नाम है चूहा की लेकिन यहां जाकर मिलता है सुकून
डांग इलाके में चूहा की स्थान बन जाता है बारिश के दिनों में पिकनिक स्पॉट
चहुंओर हरियाली, पहाडिय़ों में शिव मंदिर और बहता है झरना
करौली जिले में सपोटरा उपखंड की ग्राम पंचायत अमरगढ़ में हटिया की व बंगला की गांव के समीप स्थित चूहा की बारिश के दिनों में इलाके का प्रमुख पिकनिक स्पॉट बन जाता है। यहां प्राचीन शिव मन्दिर भी है। इस कारण लोग झरने के बहते पानी में नहाने और मंदिर पर भोलेनाथ की पूजा करने के लिए पहुंचते हैं। मन्दिर पर पहुंचने के लिए झरने के बहते पानी को पार करना पड़ता है। इसलिए लोग नहाते हुए ही मंदिर में पूजा आराधना करने को पहुंच जाते हैं।
घने जंगल में स्थित यह स्थल क्षेत्र में पर्यटन की ²ष्टि से विशेष पहचान रखता है जहां पर बारिश के सीजन में काफी लोग पिकनिक मनाने को पहुंचते हैं। यहां चारों ओर हरियाली और दो पहाडिय़ों के बीच एक खोह में शिव मंदिर बना हुआ है। सावन में दूर-दूर से लोग यहां शिवजी की पूजा करने के लिए इस मंदिर पर आते हैं।
यूं पड़ा चूहा की नाम
डांग क्षेत्र के रमणीय स्थल चूहा की का नाम सभी को चौंका देता है। नाम के बारे में बुजुर्ग बताते है कि यह स्थान सैंकड़ों वर्ष पहले साधु- संतों की तपोस्थली रही है। यहां एक संत ने समाधि भी ली थी। ग्रामीणों द्वारा संत के स्मारक का भी निर्माण करवाया हुआ है। खास बात यह है कि शिव मन्दिर तथा इसके आसपास की पहाडिय़ों से बिना बारिश के भी पानी झरता रहता है। पानी के झरने (चुचाने) से इसका नाम अपभ्रंश होकर चूहा की पड़ गया। नाम को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यहां पर चलने वाले झरने की आकृति भी चूहे जैसी दिखती है।
ऐसे पहुंचते है लोग
सपोटरा से 15 किमी. की दूरी पर बना यह स्थान है। यहां पर सपोटरा से अमरगढ़ होते हुए बंगला की पहुंचना पड़ता है। वहां से इस स्थान की दूरी 3- 4 किमी की है। आमतौर पर लोग पिकनिक मनाने के लिए दुपहिया व चौपहिया वाहनों से आते हैं। सामान्य दिनों में तो मन्दिर पर पहुंचने के लिए 300 मीटर पैदल चलना पड़ता है। जबकि बारिश के दिनों में बहते हुए झरने के पानी में से गुजर कर मन्दिर तक पहुंचना होता है।
मंगला आरती पर
शंख की ध्वनि
क्षेत्र के लोग चूहा की महादेव मन्दिर की विशेष महिमा बताते हैं। यहां ठाकुरजी का प्राचीन मन्दिर भी है। पहाडी के नीचे विशेष आकृति में होने के कारण एक तरफ से पक्की दीवार बनाकर मन्दिर कक्ष का निर्माण कराया हुआ है। वही शिव मन्दिर भी पहाडी के नीचे तलहटी में है। बारिश में ज्यादा पानी आने पर शिव मन्दिर तक पहुंचना जोखिम भरा होता है।
शिव मन्दिर के दूसरी ओर संत की छतरी है। यहां के लोग बताते हैं कि प्रतिदिन यहां शंख की ध्वनि मंगला आरती के समय सुनाई देती है। सावन में शिवभक्तों का दिनभर तांता लगा रहता है और बम बम भोले के जयकारे गूंजते हैं।
बहता झरना आकर्षण का केन्द्र
बारिश के सीजन में यहां पर बहता झरना आकर्षण का केन्द्र होता है। पिकनिक मनाने के लिए पहुंचने वाले लोग यहां झरने में नहाते हैं और प्रकृति का आनंद लेते हुए खाना भी बनाते-खाते हैं। पिछले दिनों हुई बारिश के बाद यहां पर लगातार झरना चल रहा है और काफी लोग पिकनिक मनाने पहुंचे रहे हैं। इलाके के लोग बताते हैं कि सरकार इस स्थान को अगर विकसित कर दे तो ये स्थान काफी अच्छा पर्यटन स्थल बन सकता है।
पंचायत ने करवाया मंदिर जीर्णोद्धार
चूहा की स्थान वन क्षेत्र में है। ऐसे में यहां निर्माण कराना वन विभाग की आपत्ति के कारण संभव नहीं हो पाता है। हालांकि कुछ समय पहले ग्राम पंचायत ने मंदिर के जीर्णोद्धार की वन विभाग से अनुमति लेकर मंदिर जीर्णोद्धार कराया था। पंचायत ने मंदिर तक सीढिय़ां भी बनवाई थी। लेकिन बारिश में ये निर्माण क्षतिग्रस्त हुआ है।