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प्रजा की खुशहाली के लिए गर्म कढ़ाव में कूदते थे राजा, माता देती थीं सवा मन सोना

इतिहास को संजोए है बिलहरी का मां चंडी मंदिर, देवी की महिमा देखने उमड़ते हैं लोग, खास है बिलहरी का मां चंडी मंदिर

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कटनी

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Balmeek Pandey

Mar 31, 2025

Chandi Devi Bilhari Puja in Chaitra Navratri

Chandi Devi Bilhari Puja in Chaitra Navratri

कटनी. चैत्र नवरात्र के पावन अवसर पर पूरे देश में मां आदिशक्ति की अराधना की जा रही है। भक्तजन भक्ति और श्रद्धा में लीन होकर माता के दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। इसी क्रम में बिलहरी स्थित मां चंडी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। बिलहरी, जिसे प्राचीनकाल में पुष्पावती नगरी के नाम से जाना जाता था, राजा कर्ण की राजधानी हुआ करती थी। मान्यता है कि यहां मां चंडी प्रतिदिन राजा कर्ण को सवा मन सोना देती थीं, जिसे राजा जरूरतमंदों में दान कर दिया करते थे। यह मंदिर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के कारण आज भी हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
मंदिर के पुजारी रोहित प्रसाद माली के परिवार के अनुसार राजा कर्ण प्रतिदिन सूर्योदय से पहले स्नान कर मां चंडी के दरबार में हाजिरी लगाते थे। वहां एक विशाल कढ़ाव में तेल उबाला जाता था, जिसमें राजा बिना किसी भय के कूद जाते थे। मान्यता है कि माता स्वयं उन पर अमृत छिडकक़र उन्हें जीवित कर देती थीं और आशीर्वाद स्वरूप उन्हें ढाई मन सोना प्रदान करती थीं। राजा कर्ण इस सोने का एक बड़ा भाग गरीबों को दान कर देते थे, जिससे उनकी प्रजा समृद्ध और खुशहाल बनी रहती थी। यह परंपरा वर्षों तक चलती रही, जिसे देखने के लिए देशभर से लोग आते थे।

विक्रमादित्य की जासूसी से सामने आई सच्चाई

कोदूपुरी गोस्वामी बताते हैं कि राजा कर्ण की इस चमत्कारी परंपरा के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था, लेकिन इस रहस्य से पर्दा उठाया उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने। कथा के अनुसार उज्जैन में एक वृद्ध महिला चक्की पीसते समय कभी रोती थी तो कभी हंसती थी। विक्रमादित्य ने जब इसका कारण पूछा तो महिला ने बताया कि उसका बेटा 20 साल पहले लापता हो गया था। इसी उम्मीद में कि वह कभी लौटकर आएगा, वह कभी रोती तो कभी हंस पड़ती थी। विक्रमादित्य उस वृद्धा के पुत्र को खोजने बिलहरी पहुंचे और पता चला कि उसका बेटा राजा कर्ण की सेना में चौकीदारी करता है। विक्रमादित्य ने युवक को मुक्त करवाया और फिर राजा कर्ण के सोने के रहस्य को जानने के लिए जासूसी करने लगे।

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विक्रमादित्य ने देवी से वरदान प्राप्त किया

जासूसी के दौरान राजा विक्रमादित्य ने देखा कि राजा कर्ण खौलते तेल में कूदते हैं और देवी से आशीर्वाद के रूप में सोना प्राप्त करते हैं। यह देखकर विक्रमादित्य ने स्वयं राजा कर्ण के स्थान पर कढ़ाव में कूदने का साहस किया। माता चंडी ने उन्हें भी आशीर्वाद दिया और वरदान स्वरूप उन्हें अक्षय पात्र और अमृत कलश प्रदान किया, जिससे कभी भी अन्न और अमृत की कमी नहीं होती थी। इसके बाद राजा विक्रमादित्य उज्जैन लौट गए और मां चंडी की महिमा को जन-जन तक पहुंचाया।

भक्तों का लगा तांता, आस्था से गूंज रहा मंदिर

आज भी मां चंडी के इस चमत्कारी मंदिर में चैत्र नवरात्र के दौरान हजारों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। यहां की नक्काशीदार कलाकृतियां और प्राचीन स्थापत्य मंदिर के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती हैं। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजन, हवन और भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं। भक्तजन देवी से सुख-समृद्धि और रक्षा का आशीर्वाद मांगते हैं। बिलहरी का मां चंडी मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह एक ऐसा स्थल है जहां इतिहास, संस्कृति और चमत्कार एक साथ देखने को मिलते हैं।