
हिण्डौनसिटी. नीमका बाजार स्थित हरदेवजी के मंदिर में विराजित भगवान कृष्ण का ग्वाल स्वरूप बिग्रह।
हिण्डौनसिटी. भले की राधा रानी के बिना कृष्ण को अधूरा माना जाता है, लेकिन हिण्डौन में हरदेवजी मंदिर में कृष्ण भगवान का एकल बिग्रह की पूजा की जाती है।
वल्लभ सम्प्रदाय की पूजा परिपाटी के प्राचीन मंदिर मेंं बिना राधा रानी के भगवान कृ़ष्ण की ग्वाल रूप की प्रतिमा विराजित हैं। मंदिर में सम्प्रदाय की परिपाटी की भांति दिन में आठ बार हरदेवजी की आरती की जाती हैं। हरदेवजी प्रतिमा में नाथद्वारा के श्रीनाथजी के स्वरूप का दरस होता है।
हरदेव कला मंडल के संयोजक छैलबिहारी पाठक ने बताया कि नीम का बाजार स्थित हरदेवजी का मंदिर जयपुर रियासत का करीब 225 वर्ष पुराना मंदिर है। बुजुर्गों के अनुसार प्रदेश के अन्य मंदिरों में विराजित कृष्ण बिग्रहों की भांति मुगलकाल में भगवान हरदेवजी की प्रतिमा का जयपुर रियासत में आगमन हुआ था। जहां से प्रतिमा को हिण्डौन में नीम का बाजार स्थित हवेली में विराजित किया गया। उस दौरान जयपुर रियासत के नरेश ने गोस्वामी परिवार को भगवान हरदेवजी की पूजा सेवा का जिम्मा सौपा था। जो पीढ़ी-दर पीढ़ी जारी है। पूजा के क्रम में मंदिर के सेवायत के तौर पर वर्तमान में कैलाश गोस्वामी व उनके पुत्र मनमोहन गोस्वामी व रूपेश गोस्वामी में सेवा कार्य कर रहे हैं।
भगवान कृष्ण के ग्वाल रुप के होती पूजा
पाठक ने बताया कि मुगलकाल में शुरू हुए भक्तिकाल में सूरदास के गुरु कृष्णभक्त वल्लभाचार्य ने कृष्ण भगवान के ग्वाल रूप की संकल्पना की थी। भक्ति काल में कृष्ण की किशोरवय की एकल (अविवाहित ग्वाल स्वरूप) प्रतिमाएं स्थापित की गई। वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ नाथद्वारा में स्थापित की गई। कृष्ण भक्ति के भजनकार कृष्ण बिहारी पाठक ने बताया कि वर्ष 1565 में वल्लभाचार्य के द्वितीय पुत्र विठ्ठलनाथ ने पिता व स्वयं के चार-चार शिष्यों का समूह बना कर अष्टछाप की स्थापना की थी। उस दौरान अष्टछाप में शामिल शिष्यों को गुरु विठ्ठलनाथ ने मंदिर में भगवान कृष्ण की आठों आरती के समय संकीर्तन व स्तुति भजनों की रचना करने का दायित्व सौंपा था।
उसी परम्परा के तहत हरदेवजी मंदिर में भी सुबह व शाम चार-चार आरतियां होती हैं। भक्तों का समूह मंदिर प्रांगण मेंं आरती गायन करता हैं। आरतियों के समय नगर आराध्य के दर्शनों के लिए भीड़ रहती है। मंदिर में आमावस्या व पूर्णिमा के अलावा व्रत-उत्सवों पर भजन संकीर्तन का आयोजन होता है।
ये हैं वल्लभ संप्रदाय के मंदिर-
पाठक ने बताया कि राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टि मार्गीय) के छह बड़े मंदिर हैं। नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर प्रधान पीठ है। इसके अलावा कांकरौली में द्वारिकाधीश मंदिर, नाथद्वारा के विठ्ठलनाथ जी का मंदिर, कोटा में मधुरेशजी का मंदिर, कामां में गोकुलचंद जी व मदनमोहन जी का मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय की पूजा पद्धति के हैं। जहां कराधारानी नहीं हैं संग, कृष्ण के ग्वाल रूप में एकल हैं हरदेव
हरदेव मंदिर में है वल्लभ सम्प्रदाय की पूजा परिपाटी
कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष
हिण्डौनसिटी. भले की राधा रानी के बिना कृष्ण को अधूरा माना जाता है, लेकिन हिण्डौन में हरदेवजी मंदिर में कृष्ण भगवान का एकल बिग्रह की पूजा की जाती है।
वल्लभ सम्प्रदाय की पूजा परिपाटी के प्राचीन मंदिर मेंं बिना राधा रानी के भगवान कृ़ष्ण की ग्वाल रूप की प्रतिमा विराजित हैं। मंदिर में सम्प्रदाय की परिपाटी की भांति दिन में आठ बार हरदेवजी की आरती की जाती हैं। हरदेवजी प्रतिमा में नाथद्वारा के श्रीनाथजी के स्वरूप का दरस होता है।
हरदेव कला मंडल के संयोजक छैलबिहारी पाठक ने बताया कि नीम का बाजार स्थित हरदेवजी का मंदिर जयपुर रियासत का करीब 225 वर्ष पुराना मंदिर है।
बुजुर्गों के अनुसार प्रदेश के अन्य मंदिरों में विराजित कृष्ण बिग्रहों की भांति मुगलकाल में भगवान हरदेवजी की प्रतिमा का जयपुर रियासत में आगमन हुआ था। जहां से प्रतिमा को हिण्डौन में नीम का बाजार स्थित हवेली में विराजित किया गया।
उस दौरान जयपुर रियासत के नरेश ने गोस्वामी परिवार को भगवान हरदेवजी की पूजा सेवा का जिम्मा सौपा था। जो पीढ़ी-दर पीढ़ी जारी है। पूजा के क्रम में मंदिर के सेवायत के तौर पर वर्तमान में कैलाश गोस्वामी व उनके पुत्र मनमोहन गोस्वामी व रूपेश गोस्वामी में सेवा कार्य कर रहे हैं।
भगवान कृष्ण के ग्वाल रुप के होती पूजा
पाठक ने बताया कि मुगलकाल में शुरू हुए भक्तिकाल में सूरदास के गुरु कृष्णभक्त वल्लभाचार्य ने कृष्ण भगवान के ग्वाल रूप की संकल्पना की थी। भक्ति काल में कृष्ण की किशोरवय की एकल (अविवाहित ग्वाल स्वरूप) प्रतिमाएं स्थापित की गई। वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ नाथद्वारा में स्थापित की गई। कृष्ण भक्ति के भजनकार कृष्ण बिहारी पाठक ने बताया कि वर्ष 1565 में वल्लभाचार्य के द्वितीय पुत्र विठ्ठलनाथ ने पिता व स्वयं के चार-चार शिष्यों का समूह बना कर अष्टछाप की स्थापना की थी। उस दौरान अष्टछाप में शामिल शिष्यों को गुरु विठ्ठलनाथ ने मंदिर में भगवान कृष्ण की आठों आरती के समय संकीर्तन व स्तुति भजनों की रचना करने का दायित्व सौंपा था।
उसी परम्परा के तहत हरदेवजी मंदिर में भी सुबह व शाम चार-चार आरतियां होती हैं। भक्तों का समूह मंदिर प्रांगण मेंं आरती गायन करता हैं। आरतियों के समय नगर आराध्य के दर्शनों के लिए भीड़ रहती है। मंदिर में आमावस्या व पूर्णिमा के अलावा व्रत-उत्सवों पर भजन संकीर्तन का आयोजन होता है।
ये हैं वल्लभ संप्रदाय के मंदिर-
पाठक ने बताया कि राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टि मार्गीय) के छह बड़े मंदिर हैं। नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर प्रधान पीठ है। इसके अलावा कांकरौली में द्वारिकाधीश मंदिर, नाथद्वारा के विठ्ठलनाथ जी का मंदिर, कोटा में मधुरेशजी का मंदिर, कामां में गोकुलचंद जी व मदनमोहन जी का मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय की पूजा पद्धति के हैं। जहां कृष्ण भगवान के एकल बिग्रह ग्वाल रूप की पूजा की जाती है।
Published on:
30 Aug 2021 09:18 am
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