
सांप के काटने पर नहीं करवाया अस्पताल में इलाज, अन्धविश्वास के चक्कर में हो गई तीन बच्चों की मौत
कवर्धा . छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में चार दिनों में तीन बच्चों की सर्पदंश से मौत हो गई है। बारिश होते ही सर्पदंश के मामले बढ़ जाते हैं। कबीरधाम में वनांचल क्षेत्र अधिक है, जहां पर बिजली समस्या आज भी बनी है जो सर्पदंश का सबसे प्रमुख कारण है।
घर के बाहर बिजली नहीं होने के कारण अंधेरे में अपने शिकार की तलाश में सर्प घरों में प्रवेश करते हैं। इसी दौरान लोगों से इनका आमना सामना होता है और अपने बचाव में सर्फ डंस लेते हैं। बच्चे सबसे अधिक शिकार होते हैं। पिछले चार दिनों के भीतर तीन बच्चों की मौत सर्पदंश से हुई।
इलाज में देरी की चलते यह मासूम मौत के मुंह में समा गए। पिछले वर्ष जिले में 217 प्रकरण सर्पदंश के मिले थे। इसमें समय रहते अस्पताल पहुंचने पर 210 लोगों की जान बचाई जा सकी थी। वहीं समय पर उचित इलाज नहीं मिलने के कारण 7 लोगों की मौत हो गई। इसी तरह इस वर्ष अप्रैल व मई में सर्पदंश के 48 मामले दर्ज किए गए।
अधिकांश सर्प जहरीले नहीं होते, लेकिन परिजन झाड़-फूंक और घरेलू उपचारों के चक्कर में देर से चिकित्सक तक पहुचते हैं और पीडि़तों की जान जोखिम में डाल देते हैं। यदि समय पर उचित इलाज मिल जाए तो मरीज को जहरीले सर्पदंश से भी बचाया जा सकता है।
बुधवार को कुकदुर थाना अंतर्गत ग्राम गभोड़ा की हरीपारो पिता मानसिंह बैगा (10) को बाड़ी में सर्प ने डंस लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। लोहारा थाना अंतर्गत ग्राम सरईपतेरा की नीरा कुमारी पिता धनऊ साहू (11) को खेत में सर्प ने डंस लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। वहीं पांडातराई थाना अंतर्गत ग्राम खरहट्ठा में मंदाकनी पिता पुन्नी मरकाम (15) जमीन पर सो रही थी, इसी दौरान सर्प ने डंस लिया। जिसके बाद परिजनों ने रातभर झाड़ फूंक कराया। समय पर उचित इलाज नहीं होने के कारण उसकी मौत हो गई।
सर्प डंसने का पहला लक्षण गहरी नींद जैसा अनुभव होना है। विष से पलकें भारी होने लगती है। करीब 85 प्रतिशत मामलों में यह सांप के काटने का पहला लक्षण होता है। इसके बाद सांस लेने में मुश्किल होनी शुरु हो जाती है। अगर हर अगली सांस के साथ गिनती कम और कम होती जाए तो इसका अर्थ है कि सांस लेने की क्षमता पर असर हो रहा है। बोलने, थूक गटकने में तकलीफ और अत्यधिक कमजोरी के साथ छाती, पेट दर्द, गले मे दर्द होता है। बहुत से मामलों में शरीर में ऐठन होता है।
जिला अस्तपाल कवर्धा के प्रभारी सिविल सर्जन, डॉ. एसआर चुरेन्द्र ने बताया सर्पदंश के अधिकतर केस में जिला अस्पताल में जान बचाई गई। कुछ परिजन झाड़-फूंक व घरेलू इलाज में जुट जाते हैं, जिसके चलते समय पर पीडि़त को समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण उनकी मौत हो जाती है।
Published on:
09 Jun 2018 11:35 am
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