31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

1897 में जहां राजा भोमपाल ने भूमि का पट्टा देकर की थी राग-भोग की व्यवस्था, वहां ऐसे विराजे मदनमोहन जी

मुगल मंदिरों को तहस—नहस कर रहे थे, 270 साल पहले ब्रजभूमि से करौली में स्थापित हुई ये प्रतिमा...

2 min read
Google source verification

करौली

image

Vijay ram

May 07, 2018

news

करौली सिटी में आज से करीब 270 साल पहले भगवान मदनमोहन जी की प्रतिमा ब्रजभूमि से लाकर स्थापित की गई थी। यहां दाऊजी का प्राचीन मंदिर भी राजकीय महाविद्यालय के सामने स्थित है, जहां बलदेव छठ पर काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। इस मंदिर में दाऊजी का विशाल विग्रह है।

कहते हैं कि 1897 में राजा भोमपाल ने जमीन का पट्टा देकर राग-भोग की व्यवस्था की थी। पास ही में 200 वर्ष प्राचीन देवालय दाऊजी मंदिर है। बीते 40 वर्षों से हरिचरण शर्मा यहां की पूजा सेवा कर रहे है। इससे पहले भगवान दास इस मंदिर के महंत थे। इस प्रतिमा को काफी प्राचीन बताया जाता है। पहले यह प्रतिमा राजमहल के पास सूर्यनारायण मंदिर के निकट स्थापित थी। इसे बाद में वर्तमान मंदिर में लाकर विराजित किया गया। भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को प्रति वर्ष यहां लगने वाले मेले में काफी भक्त आते हैं।

जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मन्दिर में पाट मंगला हेतु सुबह जल्दी खुल जाते हैं। इसके बाद अभिषेक करके शृंगार, बाल भोग और आरती होती है। मन्दिर में बधाई गायन होता है। हल्दी, केसर, दही मिश्रित कर गोस्वामी कल्याण देव के वंशजों एवं भक्तों पर छिड़का जाता है। इसको दधिकोत्सवश के नाम से जाना जाता है। इस दिन मन्दिर परिसर नंद के आनन्द भयो जय दाऊदयाल की ध्वनि के साथ गुंजायमान रहता है।

लगभग 200 वर्ष पुराने इस मंदिर का सरकारी संरक्षण के अभाव में विकास नहीं हो पाया है। जिले के हिण्डौन में सर्राफा बाजार में तथा गुढ़ाचन्द्रजी के दाऊजी मंदिरों में भी नियमित सेवा-पूजा के साथ जयंती पर मेलों का आयोजन होता है।

Read also: मुगल मंदिरों को तहस—नहस कर रहे थे, 270 साल पहले ब्रजभूमि से प्रतिमा लाकर करौली में विराजे गए मदनमोहन जी


पुराणों में बलदाऊजी

''भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज दाऊजी के जन्म के विषय में गर्ग पुराण में उल्लेख है कि देवकी के सप्तम गर्भ को योगमाया ने संकर्षण कर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया। भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को नन्दबाबा के यहां रह रही वसुदेव की पत्नी रोहिणी के गर्भ से अनन्तदेव शेषावतार प्रकट हुए। इस कारण दाऊजी महाराज का दूसरा नाम संकर्षणश् हुआ। उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ मिलकर मथुरा के राजा कंस का वध किया। दाऊजी मल्ल विद्या के गुरू थे। साथ ही हल मूसल होने के साथ वे कृषक देवश भी थे। आज भी किसान अपने कृषि कार्य प्रारम्भ करने से पहले दाऊजी को नमन करते हैं।''
— वेणुगोपाल शर्मा, सेवानिवृत पुस्तकालयाध्यक्ष

Read also: चंबल के बीहड़ में अपनी आन, बान और शान के साथ-साथ महिलाओं के प्रति सम्मान की रक्षा के लिए भी जाने जाते हैं डकैत
.........