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रायल्टी ने तोड़ी मार्बल उद्योग की कमर: इस जिले में 50 खदानों का घुटा दम, 10 का ही संचालन

Marble mines closed in Katni district

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कटनी

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Balmeek Pandey

Sep 02, 2024

Marble mines closed in Katni district

Marble mines closed in Katni district

सरकार से प्रोत्साहन न मिलने व सीएसआर में शामिल न होने से बंद होने की कगार पर मार्बल खदानें, एक जिला एक उत्पाद में सिर्फ पत्थर की हुई मुंहदिखाई

कटनी. 1998 में कटनी जिले ने देशभर में जिला बनने के साथ एक और नई पहचान बनाई। बहोरीबंद-स्लीमनाबाद क्षेत्र में पहली बार मार्बल की खोज हुई। खोज होते ही तेजी से काम शुरू हुआ और 1999 से मार्बल का खनन ने जोर पकड़ा था। लगभग एक दशक तक उद्योग ने बूम पकड़ा और दिल्ली से दुबई तक कटनी के पत्थर ने अपनी साख जमाई। 2010 बढिय़ा कारोबार चला, लेकिन सरकारी नीतियों के कारण जिले का मार्बल उद्योग दम तोड़ चुका है, प्रदेश सरकार द्वारा कटनी के मार्बल के तवज्जों नहीं दिए जाने, सीएसआर में नहीं जोड़े जाने, रायल्टी में रियायत नहीं देने के कारण कारोबार का दम घुट चला है।
जिले में 2010 तक 60 मार्बल खदानें संचालित हो रहीं थी, जिससे शासन को करोड़ों रुपए के राजस्व की प्राप्ति हो रही थी बल्कि स्वरोजगार व रोजगार को बड़ा बढ़ावा मिला था। तिल-तिल करके मार्बल उद्योग का दम घुट रहा है। वर्तमान में मात्र 10 खदानें ही संचालित हो रही हैं। मार्बल खदानों से सरकार का खजाना भर रहा था, बावजूद इसके सरकार ने नजरअंदाज कर दिया है।

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रायल्टी दे रही तगड़ा झटका
मार्बल कारोबारी बताते हैं कि कटनी जिले में 50 फीसदी खदानों का संचालन पर्यावरण अनुमति सहित अन्य कारणों से बंद हंै। जिले में मार्बल का सबसे बुरा हाल है। दूसरी प्रमुख समस्या राजस्थान में रॉयल्टी कम होने यहां अधिक होने के कारण उद्योग को तगड़ा झटका लगा है। राजस्थान में 600 रुपए प्रति क्यूबिक मीटर रायल्टी लग रही है, जबकि यहां पर 1125 रुपए प्रति क्यूबिक मीटर रायटल्टी कारोबारी चुकाने मजबूर है। मार्बल पत्थर औसतन होने के कारण व्यापारी प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक पा रहे हैं। इन सभी वजहों के कारण 60 फीसदी मार्बल खदानें बंद हो चुकी हैं, जबकि कई खदानें भी अब धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर हैं।

दुबई तक जाता था मार्बल
मार्बल कारोबारी विजय गोखरू बताते हैं कि कटनी का मार्बल सात समंदर पार दुबई सहित अन्य देशों में पहचान बना चुका था। यहां के मार्बल की सबसे ज्यादा सप्लाई उत्तरप्रदेश, दिल्ली, पंजाब आदि राज्यों में हो रही थी, लेकिन अब पसंद फीकी पड़ गई है। इसे चमकाने जिम्मेदारों ने भी चैतन्यता नहीं दिखाई।

खदानें बंद होने की यह भी हैं वजह
जानकारी के अनुसार मार्बल की 5 खदानें डिया (डिस्ट्रिक इन्वायरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी) से बंद हो गई है। इसके अलावा खदानों में माल नीचे हो गया है, कास्टिंग अधिक होने के कारण खदानें कारोबारियों ने बंद कर दी हैं। 10 से 12 खदानें खसरा नंबर 210 ग्राम निमास में स्थित हैं, न्यायालय में मामला लंबित होने के कारण खदानें चालू नहीं हो पा रहीं। सिंगल विंडो सिस्टम नहीं है, फाइलें भोपाल जाती हैं, कई क्वारी होने के कारण कारोबारी परेशान हो जाते हैं, हर बिजनेस के ऊपर सीएम हेल्पलाइन का दबाव है, जिससे कारोबार प्रभावित हो रहा है।

एक जिला एक उत्पाद की बातें हवा-हवाई
तत्कालीन कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ने सरकार की एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत मार्बल को शामिल किया था, जिसमें एक बड़ा कार्यक्रम कटनी स्टोन फेस्टिवल भी जागृति पार्क में आयोजित किया गया, लेकिन यह सिर्फ आयोजन तक सीमित रह गया। प्रोत्साहन के तौर एक जिला एक उत्पाद के तहत इसको बढ़ाया मिले तो स्वरोजगार व रोजगार की अपार संभावनाएं बनेंगी।

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सरकार ने ही किया उपेक्षित
मध्यप्रदेश सरकार ने ही कटनी के मार्बल को उपेक्षित कर रखा है। शासकीय बिल्डिंगों में इसका उपयोग नहीं हो रहा। इसके प्रमोशन के लिए कोई पहल नहीं हो रही। राजस्थान का मार्बल बकायदा सरकार ने सीएसआर में शामिल कर रखा है, लेकिन कटनी का मार्बल शामिल नहीं है। अब स्थिति यहां पर यह आ बनी है कि यहां के कारोबारी पलायन कर चुके हैं, कर्मचारियों के भरोसे मार्बल कारोबार टिका है।

संगमरमर सी चमक, मजबूती बेजोड़
कटनी का मार्बल में संगमरमर जैसी चमक व काम है। इसकी पहचान उच्च गुणवत्ता, टिकाऊ पत्थर, सुंदरता खास पहचान है। यह मार्बल अधिक टिकाऊ है, जो इसमें दाग कम पड़ते हैं। मार्बल का उपयोग फर्श से लेकर काउंटरटॉप्स से लेकर दीवारों के लिए अच्छा विकल्प है। इसका उपयोग वास्तुशिल्प स्मारकों, मंदिरों और आवासों में बड़े पैमाने पर हो रहा है। इनका उपयोग मूर्तियों और अन्य कलाकृति में भी किया जा रहा है।