रवाल के नेतृत्व में सिविल अभियांत्रिकी विभाग के प्रो. तरुण गुप्ता एवं प्रो. बुसरा अतीक की टीम ने सीएनजी, डीजल एवं गैसोलाइन इंजन के उत्सर्जन तथा धुएं में मौजूद विषाक्त कणों के बारे में तीन साल तक अध्ययन किया है। अध्ययन के दौरान प्राप्त नमूनों के परिणाम प्राप्त करने के लिए ह्यूमन सैल लाइन्स का उपयोग किया गया । विभिन्न ईंधनों के कारण स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव का परीक्षण करने के लिए विभिन्न इंजिनों से उत्सर्जित होने वाले कणों पर ह्यूमन सैल लाइन्स का उपयोग किया गया। तीन साल के अध्ययन के बाद तैयार रिपोर्ट में बताया गया है कि डीजल एवं गैसोलाइन इंजन से निकलने वाले धुएं में मौजूद कणों के कारण मनुष्य के डीएनए में परिवर्तन की संभावना रहती है, जबकि सीएनजी इंजन से निकलने वाले धुएं में मौजूद कणों के कारण ऐसा नहीं होता है। अध्ययन दल का दावा है कि इस अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार बड़े शहरों में सुरक्षित एवं स्वच्छ ईंधन के प्रयोग के लिए बेझिझक सीएनजी के नाम पर अपनी मुहर लगा सकते हैं।


डीएनए में परिवर्तन से इलाज के नई तरीके खोजने होंगे

आईआईटी की रिपोर्ट के आधार पर मेडिकल कालेज एनाटॉमी विभाग के प्रोफेसर ने बताया कि डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल यानी डीएनए के जरिए ही किसी व्यक्ति की पूर्वजों की आनुवांशिक स्थिति को मालूम करना संभव होता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति का डीएनए उसके गुणसूत्र में मौजूद रहता है। ऐसे में डीएनए में परिवर्तन हुआ तो भविष्य में विभिन्न रोगों के इलाज के लिए नए फार्मूलों की खोज करनी होगी। बहरहाल, आईआईटी कानपुर ने शोध के माध्यम से कानपुर जैसे प्रदूषित शहरों को चेताया है कि अच्छी और स्वस्थ्य जिंदगी चाहते हैं कि डीजल के बजाय सीएनजी पर भरोसा कीजिए। वैज्ञानिकों ने माना कि कानपुर की आबोहवा के लिए सीएनजी का प्रसार बेहद जरूरी है। आईआईटी कानपुर ने तीन वर्षों तक सीएनजी विषाक्तता पर अध्ययन करने के बाद इसे सुरक्षित माना है। गौतलब है कि कानपुर की आबोहवा देश के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में एक है। शहर के वायु प्रदूषण का मुख्य कारण डीजल और गैसोलीन वाहन हैं। रिसर्च में वैज्ञानिकों को पता चला है कि सीएनजी की तुलना में डीजल ईंधन 40 से 50 गुना अधिक विषाक्त कणों को उत्सर्जित करता है, जोकि मनुष्य के फेफड़ों में आसानी से पहुंच रहे हैं। इससे फेफड़ों से सम्बंधी बीमारियां घेर रही हैं।