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सइकिल पर सवार होकर बेचते थे साबून, मुरली बाबू अरबों की सम्पत्ति के बने मालिक

पहले लोगों के घरों में जगह बनाई, अब दूनिया के रईसों की सूची में जगह पाई

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 पहले लोगों के घरों में जगह बनाई, अब दूनिया के रईसों की सूची में जगह पाई

कानपुर। 31 साल पहले दोनों भाई साइकिल पर सवार होकर लोगों के घरों पर साबून पहुंचाने वाले मुरली यूपी के सबसे रईस कारोबारी बन गए है। कानपुर के अलावा इनकी देश व विदेश में दर्जनों कंपनी हैं, जहां पर कई प्रोडेक्ट बनाए जाते हैं। मुरली बाबू के पास 2013 में 5226 करोड़ तो 5 साल के अंदर बढ़कर करीब 15 अरब की सम्पत्ति पहुंच गई है। शस्त्री नगर निवासी प्रभु गप्ता कहते हैं कि मुरली और उनके भाई आज भी सादगी से रहते हैं और जब भी कानपुर आते हैं तो अपने पुराने मित्रों के साथ बैठकर कनपुरिए अंदाज में गप-शप करते हैं। उन्होंने इमान बेचकर धन नहीं कमाया, बल्कि खून और पसीने के बल पर साबून बेचकर पैसा बनाया। कुछ दिन पहले फोर्ब्स ने दुनिया भर के रईस उद्योगपतियों की सम्पत्ति की सूची जारी किए उसमें कानपुर के मुरली बाबू 1070 वें नंबर पर हैं।
1987 में घड़ी साबून की रखी थी नींव
मुरली बाबू और बिमल ज्ञानचंदानी ने अपना शुरुआती जीवन शास्त्री नगर स्थित सिंधी कालोनी में बिताया। यहां रहते हुए वर्ष 1987 में फजलगंज फायर स्टेशन के पीछे घड़ी डिटरजेंट बनाने की छोटी सी फैक्ट्री लगाई। इसका नाम श्री महादेव सोप इंडस्ट्री रखा। इसे चलाने में कई साल लगे, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। घड़ी साबुन बनाकर दोनों भाई पैदल घरों, मोहल्लों और दुकानों में पहुंचाते और जो पैसा आता उससे अपने परिवार का पेट भरते। इनके दोस्त प्रभु गुप्ता बताते हैं कि मुरली बाबू ने कभी क्वालिटी के साथ समझौता नहीं किया। बेहतर ब्रांड तैयार कर अन्य कंपनियों के मुकाबले कम कीमत पर घड़ी साबुन को लोगों के घरों तक पहुंचाया। एक समय ऐसा आया जब कानपुर के हर घर पर घड़ी साबुन ही दिखती थी। बताते हैं कि डिटरजेंट और साबुन के क्षेत्र में अन्य बड़ी कंपनियों से चुनौती मिलने की वजह से इन्होंने अपना क्षेत्र सीमित रखा। उत्तर प्रदेश में ही मार्केटिंग तेज की और यहीं पर अपने प्रोडक्ट बेचे।
निरमा को पटखनी देकर बना नंबर वन ब्रांड
कानपुर में पैर जमाने के बाद मुरली बाबू और उनके भाई ने घड़ी को यूपी के अन्य शहरों में पहुंचाने के लिए नई मार्केटिंग रणनीति के तहत बाहर कदम रखा। लेकिन उन्हें 1970 के दशक के निरमा से कड़ी टक्क्र मिल रही थी। लेकिन मुरली बाबू ने निरमा को पटखनी देने के लिए उसी के फामूर्ले के तहत बाजार में अपने पैर आगे बढ़ाए। मुरली बाबू ने अपनी घड़ी साबुन की पंच लाइन खुद तैयार की थी, ‘पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें’। यह बात लोगों की जुबान पर चढ़ने लगी। निरमा के अभेद्य किले को उसी के नुस्खे से घड़ी ने तोड़ा। सफलता के लिए पैसा ही हो, जरूरी नहीं। हिन्दुस्तान लीवर और प्रॉक्टर एंड गैम्बल जैसे मल्टीनेशनल समूह के सामने घड़ी कुछ नहीं था। इसलिए रणनीति के तहत घड़ी ने यूपी की मार्केट पर ही फोकस किया। देश की कुल मांग का 18 प्रतिशत यूपी से आता है, इसलिए खामोशी के साथ घड़ी ने पहले यूपी का किला फतह किया, फिर मध्य प्रदेश , दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार में जंग जीती। आज पूरे देश में घड़ी का शोर है।
हरदिन बेटों से लेते हैं कारोबार की जानकारी
मुरलीबाबू के दो बेटे हैं मनोज ज्ञानचंदानी और राहुल ज्ञानचंदानी। बिमल बाबू के सिर्फ एक बेटा है रोहित। मनोज रेड चीफ के साथ कंपनी के प्रोडक्ट की जिम्मेदारी संभालते हैं, जबकि राहुल और रोहित ऑपरेशंस और मार्केटिंग की। मुरली बाबू और ज्ञानचंदानी रोजाना कंपनी की हर स्थिति की रिपोर्ट लेते हैं। नियमित ऑफिस आते हैं। कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति को अलग अलग जिम्मेदारी और जवाबदेही सौंपी गई है। मुरली बाबू की कंपनी के डिटर्जेन्ट पाउडर की 8 लाख मीट्रिक टन सालाना उत्पादन क्षमता है, जो देश में किसी भी डिटर्जेन्ट कंपनी की तुलना में सबसे ज्यादा है। समूह ने होमकेयर बाजार में भी कदम रख दिए हैं। हरिद्वार में इसकी यूनिट स्थापित हो गई है। जहां शैम्पू, हेयर आयल, टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, हैंड वाश, फ्लोर क्लीनर और टॉयलेट क्लीनर सहित दर्जनों उत्पाद बन रहे हैं।
नोटबंदी और जीएसटी के बाद भी बढ़ते गए कदम
नोटबंदी के समय देश भर के उद्योगों के सामने पूंजी और उत्पादन का संकट मंडरा रहा था तब कानपुर की दिग्गज कंपनी आरएसपीएल (रोहित सरफेक्टेंट प्राइवेट लिमिटेड) ने तरक्की की नई इबारत गढ़ी। इसके बाद जीएसटी की उलझनों से निकलते हुए कंपनी ने अपनी तरक्की की रफ्तार को बनाए रखा। नतीजा ये हुआ कि कंपनी ने दो साल में करीब 4800 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति अर्जित की। कंपनी के प्रबंधक इसके पीछे अपने काम के प्रति ईमानदारी को ही श्रेय देते हैं। मुरली बाबू की वर्ष 2015 में कुल 8035 करोड़ रुपये की संपत्ति थी। यह वर्ष 2017 में 14802 करोड़ में तब्दील हो गई। मुरली बाबू के करीबियों की मानें तो वह खुद कंपनी के काम-काज पर नजर रखते हैं और लोगों का विश्वास कंपनी पर बना रहे इसके लिए अपने परिवार के साथ कंपनी के अफिसरों व कर्मचारियों से सीधे बात करते हैं।