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कानपुर

आईआईटी कानपुर ने किसानों को दी बड़ी राहत, सूखाग्रस्त इलाकों में कराएगा कृत्रिम बारिश

सीएम योगी आदित्यनाथ ने थी पहल, 5 करोड़ 50 लाख की लागत से बुंदेलखंड के किसानों की फसलों को किया जाएगा हरा-भरा

कानपुरJul 05, 2018 / 01:48 pm

Vinod Nigam

rain will be done by iit-kanpur to tackle drought

आईआईटी कानपुर ने किसानों को दी बड़ी राहत, सूखाग्रस्त इलाकों में कराएगा कृत्रिम बारिश

कानुपर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां किसानों को एमएसपी का तोहफा दिया है तो वहीं आईआईटी कानपुर ने भी उनकी फसलों को हरा-भरा रखने के लिए कृत्रिम बारिश कराएगा। किसान हर साल जुलाई माह आते ही इंद्रदेवता को प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ के साथ टोने-टोटके कर बादलों की तरफ टकटकी लगाए रहते थे, लेकिन अब उन्हें ऐसा नहीं करना पड़ेगा। संस्थान ने सूखा प्रभावित इलाकों में कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी कर ली है। संस्थान नई तकनीकि के सहारे किसानों को खुशहाल बनाएगा। इस कार्य के लिए करीब पांच करोड़ पचास लाख रूपए खर्च आएगा। कंद्रीय मंत्री सतीश महाना ने बताया कि कुछ दिन पहले संस्थान के निदेशक और वहां के प्रोफेसर सीएम योगी आदित्यनाथ से मिले थे और कृत्रिम बारिश की जानकारी से अवगत कराया था। मंत्री ने बताया कि यूपी के सातों बुदंलेखंड जिलों में आईआईटी बारिश करा वहां के अन्नदाताओं के घरों को अनाज से भरेगा।
सीएम ने की थी पहल
देश के कुछ इलाकों में मानसून ने कहर ढहा हुआ है तो वहीं कई ऐसे इलाके हैं जहां लोगों की आंखों आस के साथ आसमान पर टिकी हैं। ऐसा ही उत्तर प्रदेश का सुदूर और सूखे से प्रभावित एक इलाका है बुंदेलखंड। इस इलाके में पानी और सिंचाई की समस्या से उभरने के लिए योगी सरकार एक महत्तवाकांक्षी योजना बनाई है। इस समस्या के समाधान में की जिम्मेदारी आईआईटी कानपुर को सौंपी गई थी। पानी और सिंचाई की समस्या के समाधान पर आईआईटी कानपुर द्वारा 26 जून को एक प्रेजेंटेशन पेश की गई थी। इस परियोजना में क्लाउड सीडिंग द्वारा कृत्रिम बारिश की जाएगी। इसके लिए योगी सरकार ने पिछले साल नवंबर में 5 करोड़ 50 लाख रूपए की मंजूरी दे दी थी।
अक्टूबर में होगी शुरूआत
मंत्री सतीश महाना ने बताया कि सीएम योगी ने बुंदेलखंड के विकास में विशेष रुचि ली है। योगी आदित्यनाथ ने कृषि और सिंचाई विभाग के अधिकारियों से भी कहा कि इस बारे में अध्ययन करें कि इस तकनीक का उपयोग और भी कई क्षेत्रों में किया जा सकता है, जो कई वर्षों से सूखे से प्रभावित हैं। मानसून के बाद इस परियोजना को पहले चरण में बुंदेलखंड के सात जिलों में अकटूबर के माह में इस तकनीकि के जरिए कृत्रित बारिश कराई जाएगी। केमिकल के छिड़काव से बारिश कराई जाएगी। वहीं आईआईटी निदेशक अभय करंदीकर ने बताया कि अब तक दुनिया में यह तकनीकि सिर्फ चीन के पास थी, जो बहुत महंगी थी। आईआईटी निदेशक ने बताया कि चीन से पहले तकनीकि लेने के बात चल रही थी, पर 11 करोड़ रूपए की डिमांड के बाद संस्थान ने कमर कसी और उसमें सफलतता हासिल की।
इस तरह से होती है कृत्रिम बारिश
आईआईटी निदेश ने बताया कि कृत्रिम बारिश 4-5 चरणों में करवाई जाती है। सबसे पहले रसायनों का प्रयोग करके क्षेत्र की हवा को वायुमंडल के सबसे ऊपरी हिस्से में भेजा जाता है। जो बादलों का रूप ले लेती है। इसमें कैल्शियम आक्साइड, कैल्शियम क्लोराइड और यूरिया का इस्तेमाल होता है। कृत्रिम बादल हवा में मौजूद वाटर वेपर्स (पानी वाष्प) को सोखने लगते हैं। इसमें अमोनियम नाइट्रेट, यूरिया आदि का प्रयोग किया जाता है। इससे बादलों में पानी की मात्रा बढ़ जाती है। इसके बाद कई और रसायनों के इस्तेमाल से कृत्रिम बारिश कराई जाती है। सारा काम एयरक्राफ्ट या ड्रोन से संभव होता है।
2017 में मिले थे 15 लाख रूपए
यूपी के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में कृत्रिम बारिश कराने के लिए आईआईटी कानपुर को 15 लाख रुपये मिले थे।यह धनराशि उत्तर प्रदेश काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने दी है। कृत्रिम बारिश के लिए इंस्टीट्यूट स्तर पर काम शुरू कर दिया था। इसके बाद सीएम योगी ने संस्थान के निदेशक और साइंटिस्टों के साथ चर्चा कर कुल खर्चे ब्योरा मांगा। संस्थान ने सरकार के पास पांच करोड़ 50 लाख रूपए कृत्रिम बारिश में खर्च होने की जानकारी दी। इसी के बाद शासन धनराशि जारी कर इस पर जल्द से जल्द संथान के साइंटिस्टों को लग जाने के आदेश दिए थे। संस्थान की टीम ने कानपुर के दो इलाकों में कृत्रिम बारिश का परीक्षण किया, जो सफल रहा। निदेशक ने बताया कि मानसून के जाते ही टीम सूखा ग्रस्त इलाकों में बारिश के लिए पहुंच जाएगी।
इस राज्य में पहले हुई थी शुरूआत
तमिलनाडु सरकार ने 1983 में सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पहली बार इसका प्रयोग किया था। 2003 और 2004 में कर्नाटक सरकार ने भी इसे अपनाया। 2003 में महाराष्ट्र सरकार भी इसकी मदद ले चुकी है। 2009 में ग्रेटर मुंबई नगर निगम प्रशासन के कृत्रिम बारिश का प्रयोग असफल होने से 48 करोड़ रुपये की हानि हुई। कृत्रिम बारिश करवाने के लिए छोटे छोटे रॉकेट और विमानों का इस्तेमाल किया जाता है। रॉकेट की मदद से 20 किलोमीटर के दायरे में बारिश वाले बादलों को डॉप्लर रडार से पहले खोजा जाता है। उन बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का फव्वारा मारा जाता है। यह केमिकल फव्वारा मारने के बाद बादलों से रसायनिक क्रिया करता है। जिससे पानी की बूंदे गतिशील हो जाती हैं। उसके बाद बारिश होने लगती है।

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