कासगंज

तीर्थनगरी सोरों की रहस्यभरी कहानी, जहां भगवान विष्णु ने वराह के रूप में अवतार लिया था, देखें वीडियो

-भगवान वराह ने हरिपदीय गंगा कुंड को नाखूनों से खोदकर बनाया -पौराणिक महत्व है सोरों का, कुंड में स्नान से मिलती है पापों से मुक्ति -सोरों में भूत का घर जो रात ही रात में बनकर तैयार हुआ था

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Dec 10, 2019
Varah

कासगंज। पौराणिक नगरी है सोरों। इसे सोरों शूकर क्षेत्र भी कहा जाता है। सोरों के हरपदीय कुंड में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। कुंड में पूर्वजों की अस्थियां विसर्जित करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज हम आपको बता रहे हैं सोरों की कहानी। आखिर क्यों है सोरों प्रसिद्ध। सोरों में ही भगवान विष्णु ने वराह का अवतार लेकर पृथ्वी को मुक्त कराया था। वराह अवतार विष्णु के दशावतारों में से एक है।

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हिरण्याक्ष से पृथ्वी को मुक्त कराया
कासगंज जनपद की सोरों तीर्थ नगरी रहस्यों की नगरी कहा जाता है। सृष्टि का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह के रूप में अवतार लिया था। यह अवतार भगवान ने वराह (शूकर) के रूप में लिया, तभी से इस नगरी का नाम शूकर क्षेत्र हो गया। शूकर क्षेत्र सोरों में एक नहीं अनेक आस्था के केन्द्र हैं। वराह भगवान मंदिर के महंत विदिहानंद बताते हैं कि शूकर सोरों तो महिमा से भरा पड़ा है। हमारे यहां कई अवतार हुए हैं। दशावतारों में दो जलचर और दो वनचर, दो भूप, चार विप्र के अवतार हैं। जलचर में कक्ष और मक्ष आते हैं। वनचर वराह भगवान और नरसिंह भगवान हैं। दो भूपों में श्रीराम और श्रीकृष्ण आते हैं। चार विप्र हैं- परशुराम, बावन, बुद्ध, कपिल भगवान। ये सभी दशावतार में आते हैं। इस अवतार में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर और पृथ्वी को जल पर स्थापित किया था। हिरण्याक्ष ने जल के अंदर पूरी पृथ्वी को छिपा दिया था। बहुत बलशाली था दैत्य। उससे देवता भी हार गए थे। भगवान ने वराह का अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को मुक्त कराया।

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IMAGE CREDIT: net

भगवान ने रखा था एकादशी का व्रत
तीर्थ पुरोहित सोरों विक्रम पांडे बताते हैं कि मान्यता है कि यहां भगवान ने वराह (तृतीय अवतार) के रूप में एकादशी के दिन व्रत रखकर पंचकोसी की परिक्रमा की थी। बाद में हिरण्याक्ष का वध कर हरिपदीय गंगा कुंड को नाखूनों से खोदकर अपने प्राण कुंड में त्याग दिये थे। तभी से इस कुंड में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। मृत पूर्वजों की अस्थियां विसर्जन करने से उनकी आत्मा का शांति मिलती है। विसर्जन की जाने वाली अस्थियां 72 घंटे यानि तीन के दिन के अंदर पानी में घुल मिलकर रेणु रूप हो जाती है। तभी से मार्गशीर्ष मेले का शुभारंभ हुआ था।

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सोरों के तीर्थ पुरोहित मनोज पराशर ने सोरों की महिमा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यहां भगवान वराह, तुलसी जन्मभूमि, तुलसी पाठशाला, रत्नावली की रसोई, सीता की रसोई, हरपदीय गंगाकुंड के अलावा भूत का घर हैं। भूत का घर रात ही रात में बनकर तैयार हुआ था। इसके अलावा देश में चार वृक्षों में से एक वट वृक्ष भी यहीं है। इसके अलावा तमाम आस्था से जुड़े हुए रहस्यों की नगरी सोरों है। बदांयू से मार्गशीर्ष मेले का स्नान करने आई श्रद्धालु ममता ने बताया कि हरपदीय गंगा में जो भी स्नान करने आता है, वह धन्य हो जाता है। साथ ही पाप मुक्त हो जाता है।

Published on:
10 Dec 2019 11:46 am
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