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कानपुर

टीबी के रोगियों को अब नहीं लगेंगे दर्द देने वाले इंजेक्शन, आसान होगा इलाज

डब्ल्यूएचओ ने बदली गाइड लाइन, अब दवाओं से दूर किया जाएगा मर्ज

कानपुरOct 14, 2019 / 12:41 pm

आलोक पाण्डेय

टीबी के रोगियों को अब नहीं लगेंगे दर्द देने वाले इंजेक्शन, आसान होगा इलाज

टीबी के रोगियों को अब नहीं लगेंगे दर्द देने वाले इंजेक्शन, आसान होगा इलाज

कानपुर। टीबी के मरीजों को अब दर्द से राहत मिलेगी। उन्हें अब इंजेक्शन लगवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि पूरा इलाज दवाओं से होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 70 साल पुराने इलाज के तरीके में बदलाव की तैयारी की है। इसके लिए देशभर के मेडिकल कॉलेजों के विशेषज्ञों को प्रशक्षिण दिया जा रहा है।
टीबी का रोग बना चुनौती
टीबी का रोग तेजी से दुनिया में पैर पसार रहा है। २०१७ में दुनिया के १३ लाख लोग इस बीमारी से मौत का शिकार बने, जबकि पूरी दुनिया में उस समय टीबी से पीडि़त लोगों की संख्या एक करोड़ थी। 4.10 लाख लोगों की भारत में 2017 में जान गईं। देश में 217 लोग प्रति लाख आबादी में टीबी पीडि़त है। जबकि 133 लोग प्रति लाख आबादी में पूरी दुनिया में पीडि़त चल रहे हैं।
पांच तरह के दिए जाते इंजेक्शन
टीबी से पीडि़त सामान्य और एमडीआर मरीजों को फिलहाल एमिकामाइसिन, स्ट्रेप्टोमाइसिन, कैनामाइसिन समेत चार-पांच तरह के इंजेक्शन दिए जा रहे हैं। जिसे बंद करने की तैयारी शुरू हो रही है। डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों ने योजना का खाका बना लिया है। अगले साल दिसम्बर या जनवरी में इसे लागू किया जाएगा। जिसके बाद इंजेक्शन लगने बंद हो जाएंगे।
२०२५ तक टीबी मुक्ति का लक्ष्य
देश को २०२५ तक टीबी से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। इसे लेकर नवंबर में सेंट्रल टीबी डिवीजन की दिल्ली में बैठक होगी। जिसमें कानपुर से जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल के डॉक्टर आनंद कुमार इसकी ट्रेनिंग ले रहे हैं। इस कार्यशाला में भारत के साथ दुनिया के विशेषज्ञ डॉक्टर हिस्सा ले रहे हैं।
दो जांचें कराना जरूरी
जारी होने वाली नई गाइडलाइन में दो जांचें अनिवार्य रूप से होंगी। इनमें सीबी नॉट और लाइन प्रोव एसे शामिल हैं। इसके साथ ही टीबी रोगियों को तीन ग्रुप में बांटा जाएगा, जिन्हें दवाओं की अलग-अलग डोज अलग कम्पोजीशन के साथ दी जाएगी। चेस्ट रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. आनंद कुमार का कहना है कि टीबी के इंजेक्शन के साइड इफेक्ट भी हैं। कुछ मरीजों को लंबे समय या छह महीने तक यह लगते हैं। कई मरीज इंजेक्शन से ऊबकर बीच में ही इलाज छोड़ देते हैं। इसी बड़ी समस्या के चलते बदलाव होने जा रहा है।

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