इतिहासकारों के अनुसार मुगलकाल में शुरू हुए भक्तिकाल में सूरदास के गुरु कृष्णभक्त वल्लभाचार्य ने कृष्ण भगवान के बाल रूप की संकल्पना की थी। भक्ति काल में कृष्ण की किशोरवय की एकल (ग्वाल-बाल स्वरूप) प्रतिमाएं स्थापित की गई। वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ नाथद्वारा में स्थापित की गई। कृष्ण भक्ति के भजनकार कृष्ण बिहारी पाठक ने बताया कि वर्ष 1565 में वल्लभाचार्य के द्वितीय पुत्र विठ्ठलनाथ ने पिता व स्वयं के चार-चार शिष्यों का समूह बना कर अष्टछाप की स्थापना की थी। गुरु विठ्ठलनाथ ने अष्टछाप में शामिल शिष्यों को मंदिरों मेंं भगवान कृष्ण की सभी आठ आरती के समय संकीर्तन व स्तुति भजनों की रचना करने का जिम्मा दिया था। उसी परम्परा के तहत हरदेवजी मंदिर में भी सुबह व शाम चार-चार बार आरतियां होती हैं। भक्तों का समूह मंदिर प्रांगण मेंं आरती गायन करता हैं। मंदिर में आमावस्या व पूर्णिमा के अलावा व्रत-उत्सवों पर भजन संकीर्तन का आयोजन होता है।
कृष्ण बिहारी पाठक ने बताया कि राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टि मार्गीय) के छह बड़े मंदिर हैं। नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर प्रधान पीठ है। इसके अलावा कांकरौली में द्वारिकाधीश मंदिर, नाथद्वारा के विठ्ठलनाथ जी का मंदिर, कोटा में मधुरेशजी का मंदिर, कामां में गोकुलचंद जी व मदनमोहन जी का मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय की पूजा पद्धति के हैं। जहां कृष्ण भगवान के एकल बिग्रह बाल रूप की पूजा की जाती है।
यह है आरती का समय
प्रात: कालीन आरती
मंगला आरती- 5 बजे
धूप आरती- 8.30 बजे
शृंगार आरती-10 बजे
भोग आरती- 11 बजे
संध्या आरती- 7.30 बजे
उल्लई आरती- 8 बजे
शयन आरती – रात 8.45 बजे
जन्माष्टमी पर आज होगी विशेष पूजा
सेवायत चंद्रमोहन गोस्वामी ने बताया मंदिर में सुबह शाम की नियमित आठ आरतियों के अलावा जन्मोत्सव पर विशेष पूजा होगी। इसके तहत रात 8.30 बजे शयन के बाद रात 9 बजे से 11.30 बजे तक हरदेवजी प्रतिमा का अभिषेक किए जाएगा। रात 12 बजे जन्मोत्सव की आरती की जाएगी। बाद में पंजीरी व पंचामृत को प्रसाद वितरण किया जाएगा।