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एक पक्षी जिसके प्रजनन से करते हैं मानसून का आकलन, डांग क्षेत्र में मानसून की स्थिति जानने का है अनूठा तरीका

एक पक्षी जिसके प्रजनन से करते हैं मानसून का आकलन डांग क्षेत्र में मानसून की स्थिति जानने का है अनूठा तरीका इस बार व्यक्त किया है सामान्य वर्षा का अनुमान करौली जिले में करणपुर इलाके में चम्बल किनारे पर डांग क्षेत्र में बसे ग्रामीणों द्वारा वर्षा की स्थिति का पूर्वानुमान लगाने के लिए अनूठा तरीका अपनाया जाता है। वे टिहरी के जन्म देने के तरीके से वर्षा की स्थिति का आकलन कर लेते हैं। इस साल के मानसून को लेकर उन्होंने सामान्य वर्षा होने का अनुमान जताया है।

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एक पक्षी जिसके प्रजनन से करते हैं मानसून का आकलन,  डांग क्षेत्र में मानसून की स्थिति जानने का है अनूठा तरीका

एक पक्षी जिसके प्रजनन से करते हैं मानसून का आकलन, डांग क्षेत्र में मानसून की स्थिति जानने का है अनूठा तरीका

एक पक्षी जिसके प्रजनन से करते हैं मानसून का आकलन

डांग क्षेत्र में मानसून की स्थिति जानने का है अनूठा तरीका

इस बार व्यक्त किया है सामान्य वर्षा का अनुमान

करौली जिले में करणपुर इलाके में चम्बल किनारे पर डांग क्षेत्र में बसे ग्रामीणों द्वारा वर्षा की स्थिति का पूर्वानुमान लगाने के लिए अनूठा तरीका अपनाया जाता है। वे टिहरी के जन्म देने के तरीके से वर्षा की स्थिति का आकलन कर लेते हैं। इस साल के मानसून को लेकर उन्होंने सामान्य वर्षा होने का अनुमान जताया है। पिछड़े हुए डांग क्षेत्र के इलाके में मौसम विभाग से न तो अधिक वाकिफ हैं और न उन तक मौसम विभाग से सम्बन्धित सूचनाएं पहुंच पाती है। वे अपने तरीकों से मौसम का आकलन करते रहे हैं। इसी में एक तरीका टिहरी के प्रजनन को लेकर है।
टिहरी एक पक्षी है जो जलाशय के किनारे जमीन पर खेतों में अपना आशियाना बनाती है। गर्मी के दिनों में टिहरी का प्रजनन काल होता है। इस दौरान वह 4 से 6 अंडे देती है।
हल्के भूरे रंग के काले निशान वाले ये अंडे होते हैं। इन अंडों को 18 से 20 दिन तक निशेचन ( बैठ कर गर्मी ) करने के बाद बच्चा बाहर निकलता है।

ऐसे लगाते अनुमान

ग्रामीणों की मान्यता है कि टिहरी ( टीटोरी) के अंडों का मुंह जमीन की ओर हो तो भारी बारिश, समतल या अगल-बगल की ओर हो तो सामान्य बारिश, अंडे यदि गड्ढ़ों में दिए गए हों तो अकाल पडऩा निश्चित होता है। इस बार टिहरी ने अंडे समतल में दिए हैं और उनका मुंह आमने-सामने है। इस कारण सामान्य बारिश की उम्मीद की जा रही है।

चूजे निकालने को लाते हैं पारस पत्थर

टिहरी द्वारा अप्रेल से जून महीनों में अंडे दिए जाते हैं। इससे मानसून नजदीक आने के संकेत भी मिलते हैं। आमतौर पर टिहरी द्वारा अपने अंडों को अपने शरीर की गर्मी देकर पकाया जाता है लेकिन इन अंडों को फोडऩे के टिहरी पक्षी पत्थर लेकर आते हैं। वन्य जीव प्रेमी शिवचरण दीक्षित बताते हैं कि क्षेत्र में इस पत्थर को पारस पत्थर कहा जाता है। इस पत्थर से अंड़ों को फोड़कर चूजे बाहर निकाले जाते हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि टिहरी के अंडों के दिखने से व्यक्ति को धन प्राप्ति होती है। खास बात यह भी है कि टिहरी अंडों को फोड़ कर चूजे निकालने वाले उस पारस पत्थर को ऐसे स्थान पर पहुंचा देती है, जहां इंसान नहीं पहुंच सके। इस बार टिहरी ने अंडे करणपुर में तालाब के किनारे समतल स्थान पर एक अग्रवाल परिवार के घर के सामने अंडे रखे हैं। अंडों की रक्षा करने में ये परिवार सहायक बना हुआ है।