
कानपुर। खान-पान और प्रदूषण के चलते दिन-ब-दिन पेट के रोगियों की संख्या में जबरदस्ती बढ़ोतरी हो रही है। हैलट, उर्सला, केपीएम सहित तमाम सरकारी और प्राईवेट अस्पतालों की ओपीडी में लीवर के रोगियों से भरी रहती है। लीवर प्रत्योपरण के लिए मरीजों को लाखों रूपए खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में आईआईटी कानपुर और दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइसेंस (आइएलबीएस) और केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट आफ बायोलॉजी एंड टेक्नालॉजी (डीबीटी) के साथ मिलकर कृत्रिम लिवर तैयार किया है जो लिवर सिरोसिस की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए कारगर हथियार साबित होगा। आइआइटी बीएसबीई के प्रोफेसर अशोक कुमार ने बताया कि विभाग ने चूहों और सुअरों के जरिए इस पर काम किया। कई रिसर्च के बाद हमें बायो आर्टिफिशियल लिवर तैयार सफलता मिली।
दिल्ली, जपान के साइंटिस्टों ने दिया सहयोग
आईआईटी कानपुर सेना के हथियारों के साथ कृत्रिम वर्षा से लेकर किसानों के लिए नए-नए अविष्कार कर देश को कई कारगर हथियार मुहैया करा रहा है। बीएसबीई के सांइटिस्टों ने मिलकर कृत्रि लिवर का अविष्कार किया है, जो अब इस बीमारी से जूढ रहे लोगों के लिए बाजार में जल्द ही उपलब्ध होगा। इसके अविष्कार के निए आईआईटी कानपुर के साथ आइएलबीएस डीबीटी के सांइटिस्टों ने पिछले डेढ़ वर्षो से कार्य कर रहे थे। साइंटिस्टों ने चूहों के साथ सुअरों के लिवर पर रिसर्च किया और इसे इंसान के अंदर फिर करने के लिए कई परीक्षण किए। कड़ी मेहनत के बाद आईआईटी को कामयाबी मिल गई। आईआईटी के सांइटिस्टों ने कृत्रिम लिवर को दो सौ मरीजों के ख्ून में प्रयोग किया, जिसका परिणाम सुरहिट रहा। आइआइटी विशेषज्ञों ने इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट कराया है।
बेतहर परिणाम निकले
आइआइटी के बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग (बीएसबीई) प्रोफेसर अशोक कुमार ने बताया कि दुनिया भर में कृत्रिम लिवर पर 10-15 वर्ष से काम चल रहा है। कई मॉडल बनाए गए हैं, लेकिन उनमें सेल्स पैदा नहीं होते हैं। वह केवल फंक्शन करता है जिससे संक्रमण की संभावना अधिक रहती है। नए बायो आर्टिफिशियल लिवर को इंस्टॉल करने से पहले लैब में उसके अंदर सेल्स प्रौलिफिरेट (पैदा करना) कराए जाते हैं। इससे रोगी के शरीर में लगाने पर बेहतर परिणाम आते हैं। बताया, ***** और चूहों पर प्रयोग में 90 फीसद खराब लिवर भी बायो आर्टिफिशियल लिवर के इस्तेमाल से सही हो गया। इसमें वास्तविक लिवर को आराम मिल गया, जबकि कृत्रिम सेल से काम चलता रहा। कुछ दिनों बाद वास्तविक लिवर 70 फीसद से अधिक काम करता मिला। इस सफलता के बाद बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग विभाग ने कृत्रिम लीवर को बाजार में उतारेगा।
2 सौ मरीजों पर किया गया परीक्षण
बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अशोक कुमार ने बताया कि आईआईटी के साथ ही इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइसेंस ने दो सौ मरीजों के खून को बायो आर्टिफिशियल लिवर पर फंक्शन कराया है। इसके परिणाम काफी सकारात्मक आए हैं। सेल्स मरने की बजाए जीवित रहे। साथ ही कृत्रिम लिवर एक तरह की डायलिसिस का भी काम करता है, जिसमें नुकसानदेह पदार्थ को बाहर निकाला जा सकता है। प्रोफेसर ने बताया कि भारत में लिवर के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। इसी को देखते हुए हमने कृत्रिम लिवर के निर्माण की ठानी। लिवर ट्रांसप्लेट के दौरान मरीजों को ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है, लेकिन आईआईटी के इस अवजार से पैस के साथ ही लिवर की उम्र ज्यादा होगी।
स्वस्थ्य होने का मौका मिलेगा
प्रोफेसर अशोक कुमार ने बताया कि आर्टिफिशियल लिवर को लिवर सिरोसिस के मरीजों के शरीर से जोड़ा जा सकेगा। इससे गड़बड़ हो चुके वास्तविक लिवर को ठीक होने का समय मिल सकेगा। तब तक बायो आर्टिफिशियल काम करेगा। इस दौरान एसजीपीटी, एसजीओटू और सीरम बिलीरूबिन की मात्रा सही हो जाती है। अगर पूरी तरह लिवर खराब हो गया है, तब भी कृत्रिम लिवर से तीन से चार माह तक काम चल सकता है। फिर उसके बाद लिवर ट्रांसप्लांट कराना पड़ेगा। प्रोफेसर ने बताया कि जापान के टेक्निकल सपोर्ट, स्वदेशी आइएलबीएस और डीबीटी ने भी किया सहयोग लिवर सिरोसिस पीड़ितों के लिए यह रिसर्च वरदान साबित होगा। इसके जरिये वास्तविक लिवर को स्वस्थ्य होने का मौका मिलेगा।
Published on:
07 May 2018 12:16 pm
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