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करीब 200 वर्ष पुराना है डोंगरिया के महामाया मंदिर व तालाब का इतिहास

ग्राम डोंगरिया कला के सिद्धपीठ मां महामाया मंदिर में स्वयंभू भगवान शिवशक्ति सपरिवार विराजमान हैं। ऐसी दिव्य प्रतिमा जिले में और कहीं भी नही है। क्षेत्र सहित दूरदराज के श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर शिवशक्ति परिवार के दर्शन व पूजन-अर्चन करने आते हैं।

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करीब 200 वर्ष पुराना है डोंगरिया के महामाया मंदिर व तालाब का इतिहास

करीब 200 वर्ष पुराना है डोंगरिया के महामाया मंदिर व तालाब का इतिहास

पांडातराई. नगर से दो किमी दूर ग्राम डोंगरिया कला के सिद्धपीठ मां महामाया मंदिर में स्वयंभू भगवान शिवशक्ति सपरिवार विराजमान हैं। ऐसी दिव्य प्रतिमा जिले में और कहीं भी नही है। क्षेत्र सहित दूरदराज के श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर शिवशक्ति परिवार के दर्शन व पूजन-अर्चन करने आते हैं। ग्राम डोंगरिया में स्थित सिद्धपीठ माँ महामाया मंदिर का इतिहास वर्षों पुराना है।
ग्राम डोंगरिया में स्थित सिद्धपीठ माँ महामाया मंदिर का इतिहास वर्षों पुराना है। गांव के बुजुर्ग जानकार बताते हैं कि करीब दो सौ वर्ष पहले की बात है। इस क्षेत्र में मध्यप्रदेश से लमान जाति के लोग गेरू बेचने आते थे। वे लोग गेरू के बदले गाय, बछड़ा या पैसे लेते थे। उसी समय लमान जाति का एक परिवार ग्राम डोंगरिया में भी गेरू बेचने आए थे। इस परिवार के मुखिया को कुष्ठ रोग था। उसके हाथ में कोढ़ हो गया था। गांव में एक छोटा सा डबरी था। इस डबरी के पानी में कुष्ठ रोगी से पीडि़त लमान जाति के मुखिया ने जब अपना हाथ धोया, तब उसका हाथ बिलकुल ठीक हो गया। वह कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया। इसके बाद उसने उक्त डबरी के स्थान पर तालाब खोदवाने की सोची। उसने तालाब खुदवाने के लिए गेरू बेचकर कमाए हुए अपने पूरे पैसे को दे दिया। ग्रामीणों ने मिलकर डबरी की खुदाई कर तालाब बनाया। तालाब की खुदाई के दौरान उक्त स्थान से भगवान शिवशक्ति परिवार यानि भगवान शंकर, माता पार्वती और गणेश व कार्तिकेय की दिव्य व अद्भुत प्रतिमा मिली थी। ग्रामीणों ने भगवान की प्रतिमा को तालाब के पार में रखकर उसकी पूजा-अर्चना प्रारंभ की। उक्त प्रतिमा को दूसरे स्थान पर ले जाने का प्रयास किया गया। लेकिन नही ले जाया जा सका। गांव वालों ने जहां पर भगवान की प्रतिमा रखी थी, वहीं पर एक झोपड़ी बनाया। ग्राम की एक श्रद्धालु महिला भाजा बाई द्वारा सन 1982 में झोपडी के स्थान पर भगवान के लिए मंदिर का निर्माण कराया गया। अब मंदिर का काफी विस्तार हो चुका है। जो आस्था व श्रद्धा का प्रसिद्ध केंद्र है। यहां क्षेत्र सहित दूर-दराज के श्रद्धालु भगवान के दर्शन व पूजन-अर्चन करने के लिए आते हैं। मान्यता है कि भगवान शिवशक्ति सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी करती है।
१४ साल से चल रहा है दिव्य भंडारा
उक्त मंदिर में विगत 20 साल से दिव्य भंडारा चल रहा है। यह भंडारा हर माह के पूर्णिमा को होता है, यानि एक माह में दो बार भंडारा का आयोजन होता है। इसकी खास बात यह है कि भंडारा के लिए किसी से कोई सहयोग नही मांगा जाता है। न ही किसी को व्यवस्था के लिए कहा जाता है। भंडारा के एक दिन पूर्व बाहर से आकर कोई न कोई श्रद्धालु भंडारा के लिए आवश्यक सामान मंदिर में चढ़ाकर चले जाते हैं।
18 साल से अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित
डोंगरिया के इस सिद्धपीठ माँ महामाया मंदिर में १८ साल से अखंड ज्योति प्रज्जवलित हो रही है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष के चैत्र व क्वांर नवरात्री पर्व में श्रद्धालुओं द्वारा मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित कराई जाती है। इस वर्ष मंदिर में 255 ज्योति कलश प्रज्जवलित हो रहे हैं। महामाया मंदिर आसपास के लोगों के लिए आस्था का केन्द्र है।
40 वर्षों से सेवा में लीन हैं लालबाबा
मंदिर में स्थानीय निवासी कमल तिवारी महाराज पुजारी हैं। इन्हें क्षेत्र के लोग लालबाबा के नाम से जानते हैं। सन 1982 से लालबाबा भगवान की पूजा व सेवा में लीन हैं। इससे पहले इनके पूर्वज यहां पूजा करते थे। लालबाबा जब १० साल की उम्र के थे तब से इस मंदिर के पुजारी हैं। आज उन्हें पूजा करते हुए 40 वर्ष हो गए हैं। लालबाबा ब्रम्हचारी हैं।