
एक धनी व्यक्ति के निकट एक भगवद्भक्त रहता था, जो ईश्वर-भजन में लीन रहता। भूख लगने पर भिक्षा मांगकर पेट भर लेता। धनी व्यक्ति ने चिढ़ते हुए कहा- 'अरे मूर्ख, कुछ कमा। भविष्य के लिए बचा, ताकि संकट के समय तेरा कमाया-बचाया काम आ सके।' भजन-कीर्तन यथावत जारी रहा। भक्त को फिर अपमानित करते हुए धनी व्यक्ति बोला- 'ले यह डण्डा। अगर कोई तेरे से भी बड़ा मूर्ख मिले, तो यह उसे दे देना।
भक्त ने विनम्रतापूर्वक डण्डा लिया। संयोगवश कुछ दिनों बाद धनी व्यक्ति इतना बीमार पड़ गया कि बचने की उम्मीद न रही। मृत्यु शैया पर पड़े धनी व्यक्ति से भक्त ने पूछा- 'पूज्यवर, आपने इतने कष्ट उठाकर जो भौतिक-संग्रह किया, क्या यह आपके साथ जाएगा?Ó 'नहीं,Ó उत्तर मिला। भक्त ने कहा- 'फिर मेरे से बड़े मूर्ख तो आप हुए जो कष्टपूर्वक की कमाई व संग्रहीत वस्तुओं को मृत्यु के उपरांत साथ न ले जा सकोगे। लो, यह आपके द्वारा मुझको दिया गया डण्डा।Ó धनी व्यक्ति को भक्त अपमान का अहसास हो रहा था।
(यह लोककथा पत्रिका में मूर्ख का डण्डा शीर्षक से प्रकाशित हुई है।)
Published on:
28 Jan 2018 08:39 pm
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